Friday, 27 October 2017

कविता -- सहकर्मी स्त्रियां

सहकर्मी स्त्रियां 

क्योंकि उनकी कथाओं का
कोई कथावाचक नही होता
खुद ही बाँचतीं है अपनी कथायें
जब चल रहा होता है हवन
डालती है सब बारी बारी से समिधा
इसकी बुराई उसकी आलोचना
पतियों की बेसिरपैर की निंदा
सास से भौतिक विज्ञान वाला घर्षण
कामवाली की कारस्तानियों की जुगाली
पुरुष सहकर्मियों से आकर्षण विकर्षण
बॉस से नाराज़गी का पस्त सा पुलिंदा

सोडा वाटर की बोतल के सोडे सी
उफ़न कर शांत हो जाती हैं
भागते पलों में बहिश्त तलाशती
फ़ुरसत के क्षणों की साथी

#सहकर्मी_स्त्रियाँ
©® Twinkle Tomar




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