Wednesday, 19 June 2019

दाना पिसता है

तमाम ग्रह घूमते है
मेरी क़िस्मत लिखने को
इतनी चाकरी उनकी
क़िस्मत में किसने लिखी?

एक साइकिल का पहिया भी
थक जाता है मेरी थकान से
मेरे भाग्य की थकान क्या
इन ग्रहों तक नही पहुंची?

तुम बैठे न मालूम क्यों
निर्दयता से चक्की चलाते रहते हो
दाना दाना हम फूटते रहेंगे
पिसने की पीड़ा तुम तक न पहुंची?

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