पटाक........... कुछ गिरने की आवाज़ आयी। दोपहर में कामकाज निपटाने के बाद मम्मी की आँख लगी ही थी कि नींद टूट गयी। मम्मी हड़बड़ा कर उठी , अंदाज़ लगाया कि शायद रसोई से ही कुछ गिरने की आवाज़ आयी थी। फौरन रसोई की ओर भागी।
रसोई का नज़ारा ही कुछ और था। एक तरफ स्टूल ढुलका पड़ा था, एक तरफ सौम्या। फर्श पर ढेर सारा सामान फैला था जो कि शायद ऊपर की अलमारी से गिरा था। मम्मी को माज़रा समझते देर न लगी। सौम्या को झट से उठाया। सौम्या एकदम हड़बड़ाई सी खड़ी थी। "मम्मी वो...मम्मी वो.."
वो कुछ इसके आगे बोलती इसके पहले ही मम्मी ने कस कर उसे एक चाँटा जड़ दिया। " नालायक, इतनी चीज़ें टाइम से सब खाने पीने की देती रहती हूँ। फिर भी तेरा पेट नहीं भरता। अब तुम चुरा कर खाने की आदत डाल रही हो? "
"नहीं मम्मी...नहीं,...प्लीज़ मेरा विश्वास करो मैं चुरा नहीं रही थी।" सौम्या ने रोते हुए कहा।
"चुरा नहीं रही थी... तो इस समय यहाँ क्या कर रही हो? स्टूल कौन लाया यहाँ? समान कैसे बिखरा ? " मम्मी ने गुस्से में दो चार चाँटे और लगा दिए।
अब तो सौम्या का बाँध टूट गया। आठ साल की सौम्या , नन्ही सी फूल सी सौम्या के गाल थप्पड़ खाने की वजह से लाल पड़ गए थे। " मम्मी वो ...मम्मी...मैं...." सौम्या की हिचकियाँ बंध गयीं। पर वो कुछ भी कह नहीं पाई। आख़िर गलती तो हुई ही थी उससे।
"चलो अब भागो यहाँ से, अपने कमरे में जाओ। मुझे समेटने दो ये सब। और शाम तक अब मुझे अपना मुँह मत दिखाना। चोरी करके खाएगी.....आने दो पापा को शाम को सब बताती हूँ।" मम्मी गुस्से में बड़बड़ाती हुई फर्श पर बिखरा हुआ समान समेटने लगीं।
सौम्या चुपचाप अपने गाल को एक हाथ से सहलाती हुई अपने कमरे में चली गयी। सुबकते सुबकते कब सो गई पता ही नहीं चला। शाम को जब पापा ने उसे आवाज़ दी तब उसकी आँखे खुलीं। जैसे ही वो उठ कर बैठी उसे दोपहर की घटना उसे याद आ गयी। उसे लगा कि अब तक तो मम्मी ने पापा को सब कुछ बता दिया होगा और शायद पापा उसे डाँटने के लिये ही बुला रहे होंगे।
सौम्या उठी और फट से अपनी डेस्क पर बैठ कर पढ़ने का नाटक करने लगी। तभी पीछे से पापा आ गए। " क्या हुआ मेरा राजा बेटा। आज पापा से मिलने नहीं आया। वैसे तो तुरंत दौड़ कर आ जाता है।" पापा के नरम प्यार भरे शब्दों को सुनकर सौम्या खुश हो गयी। तुरंत पापा के गले लग गयी।
" अच्छा तो मम्मी ने पापा को कुछ नहीं बताया।" सौम्या ने मन में सोचा।
पापा के साथ जब सौम्या बाहर आई तो देखा मम्मी मुस्कुराते हुये चाय नाश्ता मेज पर लगा रहीं थीं। सौम्या ने डरते डरते मम्मी की तरफ देखा। पर मम्मी को तो जैसे कुछ याद ही नहीं था। सब कुछ पहले जैसा ही नार्मल था। "लगता है अभी तुरन्त मम्मी पापा को कुछ नहीं बता रहीं है, क्योंकि पापा अभी अभी वापस आये है। शायद थोड़ी देर में बता दें।" सौम्या के दिल में धुकधुकी लगी हुई थी।
नाश्ता करने के बाद सौम्या अपने कमरे में चली गयी। उसके कान बाहर से आती मम्मी पापा की आवाज़ पर ही लगी हुये थे। पर आश्चर्य.... मम्मी ने तो उसकी कोई भी शिकायत नहीं की। शायद मम्मी दोपहर की बात भूल गयी है। या शायद उन्होंने उसे माफ़ कर दिया। शायद अब वो नाराज़ नहीं है। " चलो अच्छा हुआ...." सौम्या ने राहत की साँस ली।
दूसरे दिन सौम्या जब सुबह उठी तो मम्मी के कमरे की तरफ भागी। आज उसकी मम्मी का जन्मदिन था। कल दोपहर में जब मम्मी ने उसे चाँटा मारा था तो उसने सोचा था कि वो मम्मी को विश भी नहीं करेगी। पर जब शाम को सब कुछ नार्मल हो गया तो उसने मम्मी के लिये एक कार्ड भी बनाया था और एक गिफ़्ट भी तैयार किया था।
मम्मी अभी अभी नहा कर बाथरूम से निकलीं थीं। " हैप्पी बर्थडे मम्मी।" इतना कहकर सौम्या मम्मी के गले लग गयी।
" थैंक्यू बेटा। " मम्मी ने इतना कहकर सौम्या को गोद में उठा लिया। फिर सौम्या ने मम्मी के हाथ में कार्ड थमा दिया।
" अरे वाह, मेरी राजकुमारी ने कार्ड बनाया है। इट्स ब्यूटीफुल, बेबी।" मम्मी चहक उठीं।
"और एक गिफ़्ट भी है मम्मी।"
"क्या?"
"पहले आँख बंद करो।" सौम्या ने कहा।
मम्मी ने आँखें बंद की। सौम्या ने उनके गले में एक माला पहना दी। मम्मी ने जब आँखें खोली तो पाया एक छोटी सी रंग बिरंगी माला उनके गले में थी.....मैक्रोनी की !
" ये ....ये कैसे बनाया?....इसका आईडिया कहाँ से आया ? ये तो बहुत प्यारी है।" मम्मी ने आश्चर्य से पूछा।
" लॉक डाउन था न मम्मी तो बाहर जा नहीं सकते थे ,आपके लिये गिफ़्ट लेने। इसलिए मैंने घर में ही बना लिया। " सौम्या ने मासूमियत से कहा।
"अच्छा तो तुम मैक्रोनी लेने ही रसोई में गयी थी। अरे मेरी रानी बेटी....और मैंने तुमको बिना सोचे समझे कितना मारा। मुझे माफ़ कर दो बच्चा। " मम्मी के आँखों में आँसू झिलमिला उठे। उन्होंने उसके नन्हे नन्हे हाथों को चूम लिया। सौम्या ने उन्हीं छोटे छोटे हाथों से मम्मी के गालों पर लुढकते आँसू पोछे और उनको चूम लिया।
कभी कभी बच्चे कुछ क्रिएटिव करना चाहते हैं, पर माता पिता उसे भी शैतानी ही समझ लेते हैं।
टि्वंकल तोमर सिंह,
लखनऊ।
Thursday, 16 April 2020
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