कुछ हाथ
अकर्मण्य भटकते रहते है
लकीरों की बंद वीथिकाओं में
कुछ अवसरों के
भाग्य में लिखा होता है
द्वार खटखटा कर प्रतीक्षा करते रहना
दीवाली पर कुछ घरों में दिखते हैं छोटे छोटे प्यारे प्यारे मिट्टी के घर माँ से पूछते हम क्यों नहीं बनाते ऐसे घर? माँ कहतीं हमें विरासत में नह...
No comments:
Post a Comment