Tuesday, 5 September 2017

Teachers day



5 September 2017
अध्यापक एक अजनबी होता है पहले ही दिन से।उसकी बातचीत, व्यवहार, बोलने का तरीका,उसके कपड़े,सब कुछ अलग दिखते है अगर एक छोटे से बच्चे की नज़र से देखा जाए तो।
बड़े बच्चों से भी एक फासला रहता है।शायद ही एक फुट के दायरे के अंदर अध्यापक और शिष्य आते हो। हमेशा ज्ञान की बात करने वाला एक बोझिल इंसान।
लेकिन उसकी कही बात बच्चों के मन मस्तिष्क में गहरे बैठ जाती है। इसलिए अध्यापक को हर पल सतर्क रहना चाहिए।

जैसे हर व्यवसाय में अनुभव व्यक्ति को मांजता है उसी प्रकार कोई व्यक्ति बस एक डिग्री या पद हासिल करके शिक्षक नही हो जाता।हर दिन शिक्षक को स्वयं को साबित करने के लिए परीक्षा देनी पड़ती है।एक कक्षा में जब 80 आंखें आप पर टिकी हो तो आपको शब्दों का चयन सतर्कता के साथ करना होता है, बॉडी लैंग्वेज का ध्यान रखना होता है।बच्चों द्वारा पूछे जाने वाले काम के या फालतू के प्रश्नों का उत्तर होशियारी से देना होता है।

अध्यापिका के रूप में मेरे जो सबसे पहले प्रधानाचार्य थे वो एक बहुत अच्छी बात कहा करते थे-

"We are teachers not by choice but by compulsion. When we do not get any job anywhere we become teachers."

ये अक्षरशः सत्य है। ज्यादातर शिक्षक शिक्षण कार्य को आजीविका का साधन तब बनाते है जब हर जगह से असफल हो चुकते है। ऐसे में जब व्यक्ति अपने मन का काम ही नही कर रहा है,उसने मजबूरी में इस व्यवसाय को चुना है, तो उससे आप परफेक्शन की उम्मीद कैसे कर सकते है?

लेकिन जैसे कि रसायन विज्ञान में गैस की परिभाषा कुछ यूं दी गयी है - Every gas tends to be perfect, but no gas is perfect.
ठीक उसी प्रकार मुझे लगता है-
"Every teacher tends to be perfect , but no teacher is perfect."

शिष्य वास्तव में उस दर्पण की तरह होता है, जिस पर पड़ी धूल को एक शिक्षक जितना अधिक साफ करने की कोशिश करेगा, उसका प्रतिबिम्ब उतना ही अधिक स्पष्ट और निखरा हुआ दिखेगा।

मेरे प्रथम शिक्षक मेरे माता पिता को, मुझे औपचारिक शिक्षा देने वाले प्रत्येक शिक्षक को ,मुझे प्रतिदिन कुछ नया सिखाने वाले मेरे विद्यार्थियों को और जीवन मे नया तजुर्बा देने वाले हर एक इंसान को,
शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं।
Twinkle Tomar Singh 

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