"सी,दीज़ आर द साईबेरियन बर्ड्स आई वाज़ टॉकिंग अबाउट। ( देखिये ,यही वो साइबेरियन पक्षी हैं, जिनके बारे में मैं बता रहा था।) " सिद्धार्थ ने अपने अमेरिकन बॉस को गंगा की लहरों पर कल्लोल करते हुये श्वेत प्रवासी पक्षियों की ओर संकेत करते हुये बताया।
"वाओ, दिस इज़ रियली ऑसम! हाऊ ब्यूटीफुल!( वाह, ये अद्भुत है। बहुत सुंदर।)" अमेरिकन बॉस ने अपने अमेरिकन एक्सेंट में कहा।
(पाठकों की सुविधा के लिये आगे इनकी बातचीत को हिन्दी में लिखा जा रहा है।)
"जी..." सिद्धार्थ ने अंग्रेज़ी में थोड़ा और अमेरिकन एक्सेंट घोलते हुये कहा.. "हर साल संगम में आने वाले इन विदेशी मेहमानों की यहाँ के लोग बहुत प्रतीक्षा करते हैं।"
"हाँ, हम देख सकते हैं, हर नाव पर इन पक्षियों को दाना दिया जा रहा है। बच्चे तो पागल ही हो जा रहे हैं।" बॉस की पत्नी ने सफेद दस्ताने पहने हुये हाथों से बेसन के मीठे सेव उछाले। प्रवसी पक्षी लपलपाते हुये आये, उन सेव के टुकड़ों को चोंच में दबा कर उड़ गये। कुछ वैसे ही जैसे विदेशी कंपनियों के चमकते-दमकते सैलरी पैकेज को देख कर ललचाते भारतीय युवा ग्रेजुएट्स। उन लोगों ने संगम किनारे से पचीस रुपये के इन मीठे सेव के पैकेट्स को खरीदा था।
"जी मैम, भारत में सर्दियों का प्रारम्भ होते ही हर साल साइबेरियन पक्षी यूरोप से हज़ारों मील...कैन यू इमेजिन...हज़ारों किलोमीटर की दूरी तय कर संगम तट पर पहुंच जाते हैं।" सिद्धार्थ बहुत उत्साहित होकर बता रहा था। वो जताना चाहता था कि वो अपने बॉस और उनके परिवार को संसार के एक बहुत ही अद्भुत शहर में ले कर आया था। प्रयागराज की महिमा, यहाँ का माघ-मेला, कल्पवास, गंगा-जमुना के सफेद और हरे जल का संगम, प्रवासी पक्षियों का अल्पवास, सब दिखा कर उन्हें विस्मित कर लेना चाहता था। आख़िर उनके प्रसन्न होने से उसकी तरक्की के कई अनखुले द्वारों की खुल जाने की संभावना थी।
अमेरिकी मेहमान निश्चित ही नाव की सवारी का अद्भुत आनंद उठा रहे थे। ठीक संगम वाले स्थान पर लकड़ी की तख्तियाँ बल्लियों के सहारे लगाई गयीं थीं। वहाँ नाव रोककर लोग संगम के जल में डुबकी लगाते थे। आचमन करते थे, अंजुलि में जल भरकर सूर्य देवता की ओर मुख करके कुछ बुदबुदाते थे। फिर अपनी उंगलियों से नाक बंद कर जल में कई डुबकी लगाते थे। हर तरफ बहुत चहल पहल थी।
अमेरिकी बॉस ने भारतीय जनता के ये सभी अद्भुत करतब अपने आई-फ़ोन के कैमरे में कैद कर लेने चाहे। उनकी मैडम गले में लटके डी एस एल आर में चारों दिशाओं के अनगिनत चित्र उदरस्थ करती जा रहीं थीं।
वहाँ एक और आई-फ़ोन था, जो फ़ोटो नहीं खींच रहा था, पर जिसमें बार बार एक कॉल आ रही थी...जिसमें कॉलर का नाम "मम्मी" लिख कर कर आ रहा था। कई बार फ़ोन काटने के बाद जब सिद्धार्थ ने देखा कि उसके मेहमान छायाचित्र बटोरने में व्यस्त में हो गये हैं, तब उसने फ़ोन रिसीव किया- "हाँ...मम्मी...बोलो...क्या बात है...."
"बेटा... तुमने बताया नहीं...घर कितने बजे आ रहा है..." उधर से माँ की हर्ष-विषाद-उत्साह-दर्द-भय मिश्रित स्वर था।
"मम्मी...मैंने कहा था मैं ख़ुद फ़ोन करूँगा...बताया तो था कि अपने बॉस के साथ फाइव स्टार होटल में रुका हूँ। समय मिलते ही आऊँगा। अभी डिस्टर्ब न करो, उन्हें ही घुमा रहा हूँ।" एक कोने में मुँह करके उसने लगभग क्रोधित होते कड़े शब्दों में कहा।
"पर बेटा... तू तो परसों सुबह से आया...." माँ की बात बीच में ही काट दी गयी।
"ये देखिये मिस्टर फैंक...इधर तो आपने देखा ही नहीं...ये छोटी छोटी टोकरी में फूलों के बीच में दीपक रख कर गंगा में प्रवाहित करते हैं, इसकी पूजा करने के लिये।" सिद्धार्थ ने फ़ोन काटते ही झट से अपने मेहमानों को संकेत करके दिखाया।
मैम तुरंत अपना कैमरा ले कर उधर भी फ़ोटो खींचने लगीं। "वाओ...आई कैंट मिस इट! ...गेंगा माँ ...इजंट इट? "
"यस मैम... गंगा यहाँ लोगों की माँ है। हम माँ का बहुत सम्मान करते हैं... यू नो।"
उधर माँ ने सिद्धार्थ को गाजर के हलवे की फ़ोटो व्हाट्सएप पर भेज दी। क्या पता उनका बेटा हलवे की सुगंध के लालच में बंधा जल्दी से घर आ जाये।
सिद्धार्थ ने फ़ोटो देखी और बैक बटन मारकर फ़ोन से बाहर निकल आया और पुनः अपने अपने मेहमानों के साथ व्यस्त हो गया।
"क्या हो गया सिद्धार्थ की माँ... अब बैठ भी जाओ...कितनी देर ऐसे फ़ोन लिये बैठी रहोगी?" सिद्धार्थ के पिता ने समाचारपत्र एक किनारे रखा और आँखों पर से चश्मा उतार कर अपनी अशांत और अधीर पत्नी को देखा..."लाओ , मैं तुम्हारा फ़ोन चार्जिंग पर लगा दूँ।"
"नहीं ...नहीं..रहने दो...अभी सिद्धार्थ का फ़ोन आता ही होगा।" माँ ने बड़े विश्वास से कहा फिर गोद में मोबाइल फ़ोन रखकर मटर की फालियाँ छीलने लगी, जैसे वो मोबाइल फ़ोन ही उसका छुटका सा सिद्धार्थ हो, जो उसे छोड़ कर कहीं नहीं जाता था...." अच्छा ये बताओ.. तुम्हें तो मटर का निमोना पसंद नहीं है...सिद्धार्थ के लिये बना रही हूँ...उसे पसंद है न...फिर तुम क्या खाओगे शाम को?"
पिता ने ठंडी साँस भरते हुये अपनी अबोध पत्नी की ओर देखा...फिर पुनः चश्मा आँखों पर चढ़ाते हुये समाचार पत्र की दुनिया में खोते हुये कहा-" मैं भी वही खा लूँगा.….अब मुझे कुछ भी बुरा नहीं लगता।"
तभी माँ की गोद में रखा मोबाइल बज उठा-"हैलो...सिद्धार्थ...हाँ बोलो..." माँ के स्वर में उत्साह की मात्रा दोगुनी हो गयी थी।
" हेलो..माँ ...मैं घर नहीं आ पाऊँगा... ऐसा करो तुम दोनों टैक्सी करके यहाँ कान्हा श्याम होटल के कमरे नंबर 303 में आ जाओ..ठीक है..."
"बेटा...हम लोग...?...तुम एक बार यहाँ आ जाते...सब तुम्हारा कितना इंतज़ार कर रहे हैं। वो पड़ोस वाला तुम्हारा दोस्त नंदू...."
"फ़...नंदू..मम्मी समझो, मेरे पास बिल्कुल समय नहीं है। अभी बॉस को बड़े हनुमान जी का मंदिर, शिव मंडपम, नाग वासुकि मंदिर...सब दिखाना है। एक जगह वो लोग दो दो घण्टे लगा देते हैं। सब गरीब बच्चे उन्हें घेर लेते है...मैं उन्हें छोड़ कर नहीं आ सकता...अच्छा ऐसा करो तुम लोग सीधे बमरौली पहुँच जाना.. फ्लाइट से पहले एक घण्टे का समय रहेगा...वहीं मिल लेंगे..."
"पर बेटा... वो गाजर का हलवा...निमोना..."
"मम्मी, वो सब पैक करके ले आना..मैं यहीं खा लूँगा..." और फ़ोन कट गया।
माँ फ़ोन हाथ में पकड़े ही रह गयीं।
"क्या हुआ...क्या कहा सिद्धार्थ ने ?" पिता उत्सुकता से पूरी बात सुन रहे थे।
"...या तो अभी चलो...कान्हा श्याम...या...शाम को एयरपोर्ट..." माँ का गला रुंध गया। उन्होंने मोबाइल फ़ोन चार्जिंग पर लगा दिया।
"तो फिर शाम को चलते है...अभी थक गया होगा..थोड़ा आराम कर लेने दो उसे..." पिता ने कहा और समाचार पत्र की आड़ में अपनी नम आँखों को छुपा लिया। सामने संगम पर आये प्रवासी पक्षियों की ख़बर छपी थी ...एक बहुत ही आकर्षक व मनमोहक चित्र के साथ।
~टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ।
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