Saturday, 16 January 2021

फसल

भीड़ में सबको पीछे छोड़ते हुये मुझे सबसे आगे जगह मिली है। मुझे कोई नहीं जानता। न मेरा नाम न मेरी शक्ल। फिर भी सबसे आगे वी आई पी के सोफे पर मुझे बिठाया गया है। 

मैंने अपनी साड़ी को ठीक किया, शॉल को व्यवस्थित किया। थोड़ा संभल कर बैठ गयी। मैं जानती थी भले ही मुझे कोई नहीं जानता पर अभी कुछ ही क्षणों में मेरा नाम सब जान जायेंगें। पूरा हॉल खचाखच भरा हुआ है। मेरी धड़कनें भी तेज हो गयीं हैं....

"और आइये स्वागत है करते हैं आज की हमारी चीफ़ गेस्ट मिसेज़ वैशाली ठाकुर का। इन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से हिन्दी भाषा में पोस्ट ग्रेजुएट किया, और तब से वहीं अध्ययन अध्यापन के कार्य में संलग्न रहीं। इससे भी बढ़कर बात से है कि ये हम सबकी लोकगीत गायिका मौनी रॉय की गार्डियन हैं, जिनका गीत सुनने आप सब लोग आये हैं... मिसेज़ वैशाली ठाकुर...." उद् घोषक ने मंच से घोषणा की। 

मैं कांपते पैरों से मंच की ओर बढ़ी। मौनी भी मुस्कुराती हुई सजी- धजी पारंपरिक वेशभूषा में मंच पर आ गयी थी। उसने मुझे फूलों की माला पहनाई, फिर मेरी आरती उतारी और पैर छूकर आशीर्वाद लिया- "आशीर्वाद दीजिये माँ!" मैंने उसको ढेरों आशीर्वाद दिये और वापस आकर अपने सोफे पर बैठ गयी। 

मौनी बंगाली लड़की थी..बांग्लादेश से आयी थी कि बंगाल से उसे खुद पता नहीं था। पर उसकी माँ ने उसे मेरे यहाँ काम पर रखवा दिया था। मौनी का जैसा नाम था वैसा ही स्वभाव था...बिल्कुल मौन रहना उसकी आदत थी। कई कई बार पूछने पर ही संक्षिप्त सा कोई उत्तर उसके मुँह से निकलता था। चुपचाप झाड़ पोंछ करते रहना उसकी आदत थी। 

मेरा एकलौता बेटा था आदित्य। बचपन से बहुत उद्दण्ड, शरारती, गुस्सैल और हठी। पता नहीं मेरी ही परवरिश में कोई कमी थी या ठाकुरों के वंश बेल का एक बीज होने के कारण ये अवगुण उसके अंदर आ गये थे। उसकी उदण्डता देखकर, उसको हाथ से निकलता देखकर मुझे एक विचार आया। क्यों न इसकी ऊर्जा को किसी सकारात्मक दिशा में मोड़ दिया जाये?

मेरे घर में मेरे ससुर का एक पियानो था, जो उन्हें किसी अंग्रेज ऑफिसर ने उपहार में दिया था। मैंने एक संगीत अध्यापक को बुला कर आदित्य को संगीत की क्लास दिलवाना शुरू कर दी। आदित्य मेरे दबाव में आकर संगीत सीखने लगा। उसका रुझान संगीत में बिल्कुल भी न था। संगीत मास्टर की कड़ी मेहनत के बाद भी वो एक धुन, एक गीत सीखने में कई हफ्ते लगा देता था। 

मैंने अक्सर देखा था कि जब आदित्य की संगीत कक्षा चलती थी तो मौनी वहीं आकर झाड़ पोंछ करने लगती थी, और ध्यान से सारे लेसन सुनती रहती थी। अब वो काम करते करते गुनगुनाने भी लगी थी। एक दिन अकेले में वो एक कठिन धुन एकदम सही और मधुर स्वर में गुनगुना रही थी। उसे सुनकर मेरा रोम रोम जलने लगा। मेरा बेटा इतने पैसे खर्च करके भी संगीत सीख नहीं पा रहा और ये नौकरानी...मुफ्त में सीख ले रही है। मुझे मौनी के गुनगुनाने तक से वितृष्णा हो गयी। जबकि मैं जानती थी बीज को पल्लवित होने के एक उपजाऊ भूमि ही चाहिये। इसमें न बीज का कसूर है, न भूमि का। आदित्य ऊसर था....

आदित्य मौनी की ओर कुछ ज़्यादा ध्यान देने लगा था। मौनी की बढ़ती उम्र उसे एक आकर्षक किशोरी में परिवर्तित कर रही थी। आदित्य धीरे धीरे उसकी तरफ न केवल आकर्षित हो गया वरन मेरी अनुपस्थिति में उसके साथ शरारत करने लगा। अकेले में उसे मोलेस्ट करना उसकी आदत बन गयी। ये बात मुझे बहुत बाद में पता चली। यदि उसी वक़्त पता चल जाती तो मैं आदित्य और मौनी को बहुत पहले ही अलग कर देती। पता नहीं मैंने कैसे ध्यान नहीं दिया कि अब मौनी पहले की तरह गुनगुनाती नहीं हैं। 

एक दिन मैं बाज़ार गयी थी। मुझे आने में थोड़ा देर हो गयी। लौट कर आने पर मैंने जो दृश्य देखा...एक पल को मुझे चक्कर ही आ गया। मौनी आदित्य के बिस्तर पर लहू लुहान, बेहोश पड़ी थी...आदित्य ने उसके साथ वो कर डाला था जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। फिर उसे ऐसी हालत में देखकर डरकर घर छोड़कर भाग गया था....

मैंने मौनी के मुँह पर पानी के छींटे मारे...उसे डॉक्टर के पास ले गयी। मेरी रुलाई रुक नहीं रही थी। कहीं न कहीं उसकी इस हालत की जिम्मेदार मैं भी थी। 

आदित्य पकड़ा गया...बड़ी मुश्किल से मामला रफा-दफा कराया गया। फिर उसे मैंने दूर बोर्डिंग में डाल दिया। 

उस दिन के बाद मौनी ऐसा मौन हुई कि बोलना ही भूल गयी। उसे ऐसी हालत में देखकर मुझे अपनी जलन याद आ जाती। यही जलन थी जिसने मुझे बेटे के प्रेम में अंधा कर रखा था और मैं समय रहते कुछ देख न सकी। 

मैंने मौनी को अपनी बेटी बना लिया। उसकी पूरी देखभाल की। उसने फिर से बोलना सीखा। संगीत मास्टर फिर से घर आने लगे...पर इस बार मौनी को संगीत सिखाने के लिये।

आज मौनी , प्रसिद्ध लोकगीत गायिका मौनी रॉय हो गयी है। उसे मंच पर गाते हुये देखकर मेरी आँखें सजल हुई जा रहीं हैं। आँसू रुक ही नहीं रहे हैं...मौनी भी मेरी ओर देखकर रोती जा रही है....गाती जा रही है....

सूखे के बाद बारिश से हरी हुई लहलहाती फसल को मैं वैसे ही देख रही हूँ जैसे एक किसान देखता है। इस फसल को मैंने पश्चाताप के आँसुओं से सींचा है। 

~ टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

No comments:

Post a Comment

रेत के घर

दीवाली पर कुछ घरों में दिखते हैं छोटे छोटे प्यारे प्यारे मिट्टी के घर  माँ से पूछते हम क्यों नहीं बनाते ऐसे घर? माँ कहतीं हमें विरासत में नह...