उपासना के कई मार्ग थे
भक्ति के एक बिंदु से
कई शाखायें निकलीं
ईश्वर लाल बने तो कभी पिता
कभी प्रेमी तो कभी सखा
किसी ने प्रश्न न किया
प्रेम के भी अनेकों स्वरूप थे
खेद...बहुरंगी ओप धूसर समझे गये
चहुँओर से प्रश्न बरसे भाले बनकर
इन घावों से रक्त बहा निःशब्द
सबने कहा-देखा यहाँ भी रक्त का रंग था 'लाल'
~ टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ।
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( ओप- आभा,चमक / धूसर- धूल का रंग / लाल- वासना का प्रतीक रंग)
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