Saturday, 6 March 2021

सत्यजीत रे की कहानियाँ

पुस्तक समीक्षा 

सत्यजीत रे को आप किस रूप में पहचानते हैं? एक फ़िल्म निर्माता...एक निर्देशक ...कहानीकार...डॉक्यूमेंट्री निर्माता...गीतकार ...संगीतकार...सुलेखक...? 

अधिकतर लोग सत्यजित रे को एक फिल्म निर्देशक के रूप में ही जानते हैं, पर क्या आप जानते हैं उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी हैं? उनकी कहानियों में भारतीय समाज के कई रूप उभरकर सामने आए हैं। 

पुस्तक पढ़ने की लालसा मन में लिये और किसी नये लेखक को पढ़ने की इच्छा लिये हुये जब पुस्तकें खंगाल रही थी तो एक पुस्तक हाथ लगी 'सत्यजीत रॉय की कहानियाँ"। इसे शुरू करते समय यही अनुमान था कि इसमें कुछ शतरंज के खिलाड़ी या पाथेर पंचाली जैसी ही कहानियाँ होंगी। इनके बस यही दो चलचित्र मैंने देख रखे थे।

पहली कहानी जो मैंने पढ़ी वो थी- 'प्रोफेसर हिजबिजबिज'। आशा के बिल्कुल विपरीत एक कहानी पढ़ना मेरे को पचा नहीं। मैंने सोचा ये क्या बकवास कहानी थी और क़िताब पलटकर रख दी। फिर दो चार रोज़ के बाद लगा, शायद मेरे अपने ही समझने में भूल हुई होगी। शायद मेरा मस्तिष्क उतना परिपक्व नहीं कि उनकी कहानियों को समझ सकूँ। 
फिर दूसरी पढ़ी- 'फ्रिन्स' ये कुछ ठीक लगी। तीसरी पढ़ी- 'ब्राउन साहेब की कोठी'। तीसरी कहानी पढ़ते पढ़ते समझ आया ये कुछ अलग ही लेवल की पुस्तक है। 

इसमें ग़रीबी, भुखमरी, दया , करुणा ..नहीं मिलेगा। इस पुस्तक को पढ़कर मेरे सामने सत्यजीत रॉय का एक अलग ही पहलू उभर कर सामने आया। 

इस पुस्तक में सारी की सारी कहानियाँ रहस्य और रोमांच पर आधारित हैं। और कथावस्तु इतनी नवीन, इतनी अलग कि आप प्रभावित हुये बिना रह ही नहीं सकते। वैसे तो मुझे सब की सब कहानियाँ बहुत पसंद आयीं , पर मेरी सबसे अधिक पसंदीदा कहानी रही-  रतन बाबू और वह आदमी। इस कहानी को पढ़ने के बाद काफ़ी देर इसी के बारे में सोचती रही। ये कहानी बहुत कुछ कह गयी थी। इस दुनिया में वास्तव में बिल्कुल आपके जैसा कोई व्यक्ति मिल जाये , तो आप उससे किस प्रकार पीछा छुड़ाने को बैचैन हो जायेंगे। यही इसकी कथावस्तु थी। 

आख़िरी की दो कहानियाँ फेलूदा सीरीज़ से थीं। इससे पहले मैं फेलूदा को नहीं जानती थी। राय ने बांग्ला भाषा के बाल-साहित्य में दो लोकप्रिय चरित्रों की रचना की — गुप्तचर फेलुदा (ফেলুদা) और वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर शंकु। इन्होंने कई लघु-कथाएँ भी लिखीं, जो बारह-बारह कहानियों के संकलन में प्रकाशित होती थीं और सदा उनके नाम में बारह से संबंधित शब्दों का खेल रहता था। उदाहरण के लिए एकेर पिठे दुइ (একের পিঠে দুই, एक के ऊपर दो)। राय को पहेलियों और बहुअर्थी शब्दों के खेल से बहुत प्रेम था। इसे इनकी इन कहानियों में भी देखा जा सकता है। फेलुदा को अक्सर मामले की तह तक जाने के लिए पहेलियाँ सुलझानी पड़ती हैं। शर्लक होम्स और डॉक्टर वाटसन की तरह फेलुदा की कहानियों का वर्णन उसका चचेरा भाई करता है।

राय ने इन कहानियों में अज्ञात , रहस्यमय और रोमांचक तत्वों को भीतर तक टटोला है, जो उनकी फ़िल्मों में नहीं देखने को मिलता है। इस संग्रह की कहानियाँ न केवल मनोरंजक हैं, बल्कि पाठकों के मन को उद्वेलित करनेवाली हैं। 

मैं इन कहानियों से इतनी प्रभावित हुई कि इनकी एक बांग्ला फ़िल्म 'आगंतुक' भी देख डाली। 

जो लोग मुझसे पूछते हैं 15-16 साल के बच्चे के लिये कहानी की क़िताब बताइये तो निःसंदेह सत्यजीत रे की गुप्तचर फेलुदा और वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर शंकु सीरीज़ की पुस्तकें दी जा सकती हैं।

चलते चलते -
इनके बारे में रिसर्च कर डाला पूरा तो पता चला कि जिम कॉर्बेट की ‘मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं’ और जवाहरलाल नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ के आवरण भी सत्यजीत रे ने ही डिजाइन किये थे। 

~ टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ।

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