अविरत है और मुझे नहीं पता कि इसे कैसे अनुभव किया जाये। एक झूले पर बैठकर जैसा रोमांच होता है कुछ वैसा ही। झूला इतनी तेजी से आपको झुलाता है कि एक पल के आनंद या भय को आप समझ नहीं पाते कि वो दूसरा ले आता है।
मैं जब फूलों को खिला देखती हूँ तो मुझे लगता है मैंने इसका जीवन जिया था कभी...मैं जल थी कभी....मैं मृदा थी कभी......मैंने अन्य जीवों की आँखों में आँखे डाल कर जब भी देखा मुझे वहाँ अपनी ही आत्मा का कोई अंश कैद दिखाई दिया। मैंने वहाँ वो तड़प देखी है, वो बेबसी देखी है, जो मेरी आत्मा भोग रही है।
यदि कोई मुझसे कहे कि तुम्हारे पास विकल्प है, दुनिया में किसी का भी जीवन चुन लो...उसका जिसके पास करोड़ों रुपये हैं...उसका जिसका यौवन अक्षुण्ण है...उसका जिसके पास शोहरत की बुलंदियाँ हैं....उसका जिसके पास .....
शायद मैं किसी से भी उतना प्यार नहीं करती जितना अपने आप से करती हूँ। मुझे यही आत्मा , यही शरीर चाहिये। मेरे दुःख मुझे पवित्र करते हैं...मेरे सुख हवन से निकली सुगंध हैं...मेरी कमियाँ मुझे संत होने से बचाती हैं....मेरी अच्छाइयाँ मुझे प्रेरित करतीं हैं कि मैं इस विरासत को किसी को सौप कर जाऊँ.....
मैंने अपने शरीर , अपनी आत्मा, अपने मन को जितने घाव दिये हैं....इतने दर्द किसी ने नहीं दिये..इनसे बहुत रक्त बहा है... एक बहुत ही श्वेत, स्वच्छ चादर थी....जिसे मैंने जम कर मैला किया है...और मैला करती ही जा रही हूँ....दिन प्रतिदिन... हर पल हर क्षण.....
पर जन्मदिन स्मरण कराता है ....आनंद मनाओ....सजा के साल कम होते जा रहे हैं....रिहाई का समय बहुत जल्दी आने वाला है.....इस शरीर से, इस नाम से जितना मोह है, जितना प्रेम है, सब धरा रह जायेगा.....
मैं फिर फूल बनकर जन्म लूँगी...फिर बेवकूफी भरे प्रश्न ईश्वर से पूछूँगी..... क्यों..?? आख़िर क्यों ऐसा जन्म दिया...जहाँ मेरे पैर मिट्टी में जकड़े है.....वो देखो...वो लोग कैसे भाग लेते हैं...मैं चल तक नहीं पाती....
ईश्वर मुस्कुरायेगा..... तुम्हें फिर किसी कल्प में टि्वंकल तोमर बनना होगा...तब ख़ूब चलना....सितारों तक पहुँचना... बस इस बार चादर कम मैली करना....!!
ये जन्म शुभ हो टि्वंकल !!
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