Wednesday 19 May 2021

अतीत के चलचित्र - पुस्तक समीक्षा


पुस्तक- अतीत के चलचित्र 
विधा- संस्मरण
लेखिका- महादेवी वर्मा



"दु:ख एक प्रकार श्रृंगार भी बन जाता है, इसी कारण दुःखी व्यक्तियों के मुख, देखने वाले की दृष्टि को बाँधे बिना नहीं रहते।"

ये पंक्तियां ऐसी थीं कि जब से पढ़ी मन के अंतरतम में धंस कर रह गयीं। वो सारे चेहरे आँखों के सामने से सजीव होकर गुज़र गये जिनकी आंखों में दुःख का अंजन तीक्ष्ण रेखा बनाता हुआ सजा था। 

ये पंक्ति है एक बेहद विस्मृत पुस्तक से , जिसके आवरण पर उसकी पहचान के तौर पर लिखा है 'अतीत के चलचित्र'। 

महादेवी जी को पद्य साम्राज्ञी के रूप में ही जाना। बचपन से कोर्स में उनका एक न एक क्लिष्ट शब्दों और अर्थ से सजा काव्य हमारे हिन्दी ज्ञान और प्रेम की परीक्षा लेता रहा। उनका लिखा एकमात्र गद्य जो विद्यार्थी जीवन में मैंने पढ़ा वो था - गिल्लू। बालमन पर उस छोटे से गिलहरी की कहानी अमिट छाप न छोड़े, संभव ही नहीं। उस समय उसकी कहानी आँखों को गीला तो कर ही गयी थी, उसके बाद कई चिड़ियों के बच्चों को बचाने में प्रेरणास्रोत के रूप में भी कार्य करती रही।

  महादेवी जी की रचनाओं के प्रति कुछ यूँ धारणा बन जाती है जैसे गणित के दुरूह सवाल। इसलिए कोई जल्दी उनकी पुस्तकों पर हाथ नहीं धरता। 

 महादेवी जी के बारे में कुछ कहना थाली में जुगनू रखकर सूर्य की आरती उतारने समान है। फिर भी कह रही हूँ कि इस पुस्तक में इतना रस, इतनी संतुष्टि, एक एक कहानी अपने आप में एक उपन्यास सरीखी, भाषा का चमत्कार, गद्य में पद्य की करिश्माई सुवास...मन महके बिना रहे तो कैसे? 

अतीत के चलचित्र महादेवी वर्मा द्वारा रचित एक रेखाचित्र है। इसमें हमारा परिचय समाज के बेहद अनचीन्हे , विस्मृत, चरित्रों से कराया गया है।  रामा, भाभी, बिन्दा, सबिया, बिट्टो, बालिका माँ, घीसा, अभागी स्त्री, अलोपी, बबलू तथा अलोपा ये ग्यारह चरित्र आपको अपने आसपास मिल जायेंगे, जिन पर आपने कभी ध्यान भी न दिया होगा, फिर उन पर संस्मरण लिखने की बात ही क्या? 

इन सभी रेखा-चित्रों को उन्होंने अपने जीवन से ही लिया है, इसीलिए इनमें उनके अपने जीवन की विविध घटनाओं तथा चरित्र के विभिन्न पहलुओं का प्रत्यारोपण दिखाई देता है। उनकी संवेदनशीलता,उनके अनुभूत सत्य जस-का-तस यहाँ दर्ज़ हैं। 

'अतीत के चल-चित्र' में सेवक 'रामा' की मालिक के बच्चों की    वात्सल्य से भरी सेवा, भंगिन 'सबिया' का पति-परायणता, सहनशीलता व धैर्य, 'घीसा' की निश्छल, बिना कुछ प्रतिदान माँगती एकलव्य सरीखी अंध गुरुभक्ति, साग-भाजी बेचने वाले अंधे 'अलोपी' का सरल व्यक्तित्व, कुम्हार 'बदलू' व 'रधिया' का सरल दांपत्य प्रेम तथा पहाड़ की रमणी 'लछमा' का महादेवी के प्रति गहरा प्रेम ये सभी प्रसंग आपकी आँखों को गीला न कर दें संभव ही नहीं।

इस पुस्तक से कुछ पंक्तियों को यहाँ उदाहरण के लिये कोट कर रही हूँ। 

"वैशाख नये गायक के समान अपनी अग्निवीणा पर एक-से-एक लम्बा आलाप लेकर संसार को विस्मित कर देना चाहता था। मेरा छोटा घर गर्मी की दृष्टि से कुम्हार का देहाती आवाँ बन रहा था। "

"
सूखी-सूखी पलकों में तरल-तरल आँखें ऐसी लगती हैं, मानो नीचे आँसुओं के अथाह जल में तैर रही हों और ऊपर हँसी की धूप से सूख गयी हों !" 

"उसे घर भेजने का प्रबन्ध कर मैं जब फाटक से लौटी, तब धरती और मेरे पैर लोहा-चुम्बक बन रहे थे।" 

ये तो मात्र झलकियां हैं। ऐसा एक सागर यहाँ शांति से लहराता मिलेगा। 

~ टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

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