"लौ पियौ...उठाओ कप...चाह ठंडी हो रही है।" मिश्रिख,सीतापुर के एक छोटे से घर में मुझ अतिथि देव को नैवैद्य ग्रहण करने का आग्रह किया गया।
और मैं एक बार ऑन्टी का मुँह देख रही हूँ, एक बार सामने स्टील की ट्रे में सजे चीनी मिट्टी के कप को। कितना मना किया था "ऑन्टी,चाय पी कर आई हूँ...मन नहीं है" पर ऑन्टी को लगता है,चाय का अपमान उनका अपमान है। तो आ गयी चाय मुस्कुराते हुये, मुझे चैलेंज देते हुए,मेरे सामने। चाय का रंग हल्का मटमैला है,उसमें से भाप निकल रही है,कप में चाय लबालब ऊपर तक भरी हुई है, ऊपर कुछ चिकनाई की बूंदे फैली हुई चमक रही है।
"हाँ.. हाँ ऑन्टी, पी रही हूँ।" कहते हुये बहुत साहस के साथ साथ कप को उठाती हूँ। आज विधाता ने तुम्हें मेरे भाग्य में लिख दिया है। तुम्हें उदरस्थ करना ही होगा। कहते हैं, दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम। चाय चाय पर भी लिखा होता है पीने वाले का नाम। काली हो, गोरी हो, खौली हुई हो, कच्ची हो, चीनी ज़्यादा हो, चीनी कम हो...दूध नाममात्र का हो या मलाई/चिकनाई तैरती हो..फ्रेश चायपत्ती से बनी हो...या दुबारा-तिबारा चायपत्ती खौला कर बनाई गई हो...इलायची वाली हो...या ढेर सी अदरक वाली...और कहीं कहीं तो चाय के नाम पर काढ़ा... सौंठ, कालीमिर्च,दालचीनी, सब मिलेगा.....पर चाय तो चाय है।
अगर आप मेहमान बन कर कहीं गये है, तो इनमें से कौन सी प्रकार की चाय आपके भाग्य में उस दिन लॉटरी की तरह निकलने वाली है,नहीं जान सकते। और तो और मना भी नहीं कर सकते। खुल कर कैसे मुँह पर कह दें कि चाय के नाम पर आप ये जो मटमैला, रंगीन, गर्म पानी लाये हैं, उसे कैसे हम पी लें?
थोड़ी देर तक चाय को मैं फूँकती रही। इसके दो कारण थे- एक चाय ठंडी हो जाये तो एक बार साँस रोककर गले के नीचे ढुलका दी जाये, दूसरा थोड़ी देर टाइम पास हो जाएगा। कुछ देर तो इस त्रासदी को टाला जा सकता है।
"अये.. हो...रजनी...का चीनी कम डाले हो चाय माँ..." ऑन्टी अपनी बिटिया को आवाज़ लगाती हैं। आँटी की चाय घूँटने लायक हो गयी थी। " हाँ , अम्मा...भाभी तनिक चीनी कम पीती हुइये न..." रजनी रसोई के अंदर से बोली।
"अरे तो हमका तौ चीनी दै जाओ..." ऑन्टी हुंकारते हुये बोलीं। रजनी आयी एक भरे पूरे चीनी के डिब्बे के साथ और उसमें से दो चम्मच चीनी उसने उनके कप में डाल कर चाय का शरबत तैयार कर दिया। मेरी आँखें बाहर निकल आयीं। मैं सोच कर ही सहम गयी कि कहीं रजनी समझदार न होती तो....उसे न लगता कि भाभी तनिक चीनी कम पीतीं हुइये..तब?
ऑन्टी ने घूँट भरा- "आ...ह...अब ठीक है...लौ पियो..पियो..चाय बहुत नीक बनाती है हमारी रजनी।"
मैं अभी तक चाय को केवल फूँक रही थी, पर बिन पिये ही लगा मेरे अपने होंठ आपस में चिपक गये हों। दूध का जला छाछ भी फूँक फूँक कर पीता है। यहाँ मैं इस धरती की वो प्राणी हूँ जो कड़वी-मीठी-फ़ीकी हर प्रकार की चाय को भुगतने के बाद बस चाय को फूँकते ही रहना चाहती हूँ, पीना कभी नहीं।
कैसे भी करके चाय का एक घूँट लिया। ऐसी चिकनाई भरी गंधाती हुई चाय..कि बस...कै ही हो जाये। मन किया कह दूँ-...नीक नहीं... नाक में दम करने वाली चाय बनाती है, रजनी। और जो ये चीनी कम है, तो ऑन्टी आपके कप में चीनी ज़्यादा कैसी होगी। सर भन्ना गया बस।
पता नहीं भारत जैसे गर्म प्रदेश में ये चाय पीने-पिलाने की रीत किसने बना दी? अच्छा खासा जब लोग किसी के घर मिलने जाते थे,तो लोग गुड़- पानी देते थे, छाछ- मट्ठा-लस्सी पिलाते थे। फ़िल्मों में अक्सर देखा है लोग मेहमान के आने पर पूछते हैं 'ठंडा लेंगे या गर्म' । पर वास्तव में तो ऐसा कोई पूछता ही नहीं, सीधे दस मिनट बाद खौलती हुई चाय आपके सामने पेश कर दी जाती है।
एक घूँट के बाद मैं चाय का कप थामे उठी और इधर इधर टहलने लगी। कभी कमरे की सजावट के बहाने..कभी कैलेंडर.. कभी पोस्टर...कभी कुछ,कभी कुछ। ऑन्टी को अपनी रजनी के गुणों का बखान करने के लिये और मैटीरियल मिल गया। ये तोरण रजनी ने बुना है..ये सीनरी रजनी ने बनाई है। मैं हाथ में चाय का कप लिये, चेहरे पर नकली मुस्कान, नकली विस्मय लिये- अच्छा अच्छा..बहुत बढ़िया...कहती जा रही हूँ। क्योंकि मेरा ध्यान तो उस आपदा पर है जो सामने 'स्टॉर्म इन अ टीकप' बनी है और मुझे कैसे भी करके झेलनी है।
मेरा हाथ और मन दोनों इस बोझ से थक गये हैं। थोड़ी ही देर में मैं बालकनी में जाती हूँ, अगल बगल देखती हूँ...एक ख़ाली डिब्बा कबाड़ में किनारे पड़ा है। बस मुझे इस आपदा से निपटने का अवसर दिख जाता है। फौरन चाय उसी में उंडेल कर मैं विश्व विजेता की मुस्कान धारण करके वापस ऑन्टी के पास आ जाती हूँ।
बस ऐसे ही अनेकों चाह-दुर्घटनाओं को झेलने के बाद मैंने जीवन-बीमा करवा लिया।
"मैं चाय नहीं पीती!"
वास्तव में नहीं पीती... चाय छोड़े दस साल हो गये।
~टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ।
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