Sunday 4 November 2018

बच्चा अकेला फील करता है

यवनिका का एक ही बेटा था कौस्तुभ। सात- आठ  साल का प्यारा सा गोल मटोल सा मेधावी बच्चा। अपना पूरा संसार वो उस पर लुटा देती थी। पर एक ही दिक्कत थी। वो अकेली संतान होने का दंश झेल रहा था। कहता था," माँ, मेरा भी कोई भाई होता या बहन होती तो कितना अच्छा होता। "  उसके पापा देर रात घर लौटते थे। वो खुद तो दोपहर में घर पहुंच जाती थी और उसे पूरा समय देने की कोशिश करती थी। पर भाई या बहन की कमी को वो किसी हालत में पूरा नही कर सकती थी।

यवनिका कैसे समझाती कि अपनी नौकरी और छोटे कौस्तुभ को संभालने के झंझटों में उसने दूसरा बच्चा किया ही नही और अब वो मेडिकली फिट भी नही है बच्चा प्लान करने के लिये। उसकी दोनों फेलोपियन ट्यूब्स बंद हैं। आई वी एफ का महंगा खर्च और उसके पति की ट्रान्सफर वाली जॉब उसके लिये दूसरा बच्चा करने के सारे विकल्पों पर प्रश्नचिन्ह लगा देते है।

आखिर में दोनों पति पत्नी ने तय किया एक कौस्तुभ ही बहुत है। बस इसकी ही अच्छी तरह से  परवरिश की जाये, यही बहुत है। पर कौस्तुभ का यूँ अकेला फील करना , गुमसुम रहना दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा था। ये दोनों की चिंता का विषय था।

यवनिका ये अक्सर नोटिस किया था कि कौस्तुभ को पपीज बहुत पसंद है। छोटे पर भी वो कुत्तों को 'भौंभौं' कह के पुकारता था और उनके साथ खेलना चाहता था। यवनिका ने थोड़ा कलेजा मजबूत किया और कौस्तुभ के लिये एक लैब्राडोर पपी ले आयी। कौस्तुभ के लिये वो पपी जैसे एक एंजेल बन के आया। उसने उसका नाम रखा 'बिंगो '।

अब कौस्तुभ बहुत खुश रहने लगा। वो उसी में इन्वोल्वड हो गया, उसका ख़्याल रखने लगा, उसके साथ खेलता था , दौड़ता था, उसे पार्क में घुमाता था। स्कूल से जब वो लौट कर आता, बिंगो दौड़कर उसका स्वागत करता और उसे चाटने लगता। जितने समय कौस्तुभ स्कूल में रहता बिंगो दरवाजे पर बैठकर उसका इंतज़ार करता रहता। कौस्तुभ और उसके पापा रोज यू ट्यूब से देख देख कर नये कमांड्स सिखाते थे। बिंगो सिट कहने पर बैठना, जमीन पर झुक कर सैल्यूट करना, पीछे दोनों पैरों पर खड़े होकर नमस्ते करना सब सीख गया था । देखते देखते बिंगो कौस्तुभ की जान बन गया । कौस्तुभ के अकेलेपन का इलाज यूँ चुटकियों में हो जायेगा, यवनिका ने सोचा न था। ......... उसने राहत की सांस ली। उसके बेटे को एक सच्चा और प्यारा दोस्त मिल गया था।

किसी के घर में कोई Pet या कुत्ता देखकर आप सोच सकते है क्या फालतू शौक है, जानवरों पर लोग बेकार ही समय और पैसा खर्च करते हैं। पर यदि आपका बच्चा अकेला है, तो एक pet या पपी उसका बहुत खास दोस्त हो सकता है। जिन घरों में पपी पाले जाते है वो बच्चे अन्य घरों के बच्चों के मुक़ाबले ज्यादा खुश रहते हैं।

जो बच्चे डॉग्स के साथ पलते बढ़ते है, वो उनमें बहुत अधिक लगाव रखने रखते हैं। डॉग्स के अंदर भी ये प्रवृत्ति पायी जाती है कि वो बेबीज़ का बहुत ख़्याल रखते हैं। बच्चों को वे बहुत प्यार करते है। इससे बच्चे स्ट्रेस का शिकार नही होते और उनके डिप्रेशन में जाने की संभावना कम हो जाती है। डॉग्स की उछल कूद , उसकी शरारतें  बच्चों को हंसाने पर मजबूर कर देतीं है और वो कई प्रकार की मानसिक समस्याओं से बच जाते है।

कई शोधों से पता चलता है कि घर में डॉग्स के होने से हमारे दिमाग मे स्रावित होने वाले हार्मोन्स सेरोटोनिन और ऑक्सीटोसिन में बढ़ोतरी होती है। ये दोनों ही हार्मोन्स हमारे मूड को अच्छा करने में अहम भूमिका निभाते हैं। साथ ही ये भी पाया गया है कि मूड अच्छा रहने से हृदय सही ढंग से काम करता है और हम हार्ट अटैक या हृदय संबंधी बीमारियों से बचे रहते हैं।

इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों का मानना है कि जिस घर में डॉग्स होते है, उस घर में बच्चों के अंदर जानवरों के प्रति संवेदनशीलता का स्तर बढ़ जाता है। वो घर से बाहर भी जानवरों के प्रति सहानुभूति और दया का भाव रखते हैं। बच्चों का और उनके अभिभावकों का डॉग्स के कारण सामाजिक दायरा भी बढ़ता है क्योंकि उनकी देख रेख और उन्हें घुमाने की वजह से अन्य लोगों से मेलजोल बढ़ता है। इन दोनों ही बातों को काफ़ी सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जा सकता है।

अतः यदि आपका इकलौता बच्चा अकेलेपन और मायूसी का शिकार है, और आप उसकी इस परेशानी को वास्तव में दूर करना चाहते हैं तो उसे एक पपी गिफ़्ट करके देखिये। आपको शुरू में थोड़ा कष्ट तो जरूर होगा पर फिर आपको वो भी अपने ही परिवार का सदस्य लगने लगेगा।

सारे रिश्ते भगवान ही बना के दे जरूरी नही है, हम चाहे तो इस कायनात में किसी को भी प्यार और अपनेपन के रिश्ते में बांध सकते हैं।

Happy Reading ☺

Twinkle Tomar Singh



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