Sunday 28 July 2019

सौतन का फ्रेंडशिप डे गिफ़्ट

"ऋतु मुझे पता है अगर मैं तुमसे कहूँ कि मुझे अच्छा नही लगता तुम मेरे पति से हँस हँस कर बात करती हो। मेरी अनुपस्थिति में भी तुम दोनों आराम से बैठे बात करते रहते हो। माना कि तुम दोनों के बीच सिर्फ़ दोस्ती का रिश्ता है और मुझे अच्छा नही लगता। जलन होती है। लगता है कि शेखर तुम्हारी तरफ आकर्षित हो रहें हैं।" मेरे सामने बैठी वो न मालूम क्या क्या किस्से सुनाये जा रही थी। बीच में ख़ुद ही जोक्स मारकर हँसती थी। बातों का मायाजाल फैलाने में तो बहुत माहिर है हमेशा से। पर मेरे मन में उससे कोई और ही बातचीत चल रही थी।

कितनी बार सोचा उसे बोल दूँ ये सब। पर हिम्मत नही हुई। क्या सोचेंगे दोनों मेरे बारे में। यही न मेरी सोच कितनी गिरी हुई है। या फिर ये कि मुझे ईर्ष्या होती है दोनों को साथ देखकर। तो हाँ सच ही तो है। होती है। क्यों मुझे लगता है जिन निगाहों से शेखर मुझे देखता है उन पर सिर्फ़ मेरा हक़ है। जो तारीफ़ के लफ्ज़ शेखर के मुँह से निकलते हैं उन पर सिर्फ़ मेरा हक़ है।

"क्या सोच रही हो ? कबाब तो तुम वाकई मस्त बनाती हो।" जवाब नही तुम्हारा। ऋतु कह रही थी। "हुह... हाँ मैंने अपनी जिठानी से सीखा है।" मैं बिना किसी भाव के उत्तर दे रही थी।

"क्या हूँ हाँ...हूँ हाँ लगा रखा है। लगता है जैसे किसी और ही दुनिया में। मेरी प्यारी दोस्त मैं तुम्हें ऐसे उदास नही देख सकती।" इतना कहकर ऋतु ने मुझे गले लगा कर किस किया और जल्दी में अपना पर्स उठा कर बोली-" सॉरी बेब, अब मुझे निकलना है। घर पर बेटा इंतज़ार कर रहा होगा। बाई द वे फ्रेंडशिप डे वाले दिन तुम क्या कर रही हो? मैंने एक सरप्राइज प्लान किया है तुम्हारे लिये। कहीं बाहर मत जाना उस दिन। ठीक है। ओ के मैं निकलती हूँ बाय।" तूफान की तरह ये सब बोल कर अपनी स्कूटी स्टार्ट करके वो चली गयी।

मैं किंकर्तव्यविमूढ़ वहीं खड़ी थी। आज भी उसे कुछ नही कह पायी। कितनी कम उम्र है इसकी बस तीस साल और इस उम्र में अपने पति को खो चुकी है। एक बेटा है पाँच साल का। नौकरी कोई बहुत अच्छी नही है। तीन पाँच करके किसी तरह सारे खर्चे चलाती है। ससुराल से अपशकुनी कह कर निकाला जा चुका है लव मैरिज जो की थी उसने। उसे उसके बेटे के साथ देखती हूँ तो वो दोनों एक तस्वीर की तरह दिमाग में बस जाते हैं। बहुत दया आती है। जब कभी रो रो कर अपना दुःख बताती है तो कैसे कहुँ मैं भी रोती हूँ उसके साथ। भगवान किसी के साथ ऐसा न करे। एक सहेली वाला सारा प्यार इस पर उमड़ आता है।

वहीं फिर शाम को शेखर के साथ बात करते देखती हूँ। मुझे क्यों असुरक्षित महसूस होता है? क्यों लगता है इसका पति नही है इसीलिये ये मेरे पति को.....मैं रसोई में खाना बना रही हूँ और दोनों ड्राइंग रूम में बातें कर रहे है। मुझे अच्छा नही लगता। पल पल मेरी यही कोशिश होती है मैं कमरे में पहुँच जाऊं। कभी सब्जी जलती है कभी रोटी कभी ख़ुद मैं.....। एक बार लाइट गयी और पूरा अंधेरा हो गया। इन्वर्टर भी खराब था। मैं सब कुछ छोड़ कर दौड़ती हुई आयी कहीं अंधेरे में दोनों .....लिपट न जाये....किस न कर लें....छी.. कितना गंदा दिमाग है मेरा।

उसका एक ही व्यक्तित्व दो हिस्सों में बँटा है मेरे लिये। कभी उस पर बहुत ममता आती है कभी मैं उससे सिर्फ़ ईर्ष्या करती हूँ। मेरे लिये वो दो भूमिकाओं में आकर खड़ी हो जाती है कभी सहेली कभी सौतन।

"आज फ्रेंडशिप डे है क्या बोला था उसने कोई सरप्राइज देगी। क्या हो सकता है भला? हुँह मुझे कुछ गिफ़्ट करना तो बहाना होगा। शेखर को ही कुछ गिफ्ट करना होगा। गिफ़्ट से संबंध प्रगाढ़ जो होते हैं।" मन अपनी गणनाओं में लगा हुआ था। सोचा जरा बाहर निकल कर देखा जाये। ऋतु का घर दो घर छोड़ कर ही था। तभी रोज का इतना ज्यादा मिलना जुलना था। देखा तो भौंचक्क रह गयी। ऋतु के घर ट्रक आया हुआ था। समान पैक करके लादा जा रहा था।...धक्क...ये क्या हुआ? कैसी फीलिंग हुई बता नही सकती खुशी या दुख?

दौड़ती हुई मैं उसके घर पहुँची। "ऋतु...ये किसका समान पैक हो रहा है?" ऋतु को देखते ही मैं बोली। ऋतु शांत थी ,बोली-"अंदर आओ।" हम दोनों अंदर पैक्ड कार्टन पर बैठ गये। ऋतु ने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया," स्नेहा, माना मैं बुद्धि में तुमसे कम हूँ, तुम्हारे जितनी इंटेलीजेंट भी नही हूँ। पर इतनी भी अनपढ़ और बेअक्ल नही कि तुम्हारी आँखों को न पढ़ पाऊँ। तुम्हें क्या लगता है जो बात तुम मुझसे कभी कह नही पाओगी वो मैं सुन नही पाऊँगी? शेखर को मुझसे बात करना कितना और क्यों अच्छा लगता है मैं वास्तव में नही जानती। और मुझे भी लगता है मेरी ही तरफ से कुछ गलत कदम न उठ जाये। मुझे निश्चय करना था मुझे सौतन बनना है या सहेली। मैं सहेली बन कर रहना चाहतीं हूँ। मुझे फ्रेंडशिप डे के दिन किसी एक की दोस्ती को चुनना था शेखर की या तुम्हारी। मैंने तुम्हारी दोस्ती चुनी है स्नेहा। यही है मेरा फ्रेंडशिप डे का गिफ़्ट। दूर रहकर थोड़ी तो दूरियाँ आयेंगी ही। और शेखर से और दूर होने की कोशिश करूँगी, ये मेरा वादा है।"

ऋतु ने फिर से मेरे गाल पर किस किया। मैं कुछ बोलने की स्थिति में नही थी। मेरा गला रुंधा हुआ था।

©® Twinkle Tomar Singh

Wednesday 24 July 2019

एक बचाया गया रुपया एक कमाये गये रुपये के बराबर है

चारु और स्नेहा के पति एक ही ऑफिस में काम करते थे। दोनों आपस में बहुत अच्छे मित्र थे। चारु और स्नेहा भी पतियों की दोस्ती के नाते अब आपस में बहुत अच्छी दोस्त हो गईं थीं। अक्सर उन दोनों का एक दूसरे के घर आना जाना लगा रहता था।

दोनों के पतियों की आय लगभग बराबर ही थी। पर चारु को पैसों की हमेशा कमी बनी रहती थी। और स्नेहा बड़े आराम से घर का खर्चा चला लेती थी। यहाँ तक कि अगर उसे अपने मन की कोई चीज़ खरीदनी है कोई म्यूजिक सिस्टम या इलेक्ट्रॉनिक आइटम या अपने मन की ड्रेस तो उसके पास हमेशा पैसे निकल आते थे।

चारु जब उसके घर जाती ये सब देख कर हैरान होती थी। सोचती थी ये कैसे इतनी आय में सब मैनेज़ कर लेती है। पूरा घर सजा संवरा, व्यवस्थित। किसी चीज़ की कोई कमी नही। हर चीज़ में नफ़ासत नज़ाकत और एक क्लास झलकती थी। चारु सोचती थी जरूर इसके मायके से इसे पैसे का सपोर्ट होगा। वर्ना क्लास बिना पैसों के कहाँ आ जाता है?

संयोग से दोनों दम्पति जोड़ियों ने एक ही बिल्डिंग में फ्लैट ले लिया। चारु और स्नेहा दोनों के पतियों ने लोन लेकर फ्लैट कराया था। दोनों ही अपनी सैलरी से एक बड़ी ई एम आई कटवा रहे थे। दोनों की आय अब पहले से कम हो गयी थी। जहाँ एक ओर चारु के लिये घर चलाना भी मुश्किल हो रहा था वहीं स्नेहा के चेहरे पर शिकन नाम की चीज़ नही थी। वो अब भी पहले जैसे मुस्कुराती थी मस्त रहती थी और सारे खर्चे मैनेज कर लेती थी।

एक दिन जब चारु स्नेहा के घर पर बैठी थी चारों ओर उसका घर निहार रही थी, उसके घर की भव्यता के आगे झुकी जा रही थी, तो उससे रहा नही गया। चाय का कप हाथ में लेते हुये उसने कहा- "अच्छा स्नेहा मायके से थोड़ा सपोर्ट मिल जाये तो गृहस्थी ठीक से चल जाती है। है न।"

" हाँ बहन ठीक कह रही हो। मायका अगर सम्पन्न हो तो गृहस्थी की गाड़ी में ज़्यादा रोड़े नही आते। पर हमारी ऐसी किस्मत कहाँ?" एक ठंडी साँस लेते हुये स्नेहा ने कहा। पर दूसरे ही क्षण हँसने लगी। "ठीक भी है यार अच्छा ही है ज़्यादा मायके का एहसान न ही लेना पड़े तो ठीक है।"

चारु के लिये ये एक आश्चर्य का क्षण था। " क्या कह रही हो? मुझे तो लगता है तुमको मायके से बहुत सपोर्ट है। ये घर की रौनक, सारे खर्चे, बच्चे का रहन सहन देख कर लगता ही नही हमारी और तुम्हारी आय एक जैसी ही है। झूठ क्यों बोल रही हो बहन। इसमें छुपाने जैसी क्या बात है?"

स्नेहा एक समझदार मैच्योर स्त्री थी। उसने चारु की बात का बिल्कुल भी बुरा नही माना। बल्कि उसने भी महसूस किया था चारु को गृहस्थी चलाने में दिक्कत होती है। स्नेहा ने मुस्कुराते हुये कहा- चारु, मेरे पिता जी बैंक में क्लर्क थे। क्लर्क जानती हो न बस जिंदगी भर अपनी बेटियों के लिये दहेज जोड़ता रह जाता है और फिर उसके बाद जब उसकी बेटियों की शादी हो जाती है तो वो कंगाल हो जाता है। जैसे तैसे माँ बाबूजी हम तीनों बहनों की शादी करने के बाद और भाई को अच्छी शिक्षा दिलाने के बाद पेंशन से गुजारा कर रहे है। भाई की अभी कोई खास अच्छी आय है नही। अब बताओ जरा वो मेरी क्या मदद करेंगे।?"

" सॉरी स्नेहा, मुझे मालूम नही था। मैंने तुम्हारा रहन सहन देख कर गलतफहमी पाल ली थी। प्लीज़ बुरा मत मानना।" चारु ने धीमी आवाज़ में कहा।

स्नेहा ने चारु के दोनों हाथ पकड़ कर कहा,"अरे दोस्तों की बात का भी कोई बुरा मानता है। कोई बात नही। अरे देखो मैंने धीमी आँच पर दूध चढ़ाया था। अभी गैस बंद कर के आती हूँ।" ये कहकर स्नेहा रसोई में चली गयी। उसके पीछे पीछे चारु भी बात करते करते आ गई।

तभी चारु ने देखा कि स्नेहा ने गैस बंद की फिर सलाद में बचे हुये प्याज़ के टुकड़े एक सिरके वाले जार में डालती जा रही है। " ये क्या कर रही हो स्नेहा।" चारु ने पूछा।
" कुछ नही इस बची हुई प्याज़ का और क्या करूँ भला। फ्रीज़ में रखो तो फ्रीज़ महकने लगता है। इस प्याज़ को पीस कर सब्जी में वो टेस्ट नही आता। तो मैं इन्हें सिरके में डाल देतीं हूँ और ये दोगुनी टेस्टी हो जाती हैं।"

तभी स्नेहा का बेटा दौड़ता हुआ आया और कहने लगा-" मम्मी , मम्मी मुझे क्ले चाहिये। पहले वाला क्ले ख़राब हो गया।"

" अच्छा मेरा राजा बेटा बस पांच मिनट दो अभी बनाती हूँ तुम्हारा क्ले।" ये कहकर स्नेहा ने थोड़ा सा आटा लिया, थोड़ा सा नमक लिया, थोड़ा सा रिफाइंड, और थोड़ा सा वाटर कलर। सबको मिक्स किया और पांच मिनट में बेटे के मन के रंग का क्ले तैयार था।

चारु देखती रह गयी। उसके मन पर छाये बादल छट चुके थे। उसे बचत का गुरुमंत्र मिल चुका था। उसे समझ आ गया था स्नेहा को मायके से नही उसकी अपनी बचत का सपोर्ट है। वो कहते है न एक बचाया गया रुपया भी एक कमाये गये रुपये के बराबर होता है।

" हाँ चारु, हम क्या बात कर रहे थे। हाँ मेरे मायके से कोई सपोर्ट नही है। बस मैं ही हर चीज़ में बचत करने के लिये दिमाग़ लगाती हूँ......" स्नेहा ने बस इतना ही कहा था कि चारु ने उसके मुँह पर हाथ रख दिया। " बस स्नेहा तुम्हें कुछ कहने की जरूरत नही है। मुझे जो सीखना था वो मैंने तुमसे सीख लिया। बस ये दोस्ती कभी मत तोड़ना जिससे आगे भी मैं तुमको देख देख कर सीखती रहूँ। तुम्हारे जैसी गुणी सखी बहुत भाग्य से मिलती है।"

"अच्छा चारु, चल फिर ठीक है, पहली बचत से मुझे ही गुरु दक्षिणा देना।" स्नेहा ने चुटकी लेते हुये कहा और दोनों सहेलियां ठहाका मारकर हँसने लगीं।

©® टि्वंकल तोमर सिंह



Tuesday 23 July 2019

मीनार

"जानती हो, मीनारों के अंदर रास्ते घुमावदार क्यों होते हैं? क्योंकि पतली सी पतली मीनार भी सिर्फ़ घुमावदार सीढ़ियों के सहारे अधिकतम ऊँचाइयों तक पहुँच सकती है।"इंजीनियर पति ने इमारत की घुमावदार सीढ़ियों के अंत में छन कर आते हुये आकाश की ओर देख कर कहा।

"जानती हूँ। जीवन में भी कई बार लगता है कितने घुमावदार रास्तों पर हम भटक रहे हैं। जिस दिशा से चलना शुरू करते है वापस उसी दिशा में आ खड़े होते है। लगता है आगे बढ़े ही नही। पर कोई है न ऊपर बैठा जो हमें सीढ़ी दर सीढ़ी ऊपर उठा रहा होता है। पता तभी चलता है जब वो मीनार बन कर तैयार हो चुकी होती है और हम ऊँचाइयों से नीचे देख कर मुस्कुरा रहे होते हैं। "दार्शनिक पत्नी ने मन्द मुस्कान के साथ उत्तर दिया।

इस बिल्डिंग में एक फ्लैट की चाहत उनकी अधूरी रह गयी थी। लोन रिजेक्ट हो चुका था। पर फिर भी दोनों हँस रहे थे क्योंकि उनके सपनों ने सीढ़ियाँ चढ़ना नही छोड़ा था न।

©® Twinkle Tomar Singh

Thursday 18 July 2019

वो शख़्स

वो शख़्स कितना ऊँचा था जो अपने
बच्चों की ख़ातिर हर जगह झुका था

Twinkle Tomar Singh

Monday 15 July 2019

हमने देखी है उन आंखों की महकती ख़ुशबू

"मम्मी आपको पता भी है आप क्या कह रही है।" बेटा शेखर जो कि एक मल्टीनेशनल कंपनी में ऊँचे पर है, सबको दिन भर आर्डर देता रहता है, घर में पत्नी बच्चों को भी ऑर्डर देता रहता है, आज अपनी माँ के इस फरमान को पचा नही पा रहा था।

"माँ आप समझती क्यों नही? मेरी समाज में कितनी इज्जत है। सब मिट्टी में मिल जायेगी। कितना नाम खराब होगा मेरा कुछ सोचा इस बारे में। शिखा तुम ही समझाओ मम्मी को।" शेखर दोनों हाथों से सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गया। बहू शिखा ने शेखर की ओर देखा हालांकि वो शेखर के विचारों से कहीं न कहीं सहमत नही थी फिर भी उसने मन्द स्वर में मम्मी को समझाते हुए कहा-" मम्मी जी आपको किस चीज़ की कमी रखी है हमने? जहाँ चाहे आप घूमने जाती है एक कार एक ड्राइवर छोड़ रखा है आपके लिये। पैसे की कोई कमी नही रखी। आपकी सारी इच्छाएं हम पूरी करते हैं। फिर ऐसा क्या हो गया?"

" माँ भैया भाभी सही कह रहे हैं। आपको किसी चीज़ की कमी नही। आपके मनोरंजन के सभी साधन है। आपका दिल ऊबता हो ऐसा तो कोई कह ही नही सकता। फिर अचानक ये क्या हो गया है आपको।" बेटी नेहा जिसे विशेष रूप से इस मामले को सुलझाने के लिए बुलाया गया था अपनी माँ के पास बैठी उनका हाथ अपने हाथ में लिये समझा रही थी। कौशल्या देवी सिर झुकाये बच्चों की बातें सुन रहीं थीं। उन्होंने अपने फैसले को एक फरमान की तरह सुना दिया था और वो उस पर कायम थीं।

शादी के पाँच साल बाद से ही वो विधवा होने का दंश झेलती आ रहीं थीं। कितनी मुश्किल से बच्चों को पाला पोसा।उनकी क़िस्मत में भगवान ने सिर्फ़ संघर्ष ही लिख दिया था। सारी इच्छायें सारी कामनायें उन्होंने दबा कर रख लीं किसके लिये इन बच्चों के कारण ही न। छोटी उम्र में विधवा हो जाने के कारण इतना संयम इतनी समझ नही थी कि फ़िल्म में रोमांस वाले सीन देख कर पुलकित नही होना है, रोमांटिक गीत नही गुनगुनाने हैं, काम इच्छा को जगने नही देना है। फिर भी जैसे जैसे परिपक्व हुईं अपने जीवन से प्रेम, आकर्षण, रस, माधुर्य सबको निकाल फेंका, बस एक तपस्विनी के जीवन को अपना लिया।

जीवन की संध्या हो चली थी। पर कहीं से बारिश वाले बादल भी उनके जीवन के आकाश में छाने लगे थे। कुछ बौछारें कुछ छीटें पड़े तो उनका तप पिघलने लगा, उन्हें भी अपनी ज़िंदगी अपने ढंग से जीने का चाव हो आया। समीर सिंह उनके जीवन में किसी ठंडे हवा के झोंके के समान आये थे। जैसे वो अग्नि परीक्षा देने के लिये इतने सालों से लगातार जलते हुये कोयलों पर चलती जा रहीं हों और अचानक से किसी ने उनका हाथ पकड़ कर खींच लिया हो...अचानक किसी ने बारिश की ठंडी फुहारों के नीचे खड़ा कर दिया हो....

" मम्मी बोलती क्यों नही हो कुछ?"शेखर की आँखें और जुबान दोनों आग उगल रहीं थीं। जलते हुये कोयले फिर से अपनी चमक दिखा रहे थे। " आपने ये भी नही सोचा कि वो आपसे आठ साल छोटे हैं। क्या कहेगा ये समाज?आप समझ नही रहीं हैं उसकी नज़र हमारे पैसों पर है। हमारे फ्री के पिता बनकर जीवन भर हमसे सेवा कराना चाहता है वो। ख़ुद तो जीवन भर शादी की नही। ट्रैवलर है एडवेंचरर हैं....माय फुट.. जिंदगी भर कुछ कमाया नही अब सोच रहे हैं कहीं से रईस बच्चे मिल जायें और उनका बुढ़ापा अच्छे से कट जायें।" शेखर लॉजिक की सारी बातें रख रहा था। उसका दिमाग ये मानने को तैयार ही नही था उसकी माँ को इस उम्र में प्रेम हो सकता है। या उनसे आठ साल छोटा मनमौजी आदमी उनसे प्रेम कर सकता है।

"बस....." जब समीर पर लालची होने का इल्ज़ाम लगाया गया तो कौशल्या से सहन नही हुआ। कैसे समझाये बच्चों को उन्होंने देखी है उन आंखों की महकती खुशबू....

"बस शेखर बहुत हुआ.... सच कहूँ तो जीवन में संघर्षों ने इतना मुझे रगड़ा है कि तुम्हारे पिता की कोई याद तक मेरे ज़ेहन में नही रह गयी और फिर कब तक रोती उनके लिये ? समीर ट्रैवलरर हैं,एडवेंचरर हैं, हो सकता है उनके लिये इस उम्र में अपने से आठ साल बड़ी एक औरत से प्रेम करना भी एक एडवेंचर ही हो.... मगर उनके इस खिलंदड़ नेचर ने मुझे एक नई ताज़गी से भर दिया है। मैं शायद इतना पूरी ज़िंदगी नही हँसी हूँ जितना उनके साथ पार्क में बिताये एक घंटे में हँस लेती हूँ। और तुम इसकी फ़िक्र मत करो कि बुढ़ापे में तुम्हें उनकी एक फ्री के पिता की तरह सेवा करनी होगी। उन्होंने अपना इंतज़ाम एक वृद्धाश्रम में कर रखा है।"

"शेखर, शिखा, नेहा....सारी ज़िन्दगी दिमाग ने मेरे दिल के ऊपर शासन किया है। अब समय आ गया है कि मैं सिर्फ़ अपने दिल की सुनूँ, ये दिल अब जो चाहता है वो चाहता है। बचपना सही, जिद सही....मैं कुछ पल अपनी ज़िंदगी से अपने लिये चुराना चाहती हूँ। इतना तो हक़ है ही मुझे अपनी जिंदगी पर।" कौशल्या देवी ने एक साँस में सब कह डाला। अब वो बहुत हल्का महसूस कर रहीं थीं।

बहू शिखा ने एक दृष्टि अपने पति की ओर डाली, उसका तनाव से भरा झुका हुआ चेहरा उसे दुःखी कर रहा था...फिर भी वो मम्मी जी के पास जा बैठी और उसने हल्की मुस्कान के साथ पूछा- "अच्छा मम्मी ये बताओ लड़के की और कोई स्पेशल डिमांड तो नही हैं?" नेहा और शेखर सुन कर चौंक उठे। नेहा ने अपने आँसू पोछे और कहा- "हाँ मम्मी उनसे कह देना हम बारातियों का स्वागत सिर्फ़ पान पराग से करेंगे।" जल्दी ही बहू और बेटी दोनों मिलकर मम्मी को दुल्हन की तरह सजा कर विदा करने की तैयारी कर रहीं थीं।

©® टि्वंकल तोमर सिंह


Friday 12 July 2019

छतरी वर्सेस छत्र

इस दुनिया में इंसान के पास अलग अलग तरह के छत्र है।जी हाँ छतरी नही 'छत्र' जैसे राजा महाराजाओं के पीछे उनके अर्दली सर पर तान कर चलते हैं,ठीक वैसे ही छत्र। किसी से पास धन-अहंकार का छत्र है,किसी के पास विद्वता-घमण्ड का छत्र तो किसी के पास सौंदर्य-अहम का छत्र।हर कोई इस छत्र को ऊँचे से ऊँचे टाँग देना चाहता है।एक अजीब सी दौड़ है।सारा आकाश ऊँचाइयों पर पहुंचने की होड़ लेते छत्रों से भर गया है।
वो ऊपर बैठा मुस्कुरा कर देखता रहता है,तुम्हारे हर तने छत्र को उसने अपनी नीली छतरी से जो ढक रखा है।

Saturday 6 July 2019

करियर वुमन थी अब बस माँ बनना चाहती हूं

तनीषा ने ये किट्टी ग्रुप क्यों जॉइन किया ? उसे ख़ुद पर हैरत होती है। उसे तो अकेले रहना पसंद था। इस बिल्डिंग में वो नई नई आयी थी। शायद सबको जानने के लिये समझने के लिये और सबसे दोस्ती बढ़ाने के लिये ही उसने ये किट्टी ग्रुप जॉइन कर लिया।

पड़ोस की मिसेज़ शर्मा ने बताया कि "वो एक किटी ग्रुप की सदस्य हैं। बड़ा मजा आता है। सब मिलकर हँस बोल लेते हैं। टाइम पास हो जाता है। और पैसों की बचत भी हो जाती है।" उनके जोर देने पर तनीषा ने थोड़ा सकुचाते हुये किट्टी ग्रुप जॉइन कर लिया। सामाजिक होना डिप्रेशन दूर करने का सबसे कारगर तरीका है। अब जो बीत गया सो बीत गया। यही सोच कर उसने लोगों से घुलना मिलना शुरू कर दिया था।

तेजस उसे बहुत प्यार देता, उसका ख़याल रखता था, पर वो दिन में उसके साथ नही रह सकता था। वो जानता था ख़ालीपन ,ख़लिश और बीती हुई दुःखद घटना तनीषा को कहीं अंदर ही अंदर तोड़ रही थी। इसीलिये उसने भी जोर दिया, किट्टी ग्रुप जॉइन करो, पार्क में टहलने जाया करो, सबसे मिला करो बात किया करो। कुछ कुछ तनीषा की कोशिश रंग ला रही थी।

आज दोपहर मिसेज़ शर्मा के घर किट्टी पार्टी थी। बिल्डिंग की सभी औरतें सज धज कर आई थीं। ऐसा लगता था जैसे कोई ब्यूटी कम्पटीशन होने जा रहा हो। किसी के कान का झुमका अदा से इतरा रहा था, तो किसी के गले का हार अपनी चमक से सबको फीका किये पड़े था। साड़ी, गाउन ड्रेस, सूट उफ़्फ़ पूछो मत बिना रैंप के फैशन शो होने वाला था। तनीषा ये सब देख कर मन ही मन मुस्कुरा रही थी। कहने को किट्टी पार्टी है पर सब दिखाना चाहतीं है कोई किसी से कम नही है। उसे थोड़ी उलझन भी हुई। इन सबके लिये तो उसने किट्टी ग्रुप जॉइन नही किया था न।

मिसेज़ शर्मा एक बहुत ही कुशल गृहिणी थीं। नाश्ते की उन्होंने बहुत ही अच्छी व्यवस्था की थी। सैंडविच, पेस्ट्री, कोल्ड कॉफी, रसगुल्ले, दही बड़े सब सजा कर उन्होंने अपनी काबिलियत का परचम लहरा दिया था। एक से बढ़कर एक पकवान। सबने ख़ूब मन से खाया और खुले दिल से तारीफ़ की।

जब सब खाना पीना, मिलना मिलाना, एक दूसरे के कपड़े गहनों की तारीफ़, सास ननद की बुराई निपट गयी तब बारी आई एक्टिविटी पार्ट की। आज ज्यादा समय नही था सबके पास तो ज़्यादा कुछ नही बहुत साधारण सी एक एक्टिविटी रखी गयी थी। सबको बताना था कि अगर आज उन्हें कोई करियर चुनने की स्वतंत्रता मिले तो वो कौन सा करियर चुनना चाहेंगीं? या ऑलरेडी अगर किसी करियर में है तो वो कौन सा करियर स्विच करना चाहेंगीं। करियर के साथ इसे चुनने का कारण बताना था और तीन मिनट इस पर बोलना था।

किसी ने कहा टीचर, किसी ने कहा डॉक्टर, किसी ने कहा इंजीनिअर। किसी ने कहा शेफ किसी ने कहा ब्यूटीशियन किसी ने कहा बुटीक चलाना कला का काम है। किसी किसी ने बड़े फनी से करियर भी बताये जैसे सुपर मैन, शक्तिमान, स्पाइडर मैन आदि। क्योंकि जितना काम उन्हें करना पड़ता है उतना काम कोई सुपर मैन ही कर सकता है। काफी हँसी ठठ्ठा हुआ इस पर।

अब तनीषा की बारी आयी। भीड़ में भी उसके अंदर एक तन्हाई चलती रहती थी। तनीषा भारी मन से उठ खड़ी हुई। न चाहते हुये भी उसके दिमाग में बीते समय की सारी घटनाओं की रील चलने लगी। एम बी ए  करके एक अच्छी कंपनी में कई सालों तक उसने जॉब किया था। करियर के चक्कर उसने ध्यान ही नही दिया कि हर एक चीज़ की एक उम्र होती है। उम्र निकल जाये तो करियर और पैसा भी कुछ काम नही आता। शादी देर से , फिर बच्चा और देर से प्लान किया, उसे प्रमोशन जो चाहिये था....इस देर के चक्कर में देर होती चली गयी....फिर बच्चा उसकी कोख में तो आया...पर कुछ दिनों का मेहमान बनकर। फिर यहाँ सिलसिला रुका नही....एक के बाद तीन तीन मिसकैरेज....आज वो जॉब से छुट्टी पर है। बस बच्चे की ही प्लानिंग पर लगी हुई है। सोचती है क्या मिला ऐसे करियर से जब स्त्री होकर भी पूर्ण न हो सकी।

आज एक तराजू पर कोई उसका करियर ,पैसा, तरक्की सब रख दे...बस दूसरी तरफ़ पलड़े में किसी भी तरह उसकी सूनी गोद भर जाये।

अपने भर आये मन को उसने बहुत मुश्किल से संभाला। सोच रही थी ये जो महिलायें हँसी खेल में करियर करियर खेल रहीं है इन्हें नही पता करियर के पीछे अंधी दौड़, महत्वकांक्षा इन सबसे कुछ हाथ नही आता। सब समय पर हो जाये तो ही नौकरी अच्छी है। वर्ना नौकरी करने की कहीं न कहीं कीमत चुकानी ही पड़ती है। अपने को वो संभाल न सकी। एक कंपनी की सी ई ओ, न मालूम कितनी बार स्टेज पर बोल चुकी होगी। पर यहाँ इस मामूली से मंच पर, साधारण सी महिलाओं के सामने बोलते हुये उसका गला रुंध गया। अपने को बहुत बटोर कर बस उसने इतना बोला - दुनिया में अगर किसी भी करियर को मुझे चुनना पड़े तो मैं एक माँ का करियर चुनना चाहूँगी.....मैं बस माँ बनना चाहती हूँ....और कुछ भी नही!

©® टि्वंकल तोमर सिंह

द्वार

1. नौ द्वारों के मध्य  प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...