Friday 30 November 2018

चक्की चलती माँ

चक्की के घूमते पाट
धुंधली सी यादों में आते हैं
माँ के मजबूत हाथ
पत्थर के पाटों को चलाते हैं

नवरात्रि की अष्टमी पर
देवी माँ हाथ की चक्की से
पिसे आटे का ही भोग लगाती है
माँ की आस्था मुझे समझाती है

घर भारी पत्थर का पाट है
जिसे माँ बरसों से चला रही है
इस चक्की को माँ नही पीस रही
उल्टे ये चक्की माँ को पीस रही है

©® ट्विंकल तोमर सिंह

Friday 9 November 2018

अपनी अपनी बेचैनियां

"क्या तुम्हें याद है मैंने बताया था एक लड़का था मेरे कॉलेज में ....जो मेरी तरफ आकर्षित था।"

" हां बिल्कुल...उम्म..विशाल ... विशाल नाम था न उसका ??"

हां.. वो आज हमारे शहर आ रहा है। उसका मेसेज आया था मेरे इनबॉक्स में। पंद्रह सालों बाद वो मुझसे मिलने चाहता है।"

"ह्म्म्म....."

"क्या मैं उससे मिलने जाऊं?"

"हाँ क्यों नही?  तुमने अपनी सारी जिंदगी मेरे नाम कर दी है। कोई कुछ घंटे के लिये तुम्हें मुझसे अलग भी ले जाये तो क्या फर्क पड़ता है?"

"ओ वाओ...थैंक यू.... तो फिर मैं आज जा रही हूँ उससे मिलने...😘"

श्रीमान जी (अकेले में सोचते हुये ): "अगर मैं मना कर देता तो तुम मुझ पर संकीर्ण मानसिकता वाले पति का टैग लगा देती। सच तो यही है, जितनी देर तुम उसके साथ रहोगी, मेरा मन तुम में उलझा रहेगा, बैचैन रहेगा।....
आह.... मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।"

श्रीमती जी ( अपनी उधेड़बुन में ): " पहले कहते थे मैं तुम्हें इतना प्यार करता हूँ कि तुम्हारा एक बाल भी किसी के साथ शेयर नही कर सकता।
एक बार तो मना करते काश। क्या पता..अब मुझे लेकर उतने पोजेसिव नही रहे।
आह...लगता है अब वो मुझसे उतना अधिक प्यार नही करते। "

Twinkle Tomar

Monday 5 November 2018

लक्ष्मी झोपड़ियों में कब जाती है?..

गुड़िया बहुत छोटी थी। सिर्फ़ छह बरस की। उसकी माँ सुनीता दूसरों के घरों में झाड़ू पोछा करती थी। वो अपनी माँ के साथ काम पर जाया करती थी।

उसे टीवी देखने का बहुत शौक था। जिस घर में भी उसकी माँ काम करती, उतनी देर वो वहां बैठकर टीवी देख लेती थी। उतने में मगर उसका जी कहाँ भरने वाला था। मां से पूछती - "अम्मा, हमारे घर में टीवी क्यों नही हैं?"

उसकी माँ उसके प्रश्न से बचते हुये उत्तर देती -" लल्ली, टीवी बड़े लोगों का शौक है। बंसी वाले ने चाहा तो दिलवा देंगें एक ठो टीवी तुमको किसी दिन।"

गुड़िया मन मसोस के रह जाती। कितने अच्छे प्रोग्राम आते हैं टीवी पर। कार्टून, फिल्में, गाने। माँ के काम के चक्कर में सब आधे अधूरे रह जाते है। उसे पता ही नही चल पाया कि आज प्रेरणा की शादी अनुराग से हो पायी कि नही। छोटा भीम उस कालिया नाग को हरा पाया कि नही। आह...सारुख खान का गाना आ रहा था माँ ने पूरा देखने ही नही दिया। सूर्यवंशम उसकी सबसे पसंदीदा फ़िल्म थी। उसे छोड़ते समय तो आफ़त ही मचा देती थी। पर जानती थी माँ के सामने एक न चलने वाली।

एक दिन उसने देखा मेमसाब के यहां बहुत बड़ा वाला टीवी आ गया। जो एकदम दीवार से चिपक गया था जैसे कि कोई तस्वीर। उसकी आंखें मंत्र मुग्ध सी स्क्रीन पर चिपक गयीं।  वो टीवी में चल रहे गाने को एकटक देखती रह गयी......."आओ कभी हवेली पर...." । क्या सुंदर रंग...बड़े बड़े चित्र, गूंजती हुई आवाज़। सोचने लगी-"भैया ने बताया तो था एक बार वो सनीमा देखने गया था। बड़ा बड़ा पिक्चर, तेज़ आवाज़ आती है उसमें। अच्छा तो यही है सनीमा।"

तभी उसने मेमसाब को माँ से बात करते हुये सुना- "सुनीता,अगर तुझे ये पुराना वाला टीवी चाहिये तो बता, दो हज़ार में बेच दूंगी। सस्ता ही सही पर तेरे लिये कर सकती हूँ। "

"ठीक है मेमसाब सोच कर बताती हूँ।"- असमंजस में फंसी सुनीता ने कहा।

एक तरफ़ किराने की दुकान का कर्जा, दूसरी तरफ सोनू की पढ़ाई, फिर उसका मर्द रोज रात में लड़ झगड़ कर रुपये छीन ले जाता है। कैसे खरीदे आख़िर वो टीवी।

गुड़िया ने मां के गले में हाथ डाल कर कहा- "अम्मा ले लो न टीवी। हम कभी आज तक सूर्यवंसम पूरी नही देख पाये हैं।"

"नही गुड़िया, अभी हमारे पास अभी उतना पैसा नही है।"

गुड़िया ज़िद मचाने लगी। "नही अम्मा , तुमको टीवी लेना ही पड़ेगा। हमको दूसरों के घर टीवी नही देखना। जाओ हम खाना नही खायेंगें।"

आखिर सुनीता को गुड़िया का मन रखना ही पड़ा। उसने 500 रुपये चार महीने अपनी तनख्वाह से कटा लेने का मन बना लिया।

आख़िरकार दीवाली से पहले वो छोटा सा, उनकी झोपड़ी में बेढंगा सा लगने वाला, पुराने चलन का, डब्बा वाला टीवी मेज पर सज गया। गुड़िया तो खुशी से बौरा गयी। अपनी सारी सहेलियों को बुलाकर लायी। ताली बजा बजा कर कूद रही थी। सुनीता गुड़िया की खुशी देखती तो अपने सारे कष्ट भूल गयी।

दीवाली की रात अपनी खोली में सुनीता अपने दोनों बच्चों के साथ पूजा कर रही थी। लक्ष्मी मैया और गणेश देवता की आरती की। प्रसाद चढ़ाया फिर बच्चों से कहा भगवान जी से कोई चीज़ मांग लो। गुड़िया ने मन्नत मांगी - "लछमी जी मालकिन का खूब सारा पैसा देना। जिससे वो अपने घर के लिये नई नई चीज़े खरीद लिया करें। और अपने घर की पुरानी चीज़े जैसे गैस, फ्रिज, कूलर हमको दे दिया करें। "

सुनीता चौंक गयी। फिर उसने सोचा - "गुड़िया ठीक ही तो कहती है। हम अपनी मड़ैया जितनी भी साफ़ रख लें ,लछमी जी तो  बड़े घरों की साफ सफाई देखकर ही खुस होती हैं। तबहिं तो बंगलों में ही जाती है, झोपड़ियों में आने का उनको टैम कहाँ?"

उसने दुआ मांगी- "लछमी जी हम बड़े लोगों के घरों में झाड़ू पोछा करते रहें, तुम उसी से ख़ुस  होकर हम पर कृपा बनाये रखना। बोलो लछमी मैया की जै! "

Twinkle Tomar

Sunday 4 November 2018

बच्चा अकेला फील करता है

यवनिका का एक ही बेटा था कौस्तुभ। सात- आठ  साल का प्यारा सा गोल मटोल सा मेधावी बच्चा। अपना पूरा संसार वो उस पर लुटा देती थी। पर एक ही दिक्कत थी। वो अकेली संतान होने का दंश झेल रहा था। कहता था," माँ, मेरा भी कोई भाई होता या बहन होती तो कितना अच्छा होता। "  उसके पापा देर रात घर लौटते थे। वो खुद तो दोपहर में घर पहुंच जाती थी और उसे पूरा समय देने की कोशिश करती थी। पर भाई या बहन की कमी को वो किसी हालत में पूरा नही कर सकती थी।

यवनिका कैसे समझाती कि अपनी नौकरी और छोटे कौस्तुभ को संभालने के झंझटों में उसने दूसरा बच्चा किया ही नही और अब वो मेडिकली फिट भी नही है बच्चा प्लान करने के लिये। उसकी दोनों फेलोपियन ट्यूब्स बंद हैं। आई वी एफ का महंगा खर्च और उसके पति की ट्रान्सफर वाली जॉब उसके लिये दूसरा बच्चा करने के सारे विकल्पों पर प्रश्नचिन्ह लगा देते है।

आखिर में दोनों पति पत्नी ने तय किया एक कौस्तुभ ही बहुत है। बस इसकी ही अच्छी तरह से  परवरिश की जाये, यही बहुत है। पर कौस्तुभ का यूँ अकेला फील करना , गुमसुम रहना दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा था। ये दोनों की चिंता का विषय था।

यवनिका ये अक्सर नोटिस किया था कि कौस्तुभ को पपीज बहुत पसंद है। छोटे पर भी वो कुत्तों को 'भौंभौं' कह के पुकारता था और उनके साथ खेलना चाहता था। यवनिका ने थोड़ा कलेजा मजबूत किया और कौस्तुभ के लिये एक लैब्राडोर पपी ले आयी। कौस्तुभ के लिये वो पपी जैसे एक एंजेल बन के आया। उसने उसका नाम रखा 'बिंगो '।

अब कौस्तुभ बहुत खुश रहने लगा। वो उसी में इन्वोल्वड हो गया, उसका ख़्याल रखने लगा, उसके साथ खेलता था , दौड़ता था, उसे पार्क में घुमाता था। स्कूल से जब वो लौट कर आता, बिंगो दौड़कर उसका स्वागत करता और उसे चाटने लगता। जितने समय कौस्तुभ स्कूल में रहता बिंगो दरवाजे पर बैठकर उसका इंतज़ार करता रहता। कौस्तुभ और उसके पापा रोज यू ट्यूब से देख देख कर नये कमांड्स सिखाते थे। बिंगो सिट कहने पर बैठना, जमीन पर झुक कर सैल्यूट करना, पीछे दोनों पैरों पर खड़े होकर नमस्ते करना सब सीख गया था । देखते देखते बिंगो कौस्तुभ की जान बन गया । कौस्तुभ के अकेलेपन का इलाज यूँ चुटकियों में हो जायेगा, यवनिका ने सोचा न था। ......... उसने राहत की सांस ली। उसके बेटे को एक सच्चा और प्यारा दोस्त मिल गया था।

किसी के घर में कोई Pet या कुत्ता देखकर आप सोच सकते है क्या फालतू शौक है, जानवरों पर लोग बेकार ही समय और पैसा खर्च करते हैं। पर यदि आपका बच्चा अकेला है, तो एक pet या पपी उसका बहुत खास दोस्त हो सकता है। जिन घरों में पपी पाले जाते है वो बच्चे अन्य घरों के बच्चों के मुक़ाबले ज्यादा खुश रहते हैं।

जो बच्चे डॉग्स के साथ पलते बढ़ते है, वो उनमें बहुत अधिक लगाव रखने रखते हैं। डॉग्स के अंदर भी ये प्रवृत्ति पायी जाती है कि वो बेबीज़ का बहुत ख़्याल रखते हैं। बच्चों को वे बहुत प्यार करते है। इससे बच्चे स्ट्रेस का शिकार नही होते और उनके डिप्रेशन में जाने की संभावना कम हो जाती है। डॉग्स की उछल कूद , उसकी शरारतें  बच्चों को हंसाने पर मजबूर कर देतीं है और वो कई प्रकार की मानसिक समस्याओं से बच जाते है।

कई शोधों से पता चलता है कि घर में डॉग्स के होने से हमारे दिमाग मे स्रावित होने वाले हार्मोन्स सेरोटोनिन और ऑक्सीटोसिन में बढ़ोतरी होती है। ये दोनों ही हार्मोन्स हमारे मूड को अच्छा करने में अहम भूमिका निभाते हैं। साथ ही ये भी पाया गया है कि मूड अच्छा रहने से हृदय सही ढंग से काम करता है और हम हार्ट अटैक या हृदय संबंधी बीमारियों से बचे रहते हैं।

इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों का मानना है कि जिस घर में डॉग्स होते है, उस घर में बच्चों के अंदर जानवरों के प्रति संवेदनशीलता का स्तर बढ़ जाता है। वो घर से बाहर भी जानवरों के प्रति सहानुभूति और दया का भाव रखते हैं। बच्चों का और उनके अभिभावकों का डॉग्स के कारण सामाजिक दायरा भी बढ़ता है क्योंकि उनकी देख रेख और उन्हें घुमाने की वजह से अन्य लोगों से मेलजोल बढ़ता है। इन दोनों ही बातों को काफ़ी सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जा सकता है।

अतः यदि आपका इकलौता बच्चा अकेलेपन और मायूसी का शिकार है, और आप उसकी इस परेशानी को वास्तव में दूर करना चाहते हैं तो उसे एक पपी गिफ़्ट करके देखिये। आपको शुरू में थोड़ा कष्ट तो जरूर होगा पर फिर आपको वो भी अपने ही परिवार का सदस्य लगने लगेगा।

सारे रिश्ते भगवान ही बना के दे जरूरी नही है, हम चाहे तो इस कायनात में किसी को भी प्यार और अपनेपन के रिश्ते में बांध सकते हैं।

Happy Reading ☺

Twinkle Tomar Singh



द्वार

1. नौ द्वारों के मध्य  प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...