Tuesday 28 September 2021

आएगा आने वाला से जुड़ा किस्सा

 आज गीत रिकॉर्ड करते समय यदि गायक की आवाज़ बहुत अच्छी नहीं है तो साउंड इफेक्ट्स के ज़रिए उसे उभार दिया जाता है। प्रारम्भ में हिन्दी फ़िल्मों में जब संगीत आया, तब आज की तरह उन्नत तकनीक उपलब्ध नहीं थी। अतः गाने में जो भी इफेक्ट्स या प्रभाव पैदा करने होते थे, वह गायक और रिकॉर्डिंग के तरीके पर निर्भर करता था और अच्छी खासे कौशल और युक्ति का कार्य होता था।

लता जी का सुप्रसिद्ध गीत ‘आएगा आने वाला’ यदि आपने सुना है तो पाया होगा कि ऐसा लगता है कि इसमें किसी तकनीक के सहारे साउंड में उतार-चढ़ाव पैदा किया गया है, जिसमें आवाज़ पहले धीमे आती है, जैसे दूर से आती हो, फिर धीरे धीरे क़रीब आती है व तेज़ हो जाती है।

जब यह गाना रिकॉर्ड हुआ था, तब साउंड रिकॉर्डिंग और मिक्सिंग की तकनीक विकसित नहीं हुई थी. तब गानों में इफेक्ट पैदा करने के लिए बहुत कौशल से अलग तरह से रिकॉर्डिंग की जाती थी.

शुरू में दूर से आवाज आती हुई लगे, फिर कुछ पंक्तियों के बाद आवाज पास से आती हुई लगे यह इफ़ेक्ट पैदा करना आसान नहीं था। उस समय इस तरह के इफेक्ट पैदा करने के लिए गायक को बहुत स्वर साधना करनी पड़ती थी।

लता जी ने एक इंटरव्यू में इस गाने की रिकॉर्डिंग के बारे में बताया था। उन्होंने कहा था कि इस गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान माइक्रोफोन कमरे के बीच में रखा गया था. उन्हें कमरे के एक कोने से गाते हुए माइक तक पहुंचना था। गाने और माइक तक पहुंचने की टाइमिंग इतनी सटीक होनी चाहिए थी कि जब वे माइक के पास पहुँचे तो गाने का ‘आएगा आने वाला’ मुखड़ा शुरू हो जाए। कई बार ऐसा करने के बाद ही सही रिकॉर्डिंग हो पाई थी. 

यह गाना फिल्म ‘महल’ का है, जिसे सावक वाचा ने प्रोड्यूस किया था। उन्हें लगता था कि यह गाना नहीं चलेगा। पर ये गीत न केवल हिट हुआ बल्कि लता जी को बेशुमार प्रसिद्धि दे गया। 



~ टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 



Wednesday 15 September 2021

स्त्री


एक
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जब तक पीठ पर बच्चे को 
बाँध कर रणक्षेत्र में कूदती 
न दिखे स्त्री,
संसार ये मानता ही नहीं
कि हर क्षण एक युद्ध 
लड़ रही है स्त्री !
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दो
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ईश्वर का एक चमत्कार
खटकता रहा मुझे जीवन भर
स्त्री की पीठ पर उगे
जब जब देखे छह अतिरिक्त हाथ!
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तीन
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हर पुरुष की 
सफलता के पीछे
सदैव रहा 
एक स्त्री का हाथ !
पर एक स्त्री अकेली ही
लड़ती रही
सफलता पाने के लिये,
क्योंकि पुरुष के अहम को
कभी भाया ही नहीं
उसके पीछे खड़े रहना ! 
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चार
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बस चाभी भर दो
चौबीस घण्टे टिक-टिक
चलती रहेगी
घड़ी नहीं जानती 
कार्य के घण्टे होते हैं
बस आठ!

वो बिन चाभी की एक घड़ी है..
स्त्री भी कहाँ जानती है!
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पाँच
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कुछ स्त्रियाँ 
पुरुषों के पदचिन्हों पर
चलते हुये,भरती हैं
उनके कदमों की धूल
अपनी माँग में !
कुछ स्त्रियाँ
पुरूषों से परे हटकर
छापती हैं अपने पदचिन्ह,
माँग में सिंदूर से अधिक
उन्हें भाती है
बिवाइयों में धूल !
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~ टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 


Friday 10 September 2021

सिगरेट वाले बाबा





भारत एक अनोखा देश हैं। और बड़ी ही अजूबी है यहाँ लोगों की आस्था। कब , कहाँ, किस पर हो जाये कहा नहीं जा सकता। और तो और इस आस्था के चलते उनके बिगड़े काम भी बन जाते हैं। पर इसी आस्था ने कई लोगों को जीवित भी रखा है।

अमूमन माना जाता है कि ईश्वर या किसी सिद्ध संत के द्वार पर जाना है तो किसी भी लत, भोग, विलास सब चप्पल के साथ ही बाहर उतार कर जाना चाहिए। सिगरेट पीना, शराब पीना इत्यादि मंदिरों और मस्जिद से दूर ही रखे जाते हैं।। लेकिन क्या आप एक ऐसी मज़ार के बारे में जाते हैं जहाँ पर सिगरेट चढ़ाई जाती है। जी हाँ, चौंकिये मत सही बात है ये। 

हमारे ही शहर लखनऊ के मूसा बाग में एक बहुत ही चर्चित मज़ार है जिसे ‘सिगरेट बाबा’ के नाम से जाना जाता है। यहाँ पर आने वाला भक्त सिगरेट चढ़ा कर जाता है, और ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से मन की मुराद पूरी होती है।

इस मज़ार के बारे में कहा गया है कि यह मज़ार एक अंग्रेज सैनिक कैप्टन वेल्स के नाम पर बनी है जिसे हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही मानते हैं। कहा जाता है कि कप्तान को सिगरेट पीने का काफी शौक़ था इसलिए यहाँ पर आने वाले लोग सिगरेट की भेंट इस मज़ार को चढ़ाते हैं। कप्तान को लोगों ने एक संत का दर्ज़ा दिया है।

'कप्तान बाबा' के नाम से विख्यात हिंदू और मुसलमानों की आस्था से जुड़ी यह मज़ार एक ईसाई अंग्रेज सैनिक की कब्रगाह है। दो अलग-अलग धर्मों का एक तीसरे मज़हब के व्यक्ति को संत मानकर पूजना अपने आप में एक अनोखी घटना है, नहीं ? 

यहाँ पहुँचने के लिये आपको हरदोई रोड पर जाना होगा। हरदोई रोड से कुछ दूरी पर मूसाबाग के खंडहर नजर आएंगे और इनके पीछे स्थित है हज़रत सैयद इमाम अली शाह की दरगाह। यहाँ से आप थोड़ा आगे चलते हैं तो खेतों के बीच सफ़ेद रंग में चमकती हुई आपको मिलेगी सिगरेट वाले बाबा की दरगाह। 

'मूसाबाग' का निर्माण अवध के नवाब आसिफुद्दौला ने 1775 में अपनी आरामगाह के रूप मे करवाया था। किवदंती है कि नवाब साहब ने यहाँ पर एक चूहे को मारा था,बस तभी से उनके शौर्य के गुणगान के लिये इसका नाम 'मूसबाग' पड़ गया। 

लेकिन सन् 1857 की लड़ाई में मूसबाग की इमारतें अंग्रेज सैनिकों और भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के बीच हुई गोलाबारी में तहस-नहस हो गई। यही वजह है कि आज यहाँ केवल इनके खंडहर ही शेष रह गए हैं।

कप्तान बाबा की मजार पर लगे पत्थर से पता चलता है कि यह कब्र 21 मार्च 1858 की लड़ाई में मारे गए कैप्टेन एफ० वेल्स की है। हालांकि अब उस पत्थर की सफेद रंग से पुताई कर दी गयी है और उसे मुश्किल से ही पढ़ा जा सकता है। इस पर ये भी लिखा है कैप्टेन एफ० वेल्स इस युद्ध में एक सच्चे ईसाई सैनिक की तरह वीर गति को प्राप्त हुये। इस बारे में कोई भी नहीं जानता कि इन अँग्रेज़ कैप्टेन वेल्स की कब्र पर पूजा कब और कैसे शुरु हो गई।

यहाँ हर गुरुवार को मज़मा लगता है। मतलब संत अँग्रेज़ हो तो भी उसकी ओ० पी० डी० रविवार को नहीं भारतीय आस्था के हिसाब से गुरुवार को ही चलेगी। 

यहाँ ज़्यादातर प्रेमी जोड़े आते है, जो बाबा से आने विवाह की दुआ मांगते हैं। ऐसी मान्यता है कि मज़ार पर सिगरेट चढ़ाने से प्रेमी या प्रेमिका को उसका प्यार मिल जाता है।( कट्टर प्रेमी-प्रेमिका कृपया ध्यान दें।) 


~ टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

द्वार

1. नौ द्वारों के मध्य  प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...