Friday 27 September 2019

सुइयाँ

प्रेम में धड़कते
हृदयों का शोर
सुनाई नहीं देता

कुछ उस तरह
जैसे अंतरिक्ष में
चलते रहतें हैं आंदोलन

कुछ इस तरह
जैसे चलती हैं
सेकेंड की सुइयाँ

~ Twinkle Tomar Singh

मंगलसूत्र

घर बिका, जेवर बिका, बैंक एकाउंट सीज़ हुये, फिर भी बैंक से जो लोन लिया था चुक नही सका। बिज़नेस में इतना बड़ा घाटा हुआ था कि किसी भी तरह पूरा नही हो पा रहा था। वो जोड़ा घर छोड़ने से पहले गेट पर खड़े होकर बस अपने पुश्तैनी मकान को एकटक ताके जा रहा था। सबसे ज़्यादा दुःख इस घर के जाने का ही हो रहा था।

रोहन यहाँ खेला, पला, बढ़ा अनेकों यादें इस घर के साथ जुड़ीं हैं। उनसे कैसे विलग होगा? रश्मि इसी घर में डोली चढ़ कर आई थी। इसी घर की ड्योढ़ी पर उसने अक्षत भरा कलश अपने पैर से लुढ़काया था।एक अंतिम अश्रुपूरित दृष्टि अपने घर पर डाल कर वो जोड़ा सर झुकाये टैक्सी में बैठ कर दूसरे मोहल्ले को रवाना हो गया।

रोहन खोया खोया था। उसके लिये ये सदमा बहुत गहरा था। सबसे बड़ी समस्या थी चारों ओर अँधेरा, कहाँ जायेगा क्या करेगा, बिज़नेस में घाटा नही हुआ था, उसकी तो जीने की सारी उम्मीद ख़त्म हो गयी थी। सारी सारी रात जागकर न मालूम क्या सोचा करता था। रश्मि जब भी जागती उसे चहलकदमी करते हुये ही पाती।

"सो जाइये कब तक जागते रहेंगे?" रश्मि ने उसके पास आकर कहा। " जो चला गया उसके पीछे अपना वर्तमान क्यों ख़राब करना। नयी शुरुआत करने का सोचिये।" रश्मि ने पति को सम्बल देते हुये कहा।

"क्या करूँ? कहाँ से पैसे लाऊँ? सब कुछ ख़त्म हो गया,रश्मि।" इतना कहकर रोहन फूट फूट कर रोने लगा। रश्मि को लगा अन्धकार सिर्फ कमरे में ही नहीं है रोहन के जीवन जीने की इच्छा पर भी छाता जा रहा है।

रात के अँधेरे में दूर से बल्ब की हल्की सी रोशनी आ रही थी। क्षण भर के लिये रश्मि के गले का मंगलसूत्र दीप्त हुया। रश्मि को लगा गहरे काले बादल में एक रोशनी की चमक अभी भी बाक़ी है।

उसने अपनी उँगलियाँ मंगलसूत्र पर फिरायीं। फेरों पर जब पति ने ये मंगलसूत्र पहनाया था, सास ने कहा- "बहू, मंगलसूत्र कभी न उतारना, सुहाग की निशानी है ये। पति का मंगल जुड़ा है इससे। जान से ज़्यादा संभाल कर रखना इसे।" सास की कही बात उसने निभाई थी। सारे जेवर दे दिये थे, इसे रोक लिया था।

रश्मि ने दोनों हाथों को पीछे ले जाकर मंगलसूत्र का लॉक खोला फिर मंगलसूत्र पति के हाथ में देते हुये कहा,"मोहवश रोक लिया था इसे। एक तो सुहाग का प्रतीक, दूसरा नारी सुलभ लालच। पर आप हैं तो सब कुछ है। अब इसे बेचकर नया काम शुरू करिये।"

©® टि्वंकल तोमर सिंह

Monday 23 September 2019

तुमसे पीछे रह जाना

ठंडी रात में पार्टी से लौटते हुये तुमने अपना कोट उतार कर मेरे कंधे पर डाल दिया था। दाँत दोनों के ही किटकिटा रहे थे। ठंड तो तुम्हें भी लग रही होगी पर तुमने मेरे लिये सह ली। सच कहूँ मुझे बहुत अच्छा लगा था उस वक़्त तुमसे कमजोर रह जाना।

हनीमून पर सरसराती हवाओं के बीच पहाड़ियों पर हम चढ़ते जा रहे थे। तुमने शूज़ पहन रखी थी और मुझ बेवकूफ़ ने सैंडिल। तुमने मेरे हाथ अपने हाथों में मजबूती से थाम रखा था। तुम आगे आगे चल रहे थे मैं तुम्हारे पीछे पीछे। सच कहूँ मुझे बहुत अच्छा लग रहा था तुमसे पीछे रह जाना।

किसी स्टेशन पर भारी भरकम सामान का बोझा जब तुम ख़ुद उठा लेते हो। मुझे बस हल्की फुल्की पानी की बोतल और मेरे हैंड बैग तक सीमित कर देते हो। या कभी मैं कोशिश भी करूँ वजन उठाने की तो झिड़की देकर मेरे हाथ से वजनी बैग ले लेते हो कहते हो- " रहने दो तुम्हारे बस का नही." जानती हूँ तुम भी थक जाते हो पर फिर भी मुझे अच्छा लगता है तुमसे अशक्त रह जाना।

किसी मॉल में या किसी दुकान में कोई चीज़ खरीदते समय तुम फटाफट हिसाब लगा लेते हो,डिस्काउंट काउंट कर लेते हो। किस प्रोडक्ट पर फ़ायदा है किस पर नही। सेल्समैन कितना बेवकूफ़ बना रहा है। घर के बजट को अच्छे से मैनेज कर कर लेते हो। मुझे चिंता भी नही होती कि जिस महीने पैसे कम है उस महीने घर का खर्च कैसे चलेगा। जानती हूँ तुम बहुत टेंशन में रहते हो पर मुझे अच्छा लगता है गणितीय बुद्धि में तुमसे पीछे रह जाना।

कहीं जब हम घूमने गये हो। चारों ओर भीड़ ही भीड़ हो अच्छे लोगों की भी और बुरे लोगों की भी। तब किसी बुरी नज़र को मेरी तरफ़ ताकते हुये देखकर तुम अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रखकर मुझे अपने समीप कस लेते हो। जैसे उस लोलुप आदमी को बताना चाहते हो- "दूर रहो। मैं इसके साथ हूँ इसका रक्षक।" सच कहूँ मुझे बहुत अच्छा लगता है उस वक़्त शारीरिक रूप से तुमसे कमजोर होना।

शादी के चार फेरे में तुम आगे थे वो पल मेरी ज़िंदगी के सबसे ख़ूबसूरत थे। उसी वक़्त शायद मैंने आत्मसमर्पण कर दिया था स्वयं को तुम्हारे सामने। शादी के आख़िरी तीन फेरों में मैं आगे थी। सच कहूँ मुझे बिल्कुल भी अच्छा नही लगा था तुमसे आगे चलना।

जब मैं एक्टिवा चलाती हूँ और तुम पीछे बैठ कर मेरी कमर थाम लेते हो। अपना सर प्यार से मेरे दायें कांधे पर रखकर चोरी से मुझे चूम लेते हो। हाँ बस उस एक पल मुझे अच्छा लगता है तुमसे आगे रहना।

Twinkle Tomar Singh

Friday 20 September 2019

सात कपड़े एक भगोना

"क्या भइया, ठीक ठीक लगाओ न। पूरे सात कपड़े दिये हैं तुम्हें, इनके बदले में ये ज़रा सा पिद्दी सा भगोना। और कितना हल्का भी है। कोई ठीक ठीक सा बड़ा और भारी बर्तन दो।" पड़ोस वाली भाभी कपड़ों के बदले बर्तन देने वाले से बहस कर रहीं थीं। आख़िरकार एक मीडियम साइज़ के भगोने पर जाकर सौदा पक्का हुआ।

पड़ोस वाली भाभी अभी नयी ही आयीं थीं हमारे मोहल्ले में रहने के लिये। हमारी हल्की फुल्की ही बातचीत हुई थी। जब विक्रेता चला गया तो भाभी ने मुझे बालकनी में खड़े देखा। मेरी तरफ़ देखकर उन्होंने अभिवादन वाली मुस्कान फेंकी। मैंने भी बदले में सिर झुका कर अभिवादन किया।

" देखिये भाभी जी, कितना बढ़िया भगोना लिया है। पुराने कपड़ों के बदले में।" भाभी विजयी मुस्कान के साथ बता रहीं थीं।

मैं भी उत्सुकता में नीचे आ गयी। मुझे देखना था सात कपड़ों के बदले में कैसा भगोना मिला है। मैंने भगोना हाथ में लेकर देखा, ठीक ठाक था, नया था तो चमक भी ख़ूब रहा था। " अच्छा है" कह कर मैंने भगोना उनके हाथ में वापस दे दिया।

"भाभी जी, आप क्या करती हैं पुराने कपड़ों का?" भाभी ने अचानक से सवाल दाग दिया।

" कुछ नही, कामवाली को दे देतीं हूँ।" मैंने कहा।

" अबकी बार संभाल कर रखियेगा कपड़े किसी को न देना। अगली बार जब ये आयेगा तो आपको बुला लूँगी। आप भी कपड़े के बदले में बर्तन ले लेना।" भाभी मुफ़्त की सलाह गर्व के साथ दे रहीं थीं। भगोना उन्होंने ऐसे पकड़ रखा था जैसे किसी देश की क्रिकेट टीम वर्ल्ड कप पकड़ती है।

" अरे कामवाली से तो साल भर के दो कपड़े तय हुये हैं। दीवाली पर मैं नयी साड़ी देती हूँ और होली पर पहनी हुयी। बस इससे ज़्यादा नही। और ज़रूरत भी क्या है? इन लोगों के लिये जितना भी कर दो एहसान थोड़े ही मानती हैं। इसलिये मैं तो कहती हूँ आप भी कम ही कपड़े देना और बाकी कपड़े बचा लेना। मैं तो साल में एक - दो ज़रूरत के बर्तन ऐसे ही ले लेती हूँ, फ़्री में।" भाभी अपनी गृह मंत्रालय की नीतियों का बखान कर रहीं थीं।

" और जानतीं हैं इन लोगों को ज़्यादा कपड़े दे दो तो ये लोग भी यही करती हैं। कपड़ों के बदले में बर्तन ले लेतीं हैं।" भाभी बड़े विश्वास के साथ बता रहीं थीं।

मुझे इस सच पर भरोसा हुया हो या न हुया हो पर मेरे भी मन में लालच जागा। मैं बेकार में सारे कपड़े कामवाली को दे देतीं हूँ। अगली बार मैं भी नहीं दूँगी और इनके बदले कोई अच्छा सा बर्तन ले लूँगी।

" अच्छा भाभी चलती हूँ। जब बर्तन वाले भैया आयें तो मुझे बुला लेना।" मैंने कहा और उनसे विदा लेकर घर के अंदर पैर रखा।

घर के अंदर पैर रखते ही देखा कमली मेरा ही दिया हुआ सूट पहनकर फ़र्श पर पोछा लगा रही थी। पता नही मुझे क्यों लगा जैसे कि मैं उसकी अपराधी हूँ।

फिर वो बात याद आयी " अगर इनको ज़्यादा कपड़े दे दो, तो ये लोग भी उसके बदले में बर्तन ले लेतीं हैं"...मेरी आँखों के सामने एक दृश्य भी खिंच गया मेरे दिये हुये अच्छे अच्छे सूट या साड़ियाँ कमली बर्तन वाले को देकर बदले में एक भगोना ले रही है।

एक कलाकार हूँ तो कल्पनाशक्ति कैसी भी उपमायें सुझा देती है। मुझे लगने लगा एक चूल्हे के ऊपर भगोना रखा है उसमें रखा दूध गरम हो रहा है, और चूल्हे में लकड़ी नही जल रही, बल्कि मेरे बहुत सारे पुराने कपड़े जल रहे हैं। और कमली एक फुँकनी लेकर चूल्हे में हवा फूँक रही है।

"हे राम.." मैंने आँखे मूँद ली। कुछ पल के लिये ही सही मेरे मन में लालच जागा तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने कमली का हक़ मार लिया हो। कमली कपड़े का कुछ भी करती हो, है तो ग़रीब ही न। मुझे एक भगोने से ज़्यादा उसकी दुआ कमाना अच्छा लगता है।

©® टि्वंकल तोमर सिंह

Thursday 19 September 2019

समाधि लेख


किसी क्षुधाग्रस्त बालक के
सूखते होठों के पीछे
चली आने वाली
तृप्ति की आभास वो
पा लेती थी

किसी शोकग्रस्त मानवी के
टपकते आँसुओं के पीछे
चलकर आने वाले
उल्लास की पदचाप वो
सुन लेती थी

किसी प्रेमातुर मनु के
काम भरे अक्षुओं के पीछे
अनुसरण करने वाली
स्नेह की प्रतिछाया वो
देख लेती थी

उसके समाधि लेख पर
बस इतना लिखा था
ये शयन कक्ष है उसका
जिसे ममता ने
जीवन भर विश्राम
नही करने दिया !

©® टि्वंकल तोमर सिंह

Wednesday 18 September 2019

माँ हूँ तेरी, तुझसे बड़ी वाली बिल्ली

"ओह माय गॉड, मिहिर, तुमने तो बताया ही नही था कि शादी के बाद बहू को पहली रसोई में कुछ मीठा बनाना होता है।" तुलसी हैरान परेशान कमरे में आई। मिहिर कमरे की बालकनी में सुबह की चाय का लुफ़्त उठा रहा था।

"अरे इसमें बताने वाली क्या बात है। सब जानते हैं ये तो एक रस्म है। रसोई में बहू को खाना बनाने देने के लाइसेंस का टेस्ट। कार चलाने के लाइसेंस का टेस्ट तो तुमने फट से पास कर लिया था।" मिहिर ने चाय का सिप लेते हुये कहा।

"मिहिर, तुम अच्छी तरह जानते हो मुझे कुछ भी बनाना नही आता। हॉस्टल में रह कर पढ़ी हूँ। पानी उबालना, चाय बनाना और मैगी बनाने के सिवा मुझे कुछ नही आता।" तुलसी के मासूम चेहरे पर निराशा के बादल साफ़ दिख रहे थे।

"अच्छा, तो जब मम्मी पापा तुम्हें देखने आये थे तब तो तुम्हारी भाभी बड़ा बढ़चढ़ कर कह रहीं थीं, खाइये, खाइये....खीर हमारी तुलसी ने बनाई है।" मिहिर ने चुटकी लेते हुये कहा।

"मिहिर...."थोड़ा गुस्से में नाराज़गी दिखाते हुये तुलसी बोली। " तुम जानते हो अच्छी तरह मैं बिन माँ बाप की बेटी, ऊपर से दूसरी कास्ट..तुम्हारे मम्मी पापा तैयार कहाँ थे शादी के लिये। तो भाभी को ये सब लीपा पोती करनी पड़ी ऊपर से इसलिये कि कहीं बात बिगड़ न जाये।" मायूस होते हुये तुलसी ने कहा।

" अरे बेग़म, अब आप हमारी अर्धांगिनी हैं। अभी देखो मैं तुम्हारी परेशानी फट से दूर करता हूँ।" मिहिर ने कॉलर ऊंचा उचकाते हुये कहा।

मिहिर ने फौरन मोबाइल निकाला, यू ट्यूब पर खीर बनाने की विधि सर्च की। दोनों ने मिलकर ध्यान से वीडियो देखा। मिहिर ने दो तीन बार उसे रेसिपी के सारे स्टेप्स रटवा दिये। फिर भी तुलसी को ज़रा भी कॉन्फिडेंस नही था। क्योंकि बचपन से ही उसके माँ पिताजी का साया उठ गया। चाचा जी ने तुलसी और उसके भाई दोनों को होस्टल में डाल दिया। नतीजा ये रहा कि तुलसी को कुछ भी काम करना नही आया। फिर उसकी ज़िन्दगी में मिहिर आया। प्रेम हुआ, बात विवाह तक पहुँची, जैसे तैसे मिहिर के मम्मी पापा को दूसरी कास्ट की, बिन माँ बाप की लड़की से शादी करने को राज़ी कराया गया। मिहिर की मम्मी का पहले से ही एक ढंग के समधी समधन, जो उचित सम्मान व्यवहार दे सकें , न मिलने के कारण थोड़ा मूड ख़राब था।

फिलहाल डरते डरते तुलसी किचेन में गयी और उसने चावल निकाले, दूध निकाला, मेवे निकाले। सारे रटे रटाये स्टेप्स अपने मन में दोहराने लगी। कभी पानी गैस पर रखती, कभी दूध गैस पर रखती, कभी चावल कुकर में डालती उसे कुछ समझ नही आ रहा था। धीरे से उसने मिहिर को मेसेज़ किया-" सुख दुख में साथ निभाने की क़सम खाई है। नीचे आओ रसोई में, मुझे कुछ समझ नही आ रहा।"

मिहिर धड़धड़ाता हुआ सीढ़ियों से नीचे आया। घर में उस दिन ख़ास ख़ास रिश्तेदार ही बचे, सब अपने अपने कमरे में आराम कर रहे थे, या घूमने निकल गये थे। मिहिर ने भी इंजीनिरिंग की पढ़ाई घर से बाहर रहकर की थी, पर उसे खाना बनाना थोड़ा बहुत आता था।

उसने थोड़े से घी में चावल भूने। फिर कुकर में सीटी ली। फिर दूध डालकर मिश्रण को पकाया। तुलसी मात्र सूखे मेवे काटती रही, और खीर में उन्हें डाल दिया। आख़िर में जब खीर पक कर तैयार हो गयी तो उसने उसमें चीनी डाल दी। इस तरह नव युगल के साझा प्रयास से नववधू की पहली रसोई की खीर तैयार थी।

खीर की कटोरियों को ट्रे में सजा कर सिर पर पल्ला रखकर संस्कारी बहू की चाल चलती हुई, नयी नयी पायल की रुनझुन पूरे घर में छनकाती तुलसी अपने सास ससुर के कमरे में पहुँची। मिहिर मुस्कुराकर उसे पीछे से जाते हुये देख रहा था। तुलसी ने सास ससुर के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लिया। सासु माँ ने बड़े प्यार से सिर पर हाथ फेरकर उसे आशीर्वाद दिया। फिर उसे ट्रे लेकर डाइनिंग रूम में चलने को कहा। वहाँ उन्होंने अपने सभी रिश्तेदारों को आवाज़ देकर बुलाया- "अरे भाई, सभी लोग आ जाओ। बहू की पहली रसोई का पकवान आ गया है।"

सब हँसते बतियाते वहाँ पहुंच गये। तुलसी सबके पैर छूकर आशीर्वाद लेती फिर सबको हाथ में एक खीर की कटोरी पकड़ाती जाती। सबने खीर खायी और वाह किये बगैर न रह सके। सबने कहा - "भई बहू तो सर्वगुणसम्पन्न है।" अपनी तारीफ़ सुनकर तुलसी मंद मंद मुस्कुरा रही थी और कनखियों से मिहिर को देख रही थी। मिहिर ने सबकी नज़र बचा कर शरारत से उसे एक आँख मारी। तुलसी ने शर्मा कर अपनी आँखें झुका ली।

बुआ, चाची, मौसी सबने पहली रसोई के शगुन के रूप में तुलसी को कुछ न कुछ दिया। किसी ने रुपये दिये, किसी ने बिछिया, किसी ने पायल। तुलसी सर झुकाये सब स्वीकार करती जा रही थी। अब आयी सास की बारी। सास ने एक सोने की अँगूठी निकाली और और तुलसी की उंगली में पहना दी। तुलसी ने अपनी सास को खुश होकर थैंक्यू मम्मी जी कहा।

फिर सासूमाँ ने मिहिर को आवाज़ दी- "तू वहाँ खड़े खड़े क्या कर रहा है। इधर आ। ये ले तू भी पति के रूप में अपनी पहली रसोई का शगुन।"

तुलसी ने चौंक कर सास की ओर देखा, फिर मिहिर की ओर देखा। मिहिर झेंपते हुये वहाँ आया और उसने माँ के पैर छुये। माँ ने उसके हाथ में इक्कीस सौ रुपये रखे। मिहिर की तो बोलती बंद हो गयी-" माँ मैं...वो....मदद...! तुम्हें कैसे पता चला? तुम तो रसोई में आयी ही नही थी।"

" अरे तेरी माँ हूँ। तुझसे बड़ी वाली बिल्ली। मैंने तुम्हारे कमरे में कैमरा छुपा रखा है। तुम लोग जो भी बात करते हो मुझे सब पता चल जाता है।" माँ ने मिहिर के पिता की तरफ़ देखकर आँख मारते हुये कहा। ( दरअसल जब मिहिर और तुलसी रसोई में साथ खीर बना रहे थे उस समय कामवाली आयी थी झाँकने। उसी ने जाकर मिहिर की माँ को बता दिया था कि भैया भाभी की मदद कर रहे हैं।)

" बहू को खाना बनाना नही आता तो कौन सी बड़ी बात है। मेरी जब शादी हुई थी तब मेरी उम्र केवल सोलह साल थी। मुझे खाना बनाना मेरी सास ने सिखाया। अब बारी है कि मैं अपनी बहू को खाना बनाना सिखा कर अपनी सास का कर्जा उतारूँ।" सास ने प्यार से बहू के सिर पर हाथ फेरते हुये कहा। नवयुगल की पोल खुल जाने पर सब ठहाका मारकर हँस रहे थे। मिहिर झेंप रहा था पर तुलसी की आँखों में अपनी सास के लिये सम्मान के आँसू भरे थे। उसे खुशी इस बात की थी कि आख़िरकार ईश्वर ने उसे एक ममतामयी माँ इसी जीवन में दे दी।

©® टि्वंकल तोमर सिंह

नुक़्ता

ख़ुद का लिखा पढ़ा है बाख़ुदा सौ दफ़े पढ़ा है
हर एक  नुक़्ते पर  कोई  गुज़रा लम्हा टँगा है!

©® Twinkle Tomar Singh

Tuesday 17 September 2019

आँखों का आलस्य


पुरानी
बहुत पुरानी
तहा कर रखी गयी
मृतप्राय हो चली
सड़ी-गली,बासी
चुभीली, नुकीली
कष्ट देने वाली
हर प्रकार की
स्मृतियों को सहेज
कर रखते हैं हम
आह को जिह्वा की
नाल से कीलित कर

वेदना की प्याली से
अश्रु का न छलकना
आँखों का आलस्य है
या मन का रीत जाना !

©® टि्वंकल तोमर सिंह

Saturday 14 September 2019

हिन्दी दिवस

लखनऊ के एक हिन्दी माध्यम वाले सरकारी विद्यालय में बी एड प्रशिक्षु आते हैं। बच्चे शिक़ायत करते हैं कि वो छात्र-छात्रा अध्यापक अंग्रेज़ी में पढ़ाते हैं। प्रशिक्षु अध्यापक कहतें हैं-क्या करें हमारी पढ़ाई इंग्लिश मीडियम से हुयी है। हमें हिन्दी माध्यम से गणित/विज्ञान या किसी भी अन्य विषय की शब्दावली का स्वयँ ज्ञान नही है, हम उन्हें क्या पढ़ायें? आश्चर्य की बात ये है कि सरकारी अध्यापक बनना ही उन सबकी प्राथमिकता में है।

महाविद्यालय में एक विषय की कक्षा का पहला दिन है। प्रवक्ता पूछतीं हैं- क्या कोई ऐसा भी है जो हिन्दी माध्यम वाला हो? 70-80 बच्चों वाली कक्षा में एक लड़की हाथ उठाती है। प्रवक्ता कहतीं हैं-पढ़ाई तो अंग्रेज़ी माध्यम से ही होगी। तुम अलग से पढ़ लेना।

नयी पीढ़ी के नौजवान कहते हैं हमें हिन्दी में लिखा कम समझ आता है,और इंग्लिश में लिखी हिन्दी समझ आती है, क्योंकि नेट पर, ऑफ़िशियल पत्र व्यवहार में, मेल में सब जगह दिन भर इंग्लिश पढ़ते रहने के कारण हिन्दी पढ़ने की आदत छूट गयी है। इसीलिये अब हिन्दी भी अगर इंग्लिश में लिखी हो तो ही दिमाग़ तेज़ी से ग्रहण करता है। इस पीढ़ी को हनुमान चालीसा भी इंग्लिश में लिखकर सामने रखनी पड़ती  है। कितना दुःखद है !

चाहे जितना हिन्दी दिवस मना लें, वास्तविकता यही है कि आज से बीस सालों बाद हिन्दी के अल्प ज्ञानी भी परम ज्ञानी माने जायेंगे। गूगल हिन्दी इनपुट ने जितना हिन्दी लिखना आसान कर दिया है, उतना ही ज़्यादा लोगों को भ्रमित भी कर दिया है कि सही शब्द क्या है? एक ही शब्द को कई तरीके से लिखा हुआ दिखाता है। जिसे उच्चारण का सही सही ज्ञान होगा मात्र वही सही वर्तनी वाले शब्द का चुनाव कर पायेगा।

जिस देश की राजभाषा हिन्दी हो, और उसी देश में हिन्दी में सुनने के लिये '2' दबाना पड़ता हो, तो वास्तव में वहाँ हिन्दी दिवस मनाने की अत्यन्त आवश्यकता है!

~ Twinkle Tomar Singh


Friday 13 September 2019

दो हिस्से

"हमारे प्यार पर माता पिता की रज़ामन्दी की मुहर कभी नही लगेगी,सोचो मत,बस चली आओ जल्दी।"

"बिटिया,यूपीएससी का फ़ॉर्म भर रही हो न?"

दो हिस्सों में बँटी मैं!ज़ेहन में गूँजतीं दो आवाज़े!

अख़बार पलट रही हूँ-"हिन्दू लड़की को झांसा दिया,लव ज़िहाद का शिकार बनाया,दरिन्दों ने उसे हिन्दू होने की सज़ा दी।"...कहीं मैं भी....

"मैं यूपीएससी का फ़ॉर्म भर रही हूँ,पापा...इस साल।तैयारी भी तब तक अच्छी हो ही जायेगी।"मैंने पापा को आवाज़ दी।

"रिज़वान,चौबीस साल माता पिता ने पाला है।उनके आशीर्वाद के बिना विवाह आह बन जायेगा,मैं नही आ रही हूँ।"मैंने आख़िरी टेक्स्ट किया उसके मोबाइल पर।

©® ट्विंकल तोमर सिंह 

Tuesday 10 September 2019

खेल

वो तुम्हारे सीने पर
अपना सिर रखकर
बेख़ौफ़ सो रही थी

उसे आवाक छोड़कर…
तुम चल दिये ऐसे

खेल रास न आये तो
बच्चे खेल बिगाड़ कर
चल देते हैं जैसे

©® टि्वंकल तोमर सिंह

Saturday 7 September 2019

कोठरी का रहस्य

नई बहू ने कोठरी की दहलीज पर पैर रखा ही था कि सास की कड़कती हुई आवाज़ आयी- "बहू....अंदर पैर न धरियो। हमारे घर की औरतें वहाँ नही जातीं।"

दुल्हन ने अपने पैर वापस खींच लिये। और मन मसोस कर रह गयी।

नई बहू को कोठरी में जाना वर्जित था। बस उसका पति ही सुबह शाम वहाँ खाना पानी लेकर जाता था। आख़िर कितने दिन अपने आप को रोकती नई बहू। कम उमर की बहुरिया थी। उत्सुकता और शैतानी इस उम्र में ठूँस ठूँस भगवान ने दिमाग़ में भरी होती है।

एक दिन बहू ने देखा घर में कोई नही है। बस फिर क्या था। मौका पाकर घुस गई कोठरी में। अंदर गयी तो देखा कोठरी छोटी सी पर बड़ी रहस्यमयी सी थी। ऐसा लगता था जैसे अंदर रोज़  पूजा पाठ किया जाता हो। सामने एक औरत की बड़ी सी तस्वीर टँगी थी जिसके चेहरा पर पीला रंग पोत दिया गया था। उसकी साड़ी,गहने,चोटी सब दिख रहे थे पर चेहरा नही दिख रहा था। ऐसा लगता था किसी भले घर की औरत है।

जिज्ञासावश बहू ने एक कपड़ा लिया वहाँ लोटे में रखे पानी से उसे गीला किया और उस गीले कपड़े से तस्वीर पर लगा रंग छुटा दिया।

फिर अचानक न मालूम क्या हुआ उसे जोर से चक्कर आया और वो बेहोश होकर गिर पड़ी।

होश आया तो उसने अपने आप को एक काँच के पीछे पाया। दोनों हाथों से काँच पर थपकी दी। शीशे के पार उसे वो कोठरी दिख रही थी। तब उसे मालूम हुआ कि वो ख़ुद उस तस्वीर में कैद हो चुकी है।

वह बहुत चिल्लायी, मदद के लिये आवाज़ दी। पर लगता था जैसे उसकी आवाज़ बाहर जा ही नही रही थी।

शाम को बाहर कुछ लोगों के बोलने बतियाने की आवाज़ आने लगी। वो खुश हो गयी कि शायद अब उसको यहाँ से कोई निकाल सके। तभी कुछ देर में उसका पति खाना पानी लेकर आया, साथ में एक औरत भी थी। उसके आश्चर्य की सीमा नही रही जब उसने देखा कि ये तो वही तस्वीर वाली औरत थी। दोनों हँस हँस कर बातें कर रहे थे।

पति कह रहा था "बेग़म,आख़िर तुम छूट ही गयीं इस कैद से। अगर इतना रहस्य न बनाता तो ये कभी बेवकूफ़ न बनती। कैसे बताऊँ कितने दिनों से मैं इसी दिन का इंतज़ार कर रहा था।"

इसके बाद औरत की आवाज़ आयी," अरे वो तो तुम्हारी सौतेली माँ ने मुझे भी बेवकूफ़ बना कर इसमें कैद कर दिया था। तब से मैं भी कितना तड़प रही थी तुम्हें क्या पता।"

पति बोला," ये हमारे घर पर तांत्रिक का श्राप है। हमारे खानदान की कोई एक औरत इस तस्वीर में कैद रहेगी। रोज उसकी तस्वीर के सामने खाना पानी रखना होगा ताकि वो भोग लगा कर जीवित रह सके। और अपनी उम्र पूरी करके मरे अन्यथा प्रेत योनि में चली जायेगी और हम सब को परेशान करती रहेगी।"

" हाँजी जानती हूँ। ये मेरे कैद होने के बाद मेरे बदले में जो तुम्हारी सौतेली माँ यहाँ से मुक्त हुईं थीं, उन्होंने बताया था। अब लो जल्दी से ये अभिमंत्रित रोली हल्दी लो और इसे कीलित कर दो वरना ये बाहर आ जायेगी और मुझे वापस जाना पड़ेगा क्योंकि तस्वीर खाली नही रह सकती इतने दिनों से अंदर थी मैं। तंत्र का असर अभी गया नही है मुझ पर से। तस्वीर मुझे वापस खींच लेगी।" औरत ने कहा।

" अब मैं तुम्हें जाने थोड़े ही दूँगा।" इतना कहकर पति ने अभिमंत्रित रोली और हल्दी ली और तस्वीर पर नई बहू के चेहरे पर मंत्र पढ़ते हुये पोत दी।

©® टि्वंकल तोमर सिंह

द्वार

1. नौ द्वारों के मध्य  प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...