Sunday 27 September 2020

प्रतिशोध

एक अंतिम क्षण आया
जब मुझे लगा तुम्हारा प्रेम
गला देगा मुझे 
एक अम्ल की भांति

मैंने प्रतिशोध लिया
हर दिन, हर क्षण
हर काल में, हर हाल में
तुम्हें और अधिक प्रेम करके

प्रेम-प्रतिशोध ताप की तरह चढ़ता है
सारे दंभ-अहं विषाणुओं के नाश के लिये

काश संसार के सारे प्रतिशोध यूँ ही लिये जाते !

~ टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

Saturday 26 September 2020

पराठा चोर ननद

"अजी सुनो...." निधि ने अपने पति को आवाज़ लगाई। उसका पति टीवी पर मैच देखने में व्यस्त था। 

"हां बोलो...क्या हुआ?" 

"वो श्रुति न आजकल सुबह सुबह आठ पराठे बनाकर अपने टिफिन में ले जा रही है।" निधि ने कहा। 

"तो..?" पति ने सुना अनसुना कर दिया और वापस मैच देखने में व्यस्त हो गए। 

निधि ने उसके हाथ से रिमोट छीन लिया और टीवी बन्द कर दिया। 

'अरे समझो कुछ।" निधि पास आकर बिस्तर पर बैठ गयी और फुसफुसा कर बोली। 

श्रुति निधि की ननद थी। एक अच्छे इंस्टीट्यूट से एम बी ए कर रही थी। रोज़ सुबह आठ बजे निकल जाना होता था। अपना नाश्ता वो स्वयँ ही बना कर ले जाती थी। आज सुबह सुबह  निधि सात बजे ही रसोई में पहुँच गयी तो उसने देखा कि श्रुति अपने लिये पराठे बना रही है। रोज ही बनाती थी तो इसमें कोई नई बात नहीं थी। पर जब उसकी नज़र परात की ओर गयी तो उसने देखा कि वहाँ आठ लोइयाँ रखी थी। 

"अब तुम्हीं बताओ इसमें मैं क्या समझूँ?" उसके पति ने खीजते हुये कहा। 

निधि ने कहा- "आज सुबह जब मैं रसोई में गयी तो देखा श्रुति सन्नाटे में आठ आठ लोई लिये पराठे बना रही है। मुझे बड़ी ग्लानि हुई कि मेरे रहते ये तुम्हारे लिये पराठे बना रही है नाश्ते में। मैंने पूछा- अरे इतने पराठे किसके लिये बना रही हो? मैं तुम्हारे भैया के लिये नाश्ता बना दूँगी। तो जानते हो क्या बोली?" 

" क्या बोली?" 

"यही कि अरे मैं ले जा रही हूँ टिफिन में। मैं खाऊँगी। " 

"हां तो दिन भर बाहर रहती है । भूख लगती होगी? " 

"अरे रहने दो। इतनी डाइट किसी लड़की की नहीं होती। ये किसी और की ही ख़ुराक का इंतजाम किया जा रहा है। दो अपने लिये छह किसी और के लिये।" निधि बोली। 

"तुम कहना क्या चाहती हो?" 

" और तुमने ध्यान दिया कि हमारे घर में शिमला मिर्च में आलू भर कर सब्जी कभी नहीं बनती थी। फिर भी आजकल सासू माँ और ननद शाम को ही बना कर रख लेतीं हैं, उसके टिफिन के लिये।" निधि ने कहा। 

"अब ज़्यादा गोल गोल मत घुमाओ। साफ साफ कहो क्या कहना चाहती हो?" उसका पति बोला। 

" यही कि श्रुति ने लगता है कोई लड़का पसंद कर लिया है। और मम्मीजी की भी रज़ामंदी है। बस तुम इतने स्ट्रिक्ट हो, और उसके पिता है नहीं इसलिए बताने से डर रही है।" निधि ने मुस्कुराते हुये कहा। 

"ओह... ये बात..." उसके पति ने सिर खुजाते हुये कहा। " क्या पता कोई और बात हो। तुम बेकार में ज़्यादा दिमाग लगा रही हो। " पति ने रिमोट वापस लिया और टीवी देखने में पुनः व्यस्त हो गए। 

श्रुति का पराठा और भरवा शिमला मिर्च ले जाना ज़ारी रहा। इसके अलावा घर में कुछ अच्छी चीज बनती तो श्रुति कुछ हिस्सा निकाल कर रख लेती थी।  निधि  मन ही मन सब समझती रही। एक दिन उसने मौका निकाल कर अकेले में श्रुति से पूछ ही लिया , " क्या बात है? कोई पसंद आ गया है क्या ?" 

श्रुति अचकचा गयी, " आ आ ..नहीं तो भाभी...!" 

"अरे भाभी हूँ, पराई नहीं, सहेली मानो तो अपने दिल की बात बता सकती हो। वरना आठ पराठे तुम्हें हज़म हो जाते होंगे, आठ पराठे ले जाने वाली बात मुझे हज़म नहीं हो रही है।" निधि ने मुस्काते हुये कहा। 


"नही भाभी ऐसी कोई भी बात नहीं है। अगर होगी तो मैं सबसे पहले आपको ही बता दूँगी।" इतना कहकर श्रुति वहाँ से चली गयी। 

निधि ने मन में खिचड़ी पकती रही। उसे पता लगाना ही था कि माज़रा क्या है। निधि के रिश्तेदारी में एक पंद्रह-सोलह साल का लड़का था- विजय। निधि को भाभी कहता था , और बहुत मानता था। निधि ने एक दिन उसे बुलाकर कुछ कहानी समझा कर उसे श्रुति के पीछे लगा दिया। 

शाम को विजय ने जो कुछ बताया उससे निधि अपने आप पर शर्मिंदा हुये बगैर नहीं रह सकी। 

विजय ने बताया कि श्रुति दीदी कॉलेज के लिये निकलती हैं फिर थोड़ी दूर पर एक घर है, वहाँ जातीं हैं। दस पंद्रह मिनिट बाद वहाँ से निकलतीं हैं। विजय ने खिड़की से झांका तो पाया कि एक बुजुर्ग कुर्सी पर बैठे हैं। श्रुति दीदी ने उनको एक थाली में दो पराठे और सब्जी डाल कर दिया। और बाकी ढक कर उनकी मेज पर रख दिये। और कहा कि लंच में खा लेना। 

जिस घर की लोकेशन विजय ने बताई उससे निधि के मन पर पड़े सारे पर्दे हट गये। दरअसल वो बुजुर्ग कोई और नहीं श्रुति के अंकल थे। वो अंकल जो कभी उसकी माँ को बहुत पसंद करते थे, और आज भी उसकी माँ से कहीं न कहीं जुड़े हुए थे। श्रुति की माँ लोकलाज के कारण उनके घर नहीं जा सकती थीं। और श्रुति ने अनकहे ही अपने पिता समान बुजुर्ग की सेवा अपने सर ले ली थी। 

जब पूरी तरह कन्फर्म होकर निधि ने अपने पति को ये बात बताई तो उसने कहा," तुम्हें तो सी आई डी में होना चाहिये था। पराठा सूंघ कर बता देती हो, कोई तो खिचड़ी पक रही है।" 

"अरे वो सब छोड़ो..अब इस खिचड़ी में तड़का हमें लगाना है। " निधि ने कहा। 

"क्या मतलब ? " 

"अरे यही, कि अंकल अब भी हमारे घर का खाना खाएंगे मगर हमारे साथ हमारे घर में। हम मम्मीजी और उनकी शादी करवा दें तो कैसे रहेगा ? " 

"ख़याल तो बुरा नहीं है तुम्हारा। चलो मम्मी से बात करते हैं।" 

इसके बाद सादे ढंग से दोनों का विवाह करवा दिया गया। 

टि्वंकल तोमर सिंह,
लखनऊ। 

Tuesday 22 September 2020

भुवनमोहिनी

#भुवनमोहिनी

स्वर्ग के सारे आनंद 
विवर्ण हो जायें
यमपुरी के सारे नियम
ढीले पड़ जायें

काँस के रेशों को 
फूँक मारकर जब
उड़ा देती है वो 
जिसे पाटल हथेली भर 
कभी मिले ही नहीं

उसके अधरों पर धरा
निर्दोष मंदहास
संगीत सिद्ध देवदूतों के
वृन्दवादन को फीका 
कर आता है! 

~ टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 
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Sunday 20 September 2020

प्रेम-निवेश

ये जो तुमको 
जोड़े रखने में
दिन पर दिन वो
व्यय हो रही है

विनिपात तक उसके
छूछे कोष-सन्दूक की 
थाती संजोने लायक
तुम्हारी हृदय-भंडरिया में 
धैर्य-धन तो रहेगा न ? 

~टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 
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Wednesday 16 September 2020

समर्पण

बिन समर्पण हर कार्य व्यर्थ है, कुछ इस तरह जैसे बेगार मजदूर बेमन ईटें ढोता है, इमारत की बुलंदी उसके लिये कोई आनंद नहीं लाती। 


टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

Sunday 13 September 2020

हिन्दी दिवस

फिर से एक और हिन्दी दिवस आ गया। 
पिछले साल हिन्दी की दुर्दशा पर न मालूम कितने हृदय छलनी हुये थे, न मालूम कितनों ने ये संकल्प लिया होगा कि इसे समृद्ध करना है, बड़े बड़े लेख लिखे होंगे, न लिख सके होंगे तो शेयर किये होंगे। फिर अपने बच्चों के दाखिले के लिये अंग्रेज़ी माध्यम के विद्यालयों में कतार में भी जा कर खड़े हुये होंगे। 

क्या किया जाये? विडंबना ही यही है। हमें हिन्दी से प्रेम है, हम हिन्दी को संरक्षित भी करना चाहते हैं, मगर क्या करें  बुनियाद में ही अंग्रेज़ी माध्यम से शिक्षा के बीज को रोप देना, आगे आने वाले वर्षों में सफलता की अग्रिम सावधि जमा है। पर क्या वास्तव में अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल हिन्दी की दुर्दशा के लिये उत्तरदायी है? क्या अंग्रेज़ी माध्यम में पढ़ा कर भी हिन्दी को समृद्ध नहीं किया जा सकता ? उसी प्रकार जिस प्रकार हिन्दी माध्यम से पढ़े बच्चे अंग्रेज़ी को समृद्ध करते हैं। अंग्रेज़ी व्याकरण के मामले में अँगेजी माध्यम से पढ़े बच्चों से बीस ही रहते हैं, उन्नीस नहीं। 

आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि अपनी मातृभाषा पर हर किसी की पकड़ होती है। उसको न केवल समझना आसान है, अपितु उसमें अपने हृदय के भावों को संप्रेषित कर पाना अधिक सुलभ है। 

ऐसे में जब ये समाचार आता है कि यूपी बोर्ड की परीक्षा में इस वर्ष आठ लाख परीक्षार्थी हिन्दी विषय में असफल हो गए। हिन्दी भाषी प्रदेश में ही हिन्दी विषय में इस तरह का लचर प्रदर्शन ? हिन्दी पढ़ने के प्रति ऐसी अनिच्छा ? क्या ये चिंता का एक विषय नहीं है? 

वहीं अंग्रेज़ी माध्यम के बोर्ड में हिन्दी विषय में शत प्रतिशत अंक मिलना, किस बात की ओर संकेत करता है? क्या हिन्दी  एक परीक्षा उत्तीर्ण करने का साधन मात्र बनकर रह गयी है? क्या हिन्दी में आधिकाधिक अंक देकर उसे एक आसान विषय का तमगा देकर विद्यार्थियों में विषय के प्रति एक अतिविश्वास भरा जा रहा है? सौ प्रतिशत अंक क्या उस विषय पर विद्यार्थी के असाधारण अधिकार की घोषणा नहीं करते ? 

यू पी बोर्ड की कापियों का मूल्यांकन करने वाले अध्यापकों का कहना है कि विद्यार्थियों को हिन्दी के सरल वाक्य भी नहीं लिखने आते हैं, इसकी वजह से हम लोगों को विद्यार्थियों को हिन्दी भाषा विषय में भी अनुत्तीर्ण करना पड़ा है। 

उनके अनुसार बच्चों को हिंदी भाषा में 'आत्मविश्वास' जैसे सरल शब्द नहीं लिखना आता है और इसके स्थान पर उन्होंने अंग्रेज़ी में ' कांफिडेंस' लिखा था, जिसकी वर्तनी भी गलत थी। कुछ बच्चों ने 'यात्रा' शब्द की जगह अँग्रेज़ी वाला 'सफ़र' लिखा था। मतलब हिन्दी तो आती ही नहीं, 'सफ़र' के मामले में भी सिफ़र ही हैं। 

इसमें बच्चे की भी क्या त्रुटि है? फ़ेसबुक , ट्विटर, इंस्टाग्राम हर जगह पर बच्चा 'नयी वाली हिन्दी' सीख रहा है। जहाँ जब मन करे अपने हिसाब से किसी भी भाषा का शब्द घुसा दो। चावल में कुछ काली दाल के दाने डाल दिये, अब तक चलता रहा। पर अब दाल ही दाल घुसा दोगे तो चावल ,चावल कहाँ रह जायेगा? खिचड़ी से भी गया गुज़रा हो जाएगा। 

ये नयी वाली हिन्दी और पुरानी वाली हिन्दी क्या बला है? हिन्दी हिन्दी है। कुछ शब्द अपरिहार्य हैं, दूसरी भाषा से उधार लेना मज़बूरी है, पर इसका ये अर्थ तो नहीं कि अपनी भाषा को दूषित करते जायें और फिर उसे नयी वाली हिन्दी कह कर इतरायें ? 

सुखद ये है कि इधर कुछ वर्षों में फ़ेसबुक/ट्विटर/इंस्टाग्राम पर तेजी से हिन्दी लेखन मंचों की संख्या बढ़ी है, उनमें प्रतिभाग करने वाले लेखकों की संख्या बढ़ी है, सबसे ऊपर हिन्दी पुस्तकों की बिक्री में वृद्धि हुई है। भले ही ये अभी बहुत  नाममात्र का ही योगदान दे पा रहे हों। 

मैंने स्वयँ न मालूम कितनी अच्छी हिन्दी पुस्तकों की समीक्षा किसी की फ़ेसबुक वॉल पर देखी और उसे तुरन्त मंगा लिया।  ऐसा विस्तार, प्रसार होता रहना चाहिए। जब भी आप कोई हिन्दी की अच्छी पुस्तक पढ़ें, उसके बारे में अवश्य लिखें, ऐमज़ॉन/ किंडल / या किसी अन्य मंच पर उसे रेटिंग अवश्य दें। इतना योगदान तो दे ही सकते हैं, अपनी भाषा को समृद्ध करने के लिए। 

टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

Saturday 12 September 2020

ईश्वर का चमत्कार

ईश्वर का एक चमत्कार
खटकता रहा मुझे जीवन भर
स्त्री की पीठ पर उगे
जब जब देखे छह अतिरिक्त हाथ

~टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 
चित्र: साभार गूगल 

Wednesday 9 September 2020

गिरवी

तुम्हारा सुख मेरे पास गिरवी पड़ा है
चाहो तो कुछ दिन देकर छुड़ा ले जाओ

~टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

Tuesday 8 September 2020

झील, चाँद और तुम

तुम उस पानी से अपना चेहरा न धोया करो
चाँद उसी झील में अपने पाँव धोने आता है

~ टि्वंकल तोमर सिंह

Friday 4 September 2020

शिक्षक

अगर ज्ञान की दुनिया सांप सीढ़ी का खेल हो तो
एक अच्छा शिक्षक वो सीढ़ी होता है, जो आपको 25 सवें खाने से सीधे 91वें खाने तक पहुंचा देता है।

टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

Tuesday 1 September 2020

विदा



एक पोटली के
सिरों को कस दो
एक छोटा सा मुख
शेष रहता है
वो शब्द है
विदा...!

अनगिनत शब्द
संवेदनायें अपरिमेय
अथाह भाव-आवेश
मानस-पोटली में 
धरे रह जाते है
अधर बुदबुदा देते हैं
विदा...!

टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 




द्वार

1. नौ द्वारों के मध्य  प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...