Monday 18 September 2017

निंदा रस

निंदा रस
निंदा और स्तुति दोनों अहंकार के पोषक हैं।
और अहंकार पोषित हुए बिना पीछा नही छोड़ता।
यदि कोई व्यक्ति आपके सामने किसी की निंदा करे, तो आप इस कार्य मे उसका भरपूर सहयोग करें।उस हद तक जब तक निंदा कर कर के उसका अहम संतुष्ट न हो जाये।

 जिस प्रकार यौन संतुष्टि पूर्ण न हो पाने पर व्यक्ति कामांध हो जाता है, उसी प्रकार अहम तुष्ट न हो पाने की स्थिति में निंदक व्यक्ति ज्यादा खतरनाक हो जाता है।अपूर्णता अमुक व्यक्ति को अंधा बना देती है और वो निंदा के शुक्राणु लिए संपर्क में आये हर व्यक्ति को निषेचित करने का प्रयास करता है।

अतः किसी की निंदा उस व्यक्ति के मुंह से धैर्यपूर्वक सुन कर,उसे सहारा देकर,उसकी हाँ में हाँ मिलाकर आप निश्चित ही अमुक व्यक्ति के अहंकार को पुष्ट करके एक तरह से समाज सेवा कर रहे हैं।
निश्चिंत रहें !
Twinkle Tomar Singh 😎

Monday 11 September 2017

अथातो बैरी जिज्ञासा

अथातो बैरी जिज्ञासा
कुछ लोग चलता फिरता प्रश्रचिन्ह होते है। इन्हें अपनी निजी जिंदगी से कम आपकी निजी जिंदगी से ज्यादा प्रेम होता है। जब तक ये लोग आपके घर की झाड़ू में कितनी सींकें है , ये तक न पता लगा ले इन्हें चैन नही आता।

इनके शिकार अंतर्मुखी लोग, शर्मीले व्यक्तित्व वाले लोग, शालीन लोग, हद से ज्यादा संस्कारी लोग बनते है। क्योंकि जैसे लखनवी तहजीब में हर किसी से आदर से बात करना शामिल होता है, वैसे ही उपरोक्त गुणों वाले लोग उनकी बातों का प्रतिकार नही कर पाते। और उन्हें लगता है जो प्रश्न उनकी ओर उछाला गया है ,उसका जवाब देना उनकी नैतिक जिम्मेदारी है। वो बदतमीज़ी से जवाब नही दे पाते कि अपने काम से काम रखिये।

इसका फ़ायदा ये क्वेश्चन बॉक्स माइंड वाले लोग भरपूर उठाते है। जैसे मोदी जी अपने हर action के लिए  केजरीवाल के प्रति जवाबदेह हैं, उसी प्रकार इन्हें लगता है कि इनके आस पास जो भी व्यक्ति है , वो इनके प्रति जवाबदेह है।

वो कहाँ जाता है, क्या करता है, वो किसके साथ आता है , किसके साथ जाता है, उसने आज घर मे क्या सब्जी खायी, उसके घर मे कामवाली कितना पैसा लेती है,उसके लड़के का किसके साथ अफेयर चल रहा है, उसके पति की कितनी कमाई है, किसकी लड़की की शादी तय हो रही है, सब इन्हें पता होना चाहिए। ये सब चीजें आपको लगता होगा कि पर्सनल हैं। पर इनकी चाणक्य बुद्धि कहती है कि सबका साथ सबका विकास तभी संभव है, जब ये सारी जानकारी आसपास की जनता को भी पता हो। या कम से कम इन्हें तो अवश्य पता हो।और अगर इन्हें पता न चले तो ये अजीब सी बेचैनी के शिकार होने लगते है। इनका ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है।इन्हें लगता है कि लोग इनके हितैषी स्वभाव को गलत समझ रहे हैं।

यहां तक कि मनमाफिक उत्तर न मिलने पर या जिज्ञासा का समाधान न होने पर ये लोग मुंह फुला कर ऐसे बैठ जाते है जैसे शरबरी ने मीठे बेर खाने के लिए भगवान राम के सामने रखे थे, और उन्होंने खाने से इनकार कर दिया।

जब ये अपनी जिज्ञासा का समाधान प्रत्यक्ष रूप से व्यक्ति विशेष से नही कर पाते, तो ये तुरंत जग्गा जासूस का अवतार ले लेते हैं। और व्यक्ति विशेष से जुड़े हुए लोगों से प्रश्न पूछ पूछ कर उन्हें परेशान कर देते है। इनकी हालत उस नशेड़ी की तरह हो जाती है, जिसे अफीम न मिले तो वो बौराने लगता है।

ऐसे में  उस तीसरे व्यक्ति की स्थिति कितनी खराब हो जाती है, उससे इन्हें कोई मतलब नही। अगर वो उनकी जिज्ञासा का समाधान कर दे तो अच्छा ,नही तो बुरा।
" तुम्हे पता जरूर होगा, तुम बता नही रहे हो," जैसे रॉकेटनुमा जुमलों को झेलता हुए वो व्यक्ति सोचता है, न बताऊं तो ये नाराज़, बता दूं तो मेरा मित्र नाराज़, चुप रहूं तो मैं डिप्लोमैट।

जिस प्रकार क्रिकेट में दो तरह के attitude का खेल में पालन किया जाता है - attack या defence। उसी प्रकार ये सालों से सवाल जवाब का खेल खेलते खेलते इतना मंझ जाते हैं, कि हमेशा अटैक की मुद्रा में रहते हैं।ये हमेशा गेंद आपके पाले में फेंक देंगे , अब आप दाँव सोचते रहिये।

ऐसी बहुमुखी प्रतिभा के धनी , मस्तक पर प्रश्नचिन्ह का तिलक लगाए लोग आपको अपने आस पास ही मिल जायेंगे। जरा नज़र डाल के देखिए तो। कभी पड़ोस की पंचायती बुआ के रूप में, कभी किसी मित्र के रूप में,कभी किसी कॉलीग या सीनियर के रूप में और रिश्तेदारों में तो कोई न कोई बस इसी महान काम के लिए धरती  पर अवतरण ही लेता है।
ईश्वर आपकी उनसे रक्षा करे !
Twinkle ☺

Tuesday 5 September 2017

Teachers day



5 September 2017
अध्यापक एक अजनबी होता है पहले ही दिन से।उसकी बातचीत, व्यवहार, बोलने का तरीका,उसके कपड़े,सब कुछ अलग दिखते है अगर एक छोटे से बच्चे की नज़र से देखा जाए तो।
बड़े बच्चों से भी एक फासला रहता है।शायद ही एक फुट के दायरे के अंदर अध्यापक और शिष्य आते हो। हमेशा ज्ञान की बात करने वाला एक बोझिल इंसान।
लेकिन उसकी कही बात बच्चों के मन मस्तिष्क में गहरे बैठ जाती है। इसलिए अध्यापक को हर पल सतर्क रहना चाहिए।

जैसे हर व्यवसाय में अनुभव व्यक्ति को मांजता है उसी प्रकार कोई व्यक्ति बस एक डिग्री या पद हासिल करके शिक्षक नही हो जाता।हर दिन शिक्षक को स्वयं को साबित करने के लिए परीक्षा देनी पड़ती है।एक कक्षा में जब 80 आंखें आप पर टिकी हो तो आपको शब्दों का चयन सतर्कता के साथ करना होता है, बॉडी लैंग्वेज का ध्यान रखना होता है।बच्चों द्वारा पूछे जाने वाले काम के या फालतू के प्रश्नों का उत्तर होशियारी से देना होता है।

अध्यापिका के रूप में मेरे जो सबसे पहले प्रधानाचार्य थे वो एक बहुत अच्छी बात कहा करते थे-

"We are teachers not by choice but by compulsion. When we do not get any job anywhere we become teachers."

ये अक्षरशः सत्य है। ज्यादातर शिक्षक शिक्षण कार्य को आजीविका का साधन तब बनाते है जब हर जगह से असफल हो चुकते है। ऐसे में जब व्यक्ति अपने मन का काम ही नही कर रहा है,उसने मजबूरी में इस व्यवसाय को चुना है, तो उससे आप परफेक्शन की उम्मीद कैसे कर सकते है?

लेकिन जैसे कि रसायन विज्ञान में गैस की परिभाषा कुछ यूं दी गयी है - Every gas tends to be perfect, but no gas is perfect.
ठीक उसी प्रकार मुझे लगता है-
"Every teacher tends to be perfect , but no teacher is perfect."

शिष्य वास्तव में उस दर्पण की तरह होता है, जिस पर पड़ी धूल को एक शिक्षक जितना अधिक साफ करने की कोशिश करेगा, उसका प्रतिबिम्ब उतना ही अधिक स्पष्ट और निखरा हुआ दिखेगा।

मेरे प्रथम शिक्षक मेरे माता पिता को, मुझे औपचारिक शिक्षा देने वाले प्रत्येक शिक्षक को ,मुझे प्रतिदिन कुछ नया सिखाने वाले मेरे विद्यार्थियों को और जीवन मे नया तजुर्बा देने वाले हर एक इंसान को,
शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं।
Twinkle Tomar Singh 

द्वार

1. नौ द्वारों के मध्य  प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...