Monday 15 March 2021

बंद खिड़की से आती लाल रोशनी

मन में कुछ अवरोध हो तो
बन्द खिड़कियाँ 
हर आवागमन पर बैठा देतीं हैं
लाल सिग्नल

व्यतीत होते हुये अंतरिक्ष ने
हर उत्सव के साक्षी होने का 
चौखट पार दे रखा था
हरा सिग्नल

~टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

Sunday 14 March 2021

लाल

उपासना के कई मार्ग थे
भक्ति के एक बिंदु से
कई शाखायें निकलीं
ईश्वर लाल बने तो कभी पिता
कभी प्रेमी तो कभी सखा
किसी ने प्रश्न न किया

प्रेम के भी अनेकों स्वरूप थे
खेद...बहुरंगी ओप धूसर समझे गये
चहुँओर से प्रश्न बरसे भाले बनकर
इन घावों से रक्त बहा निःशब्द
सबने कहा-देखा यहाँ भी रक्त का रंग था 'लाल'

~ टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 
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( ओप- आभा,चमक /  धूसर- धूल का रंग /  लाल- वासना का प्रतीक रंग) 


Thursday 11 March 2021

राजदूत

तरंगी मदालस मधुप को दूत बनाया
जड़-वृक्ष में बन्धनबद्ध पुष्पों ने परागण पाया
शशि,क्या तुम न होगे संदेशवाहक मेरे
अभिशापित चातक ने हर रात्रि दोहराया
अलकापुरी जाते हो मेघ,संग दूतकार्य कर आना
विरही यक्ष ने प्रेयसी को आषाढ़ी संदेश भिजवाया
हृदयेश्वर वल्लभ तक पाती,भला कैसे जा पाती
गोपियों ने बृहस्पत-शिष्य उद्धव को डाकिया बनाया
ओ नन्दी,रे राजदूत, मुझ विरहिणी,उत्कट अभिसारिका ने
तेरे पृथु कर्णों में ह्रस्व निवेदन अर्पित किया था कभी
क्या तुमने अब तक 'पाशविमोचन' तक नहीं पहुँचाया? 

~टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

Wednesday 10 March 2021

बस एक नींद

तुम स्त्री हो
तुमने रात्रि को 
रात्रि न रहने दिया
तुमने दिन को ऐसे जिया 
जैसे इस दिन के बाद 
कोई दूसरा दिन उगेगा ही नहीं
वो पेट काट कर 
बच्चों के पेट भरता रहा
तुमने सच में पेट काट कर 
बच्चे को जन्म दिया
तुम्हारी घड़ी की टिक टिक 
मूसल की धम-धम बन चलती रही
इस श्रम का कोई पारितोषिक नहीं
तिस पर जाओ एक वरदान ले लो...
धन...प्रतिष्ठा....पद.... प्रसिद्धि....???
स्त्री की सिकुड़ी आँखें, कुछ खुलीं..और माँगा
बस एक भरपूर नींद....!!

~टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 


Saturday 6 March 2021

सत्यजीत रे की कहानियाँ

पुस्तक समीक्षा 

सत्यजीत रे को आप किस रूप में पहचानते हैं? एक फ़िल्म निर्माता...एक निर्देशक ...कहानीकार...डॉक्यूमेंट्री निर्माता...गीतकार ...संगीतकार...सुलेखक...? 

अधिकतर लोग सत्यजित रे को एक फिल्म निर्देशक के रूप में ही जानते हैं, पर क्या आप जानते हैं उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी हैं? उनकी कहानियों में भारतीय समाज के कई रूप उभरकर सामने आए हैं। 

पुस्तक पढ़ने की लालसा मन में लिये और किसी नये लेखक को पढ़ने की इच्छा लिये हुये जब पुस्तकें खंगाल रही थी तो एक पुस्तक हाथ लगी 'सत्यजीत रॉय की कहानियाँ"। इसे शुरू करते समय यही अनुमान था कि इसमें कुछ शतरंज के खिलाड़ी या पाथेर पंचाली जैसी ही कहानियाँ होंगी। इनके बस यही दो चलचित्र मैंने देख रखे थे।

पहली कहानी जो मैंने पढ़ी वो थी- 'प्रोफेसर हिजबिजबिज'। आशा के बिल्कुल विपरीत एक कहानी पढ़ना मेरे को पचा नहीं। मैंने सोचा ये क्या बकवास कहानी थी और क़िताब पलटकर रख दी। फिर दो चार रोज़ के बाद लगा, शायद मेरे अपने ही समझने में भूल हुई होगी। शायद मेरा मस्तिष्क उतना परिपक्व नहीं कि उनकी कहानियों को समझ सकूँ। 
फिर दूसरी पढ़ी- 'फ्रिन्स' ये कुछ ठीक लगी। तीसरी पढ़ी- 'ब्राउन साहेब की कोठी'। तीसरी कहानी पढ़ते पढ़ते समझ आया ये कुछ अलग ही लेवल की पुस्तक है। 

इसमें ग़रीबी, भुखमरी, दया , करुणा ..नहीं मिलेगा। इस पुस्तक को पढ़कर मेरे सामने सत्यजीत रॉय का एक अलग ही पहलू उभर कर सामने आया। 

इस पुस्तक में सारी की सारी कहानियाँ रहस्य और रोमांच पर आधारित हैं। और कथावस्तु इतनी नवीन, इतनी अलग कि आप प्रभावित हुये बिना रह ही नहीं सकते। वैसे तो मुझे सब की सब कहानियाँ बहुत पसंद आयीं , पर मेरी सबसे अधिक पसंदीदा कहानी रही-  रतन बाबू और वह आदमी। इस कहानी को पढ़ने के बाद काफ़ी देर इसी के बारे में सोचती रही। ये कहानी बहुत कुछ कह गयी थी। इस दुनिया में वास्तव में बिल्कुल आपके जैसा कोई व्यक्ति मिल जाये , तो आप उससे किस प्रकार पीछा छुड़ाने को बैचैन हो जायेंगे। यही इसकी कथावस्तु थी। 

आख़िरी की दो कहानियाँ फेलूदा सीरीज़ से थीं। इससे पहले मैं फेलूदा को नहीं जानती थी। राय ने बांग्ला भाषा के बाल-साहित्य में दो लोकप्रिय चरित्रों की रचना की — गुप्तचर फेलुदा (ফেলুদা) और वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर शंकु। इन्होंने कई लघु-कथाएँ भी लिखीं, जो बारह-बारह कहानियों के संकलन में प्रकाशित होती थीं और सदा उनके नाम में बारह से संबंधित शब्दों का खेल रहता था। उदाहरण के लिए एकेर पिठे दुइ (একের পিঠে দুই, एक के ऊपर दो)। राय को पहेलियों और बहुअर्थी शब्दों के खेल से बहुत प्रेम था। इसे इनकी इन कहानियों में भी देखा जा सकता है। फेलुदा को अक्सर मामले की तह तक जाने के लिए पहेलियाँ सुलझानी पड़ती हैं। शर्लक होम्स और डॉक्टर वाटसन की तरह फेलुदा की कहानियों का वर्णन उसका चचेरा भाई करता है।

राय ने इन कहानियों में अज्ञात , रहस्यमय और रोमांचक तत्वों को भीतर तक टटोला है, जो उनकी फ़िल्मों में नहीं देखने को मिलता है। इस संग्रह की कहानियाँ न केवल मनोरंजक हैं, बल्कि पाठकों के मन को उद्वेलित करनेवाली हैं। 

मैं इन कहानियों से इतनी प्रभावित हुई कि इनकी एक बांग्ला फ़िल्म 'आगंतुक' भी देख डाली। 

जो लोग मुझसे पूछते हैं 15-16 साल के बच्चे के लिये कहानी की क़िताब बताइये तो निःसंदेह सत्यजीत रे की गुप्तचर फेलुदा और वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर शंकु सीरीज़ की पुस्तकें दी जा सकती हैं।

चलते चलते -
इनके बारे में रिसर्च कर डाला पूरा तो पता चला कि जिम कॉर्बेट की ‘मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं’ और जवाहरलाल नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ के आवरण भी सत्यजीत रे ने ही डिजाइन किये थे। 

~ टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ।

Tuesday 2 March 2021

जन्म शुभ हो

अविरत है और मुझे नहीं पता कि इसे कैसे अनुभव किया जाये। एक झूले पर बैठकर जैसा रोमांच होता है कुछ वैसा ही। झूला इतनी तेजी से आपको झुलाता है कि एक पल के आनंद या भय को आप समझ नहीं पाते कि वो दूसरा ले आता है। 

मैं जब फूलों को खिला देखती हूँ तो मुझे लगता है मैंने इसका जीवन जिया था कभी...मैं जल थी कभी....मैं मृदा थी कभी......मैंने अन्य जीवों की आँखों में आँखे डाल कर जब भी देखा मुझे वहाँ अपनी ही आत्मा का कोई अंश कैद दिखाई दिया। मैंने वहाँ वो तड़प देखी है, वो बेबसी देखी है, जो मेरी आत्मा भोग रही है। 

यदि कोई मुझसे कहे कि तुम्हारे पास विकल्प है, दुनिया में किसी का भी जीवन चुन लो...उसका जिसके पास करोड़ों रुपये हैं...उसका जिसका यौवन अक्षुण्ण है...उसका जिसके पास शोहरत की बुलंदियाँ हैं....उसका जिसके पास .....

शायद मैं किसी से भी उतना प्यार नहीं करती जितना अपने आप से करती हूँ। मुझे यही आत्मा , यही शरीर चाहिये। मेरे दुःख मुझे पवित्र करते हैं...मेरे सुख हवन से निकली सुगंध हैं...मेरी कमियाँ मुझे संत होने से बचाती हैं....मेरी अच्छाइयाँ मुझे प्रेरित करतीं हैं कि मैं इस विरासत को किसी को सौप कर जाऊँ.....

मैंने अपने शरीर , अपनी आत्मा, अपने मन को जितने घाव दिये हैं....इतने दर्द किसी ने नहीं दिये..इनसे बहुत रक्त बहा है... एक बहुत ही श्वेत, स्वच्छ चादर थी....जिसे मैंने जम कर मैला किया है...और मैला करती ही जा रही हूँ....दिन प्रतिदिन... हर पल हर क्षण.....

पर जन्मदिन स्मरण कराता है ....आनंद मनाओ....सजा के साल कम होते जा रहे हैं....रिहाई का समय बहुत जल्दी आने वाला है.....इस शरीर से, इस नाम से जितना मोह है, जितना प्रेम है, सब धरा रह जायेगा.....

मैं फिर फूल बनकर जन्म लूँगी...फिर बेवकूफी भरे प्रश्न ईश्वर से पूछूँगी..... क्यों..?? आख़िर क्यों ऐसा जन्म दिया...जहाँ मेरे पैर मिट्टी में जकड़े है.....वो देखो...वो लोग कैसे भाग लेते हैं...मैं चल तक नहीं पाती....

ईश्वर मुस्कुरायेगा..... तुम्हें फिर किसी कल्प में टि्वंकल तोमर  बनना होगा...तब ख़ूब चलना....सितारों तक पहुँचना... बस इस बार चादर कम मैली करना....!!

ये जन्म शुभ हो टि्वंकल !!

द्वार

1. नौ द्वारों के मध्य  प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...