Friday 28 February 2020

धारा के विपरीत

धारा के विपरीत 
धारा के साथ वाले सवाल
तब न समझ में आते थे
न ही हल होते है

अब समझ में ख़ूब आते है
पर हल अब भी नही होते

~ टि्वंकल तोमर सिंह

Friday 21 February 2020

शिव शक्ति संवाद

वो उनकी आँखों में 
देखते हुए बोलीं-
आपके तीनों नेत्र 
कितने निष्पाप है, 
कितने सच्चे।
मानो सारी सृष्टि 
घूर्णन करती है 
इन पुतलियों में!

फिर कौतूहल से पूछा
और मेरे नैन ?


तेरे नैन कहाँ 
निष्पाप हैं प्रिये
छवि मेरी 
बंदी बना के रखते हैं
घोर अपराधी हैं ये! 

शिव-पार्वती संवाद

टि्वंकल तोमर सिंह,
लखनऊ। 

चित्र: साभार गूगल


Wednesday 19 February 2020

मासिक धर्म में पूजा क्यों नहीं करनी चाहिये

कल वाली पोस्ट पर आप सबकी एक से बढ़कर एक बेहतरीन प्रतिक्रियाओं का बहुत बहुत धन्यवाद। सबको अलग से उत्तर देना संभव नहीं है। इसलिये इसे ही acknowledgement समझिए। 

दूसरी बात मेरी पोस्ट में कहीं भी किसी भी बाबा या उनकी विचारधारा का जिक्र या उनका समर्थन नहीं है। पढ़े लिखे लोगों से इतना तो पढ़कर समझने की उम्मीद की ही जा सकती है। साथ में मैं एक अध्यापिका हूँ, समाज से अंधविश्वास को ख़त्म करना मेरी अघोषित जिम्मेदारी भी है। 

कुछ पॉइंट्स पुनः रखना चाहती हूँ। 

मासिक का मसला शुद्धता व साफ सफाई से क्यों जुड़ा हुआ है ये शायद आज समझना मुश्किल है क्योंकि बगल वाली दुकान में लांग, एक्स्ट्रा लांग पैड शहरी स्त्रियों के लिये आसानी से उपलब्ध हैं। मेरी सास बताती हैं कि डिलीवरी या अबॉर्शन की अवस्था में उनको नीचे रक्त सोखने के लिये कम्बल दे दिया जाता था। अब आप सफाई की दृष्टि से इसे ख़ुद ही जोड़ कर देख लीजिये। गरीब लड़कियां मिट्टी, राख, गंदा कपड़ा क्या नहीं इस्तेमाल करने पर मजबूर है? एक बार अबॉर्शन की स्थिति में मेरे लिये अपने कमरे से बाथरूम तक जाना असंभव था। कमरे से लेकर बाथरूम तक फर्श पर खून ही खून फैल गया था। पंद्रह मिनट तक मैं बाथरूम से रक्त स्राव के कारण निकल नही सकी।

दूसरा शौचालय से आने के बाद क्या आप अपने मंदिर में दिया बाती करने लगते है? क्या आप बिना नहाए धोए पूजा करने लग जाते है? हाँ, जरूरत पड़ने पर तो बचपन में शौचालय में भी बिजली गुल हो जाने पर मैंने हनुमान जी को याद किया है। परीक्षाओं में अगर बिना नहाए भी भगवान से आशीर्वाद लेना पड़ा, तो लिया बिना इस भय के कि पाप हो गया है। 

सुबह सुबह नित्यक्रिया से निपट कर, पहले बिना नहाये मैं स्वयं प्राणायाम, ध्यान  और ओम का उच्चारण करती हूँ। अपने इष्ट का ध्यान करती हूँ। क्योंकि इन सबके लिये खाली पेट चाहिए। शुद्ध मन से आप किसी भी अवस्था में ईश्वर का स्मरण करें, कौन रोक सकता है भला? और बिना ईश्वर को याद किये किसी का एक पल भी गुजरता है क्या? कुछ भी अनहोनी हो सीधे मुँह से निकलता है, - हे राम! ओह गॉड या कुछ और या कोई मंत्र जिसका आप नियमतः जप करते हैं। फिर आप किसी भी स्थिति में हो।  सिजेरियन के बाद मेरे बच्चे को आई सी यू में रखा गया था, तब मेरे मन में भी मेरे इष्ट का जप चल रहा था। उस समय हॉस्पिटल में बेड पर पड़े हुये सफाई मेरी प्राथमिकता में नहीं थी। 

जिन लोगों को मेरी बात समझ आयी, जिन्होंने मुझे सराहा उनका हृदय तल से धन्यवाद। जिन लोगों को खामख्वाह लग रहा है कि मैंने विरोध में पोस्ट लिखी है , उनकी बुद्धि को प्रणाम। आप तीर के निशाने पर ख़ुद ही आकर बैठ जाये, तो बहन इसमें मैं क्या करूँ? 

मैंने पहले ही लिख दिया था कि पूजा पाठ करना न करना, रसोई छूना न छूना, अचार निकालना न निकालना जैसी मनाही आज के दौर में कोई नहीं मानता। फिर प्रॉब्लम क्या है बहन? 

अशुद्ध अवस्था है और मुझे अपने पिता की याद आये तो मैं उनको याद करके रो सकती हूँ, मगर वही पिता अगर मेरे सामने आ जायेंगे तो पहले मैं अपने रक्त से सने कपड़े संभालूंगी बाद में उनसे मिलूँगी। लेकिन अगर मुझे गंभीर रक्तस्राव है, बिस्तर पर पड़ी मैं एक रोगी हूँ, तो मेरे पिता मुझे किसी भी अवस्था में देखें मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। 

यही रिश्ता मेरा अपने परमपिता से है। और मैं अपनी बात पर कायम हूँ। 

~Twinkle Tomar Singh

मासिक धर्म और शुद्धता

जब पूरे शरीर में ज्वर सा अनुभव हो रहा हो, नाभि के नीचे से दर्द की लहरें पैरों में नीचे तक जा रहीं हो, कमर में बेतहाशा दर्द हो, और रक्त धार बन कर बह रहा हो। 

हर दो घण्टे पर पैड बदलने पड़ रहे हों, रात को नींद बीच बीच में सिर्फ ये चेक करने के लिये टूटती रहती है कि कहीं कपड़े तो ख़राब नहीं हो गए, बिस्तर पर दाग़ तो नहीं लग गया? 
ऐसे में स्वयँ ही मन नहीं करता कि बिस्तर से उठा जाए, मजबूरी न हो तो हर स्त्री यही चाहती है कि हैवी ब्लीडिंग के दो दिन उसे आराम मिले। 
ऐसी हालत में कोई घर पर मिलने आ जाये तो मन नहीं करता ऐसी अस्त व्यस्त, मन अच्छा न महसूस करने वाली अवस्था में किसी से मिलें, नौकरी पर जाएं। ( हालांकि ये सब करना होता है), फिर ईश्वर से कैसे मिलने जायें?

पूजा पाठ करना, खाना बनाना न बनाना, अचार छूना न छूना जैसी मनाही आज के दौर में कोई नहीं मानता। मगर क्या आपको स्वयँ मन में एक अशुद्धि का भाव नहीं रहता? रसोई में सब्जी बनाते समय मन नीचे धार बन कर बह रहे रक्त पर नहीं रहता? मन अशुद्ध हो तो क्या स्वयँ ही पूजा में न बैठने का मन नहीं करता?  क्या ये भय नहीं सताता कि जिस शुद्ध आसन पर हम बैठे हैं, उस पर कहीं दाग़ न लग जाये? 

इन दिनों पूजा पाठ करने की आज़ादी, रसोई छूने की आज़ादी,अचार निकालने की आज़ादी में ही सारा वुमन लिब्रलाइजेशन घुसा हुआ है क्या? समझने की बात ये है कि
ये नियम सिर्फ स्वच्छता, शुद्धि और स्त्री को आराम देने के लिये है। सरकार भी महीने में एक दिन की पीरियड लीव देने का विचार कर रही है। आखिर क्यों? 

~Twinkle Tomar Singh

Sunday 16 February 2020

छलना

मुझे मेरे कमरे तक 
छोड़ने जाती हैं
इक्कीस सीढ़ियाँ
कभी बयालीस हो जाती हैं
तो कभी घट कर चार-पाँच

राजमिस्त्री ने 
रच दिया था कोई इंद्रप्रस्थ 
या मायालोक की किसी दुष्ट छाया ने
बैठा दी है मायाविनी मन के अंदर

©® टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 


Thursday 13 February 2020

ये इश्क़ हाय...

क्या तुम मुझे
यहाँ सबके सामने अभी
चूम सकते हो?"
उसने शरारत भरी
आँखों से चुनौती दी। 

उसने रेल के डिब्बे में
भरी भीड़ पर 
एक नज़र डाली
न मालूम कितनी शुष्क आँखें
कुछ पी लेने को 
उन पर ही टिकी थी

हाँ चूम सकता हूँ!
पर मुझे तो कुछ ही मिनटों में
डिब्बे से उतर जाना है
पर तुम्हें अभी दूर जाना है
मैं नहीं चाहता
उतनी देर भी तुम 
चरित्रहीन का दाग लिये
सफ़र करो

ट्रेन चल दी
लड़के ने विदा का 
एक चुम्बन हवा में उछाल दिया

बगल बैठी महिला ने कहा
अहा कितना प्यारा ! 

चरित्रहीनता के प्रमाणपत्र को
प्रशंसापत्र में बदलना 
कितना आसान था ! 


टि्वंकल तोमर सिंह,
लखनऊ। 

Tuesday 11 February 2020

Promise Day

प्रतिज्ञायें 
दर्पण की तरह है
अंततः टूटना ही 
उनकी नियति है

अपनी खंडित छवि को
कितनी देर निहार सकोगे

या फिर
टूटी हुई किरचों को
चुभे बिना बटोर सकोगे?

©® Twinkle Tomar Singh 




Saturday 8 February 2020

प्रपोज़ डे



व्यस्त सुबह की जल्दबाज़ी में पी कॉफ़ी जुबान को नहीं मस्तिष्क को संतुष्ट करती है। आज के कामों की लिस्ट में सुबह की कॉफ़ी- टिक ! 

टिफ़िन बनाना, रखना, सब ज़रूरी कॉपी किताब रजिस्टर रखना, चलते समय दुप्पटा न छूट जाये, दूर की नज़र कमज़ोर है, चश्मा पहन लिया न? प्रदूषण बहुत है मुँह पर कपड़ा बांधना है। चलते समय , खाने की बाहर पड़ी चीजें फ्रिज़ में रख देना। अलमारी लॉक कर देना है। चाभी स्कूटर में लगाते समय ध्यान आता है, बहुत गंदा है स्कूटर। अरे छोड़ो होगा, देर हो रही है। 


अधिकारी की बात, बिना बात पर झिड़कियां, सहकर्मियों की श्रेष्ठता सिद्ध करती बातें, वरिष्ठों की प्रभुत्व जताती बातें, स्टूडेंट्स की शिकायतें, कर्मचारियों के कोई भी काम बता देने पर टेढ़े मुँह....एक सफेद कागज़ पर पिन चुभाते जाओ तो वो भी छलनी बन जाता है, ये तो फिर भी दिल है। वो दिल जो पहले से तुम्हारी झुंझलाहट, चिड़चिड़ाहट से खफ़ा है। 

इन सबके बाद भी दिन कहाँ ठहरता है। तमाम शगुन अपशगुन में तैरता हुआ बीतता जाता है। 

मेरे पास इतना वक़्त भी नहीं कि ठहर कर सोचूँ तुम्हारे साथ भी तो यही सब होता होगा। अपने रचे भुलभुलैया सरीखे जंगल में हर कदम पर ख़ुद ही गुम हूँ। कैसे देखूँ तुम अपने जंगल में कैसे लड़ रहे हो?



ऐसे में शाम को तुम्हारा बस पूछ लेना 'कॉफ़ी पियोगी?'  

और मैं आँखों में प्रेम के भाव के लिये सुकून के घूँट के लिये हामी भरती हूँ....

कुछ प्रपोज़ल कितने मीठे होते है! 

Propose Day 

©® टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 



Tuesday 4 February 2020

सुनो यात्री

सुनो यात्री
ये राजमार्ग का रास्ता 
परमात्मा तक नहीं जाता। 
तारकोल की चिकनी सड़क, 
वाहनों की सुगमता 
समय की अल्पता
परमात्मा तक नहीं पहुंचाती। 

परमात्मा तक पहुँचना है? 
पगडण्डी चुन लेना
और चलना नंगे पाँव

पगडंडी का बाईस्कोप देखना
दाना ढोकर ले जाती हुई चींटी, 
नन्हों के लिये भोजन ढूंढ़ती चिड़िया, 
पंख फैलाकर प्रेयसी को लुभाता मोर, 
पेड़ की डाल पर कूकती कोयल
तालाब पर मिट्टी लपेटे बच्चे


ये दृश्य जब कर दें
मंत्रमुग्ध कुछ यूँ
कि पैरों के नीचे नुकीले पत्थरों की 
चुभन का भान मिट जाये
तो समझना 
मिल गया परमात्मा! 


टि्वंकल तोमर सिंह,
लखनऊ। 

चित्र: साभार गूगल

Monday 3 February 2020

तू प्यार है किसी और का

"अच्छा सुनो, जब  पति पत्नी का सात जन्मों का साथ होता है तो क्या मरने के बाद स्वर्ग में भी दोनों साथ साथ रहते होंगे?" हम एक शादी में गये थे। वहाँ फेरों पर पंडित जी श्लोक के साथ साथ पति पत्नी के अटूट बंधन की कथा भी कहते जा रहे थे। मेरे मन अचानक से प्रश्न उठा। मैंने पास ऊँघ रहे पति के कान में फुसफुसा कर पूछा। 

पति ऐसे चौंके जैसे उन्हें कोई शौक ( अंग्रेजी वाला) लगा। " क्या कहती हो,जान...मरने के बाद भी साथ रहोगी क्या?" 

"उँह...ये पंडित जी ही कह रहे है सात जन्मों का साथ है पति पत्नी का। क्यों पंडित जी?" मैंने भी सोचा इनकी क्लास लगवा ही दी जाये।

"जी श्रीमान, पति पत्नी का संबंध अटूट होता है। स्वर्ग नरक सब साथ साथ ही भोगने होते हैं।"  पंडित जी ने कहा। 

पति ने लंबी सी उबासी ली। फिर कहा, " तो फिर अगर पति पत्नी मरने के बाद साथ रहते होंगे तो उसे स्वर्ग नहीं कहते होंगे।" 

पति की चुटकी पर वहाँ उपस्थित पूरा पति समाज ठहाके लगा कर हँस पड़ा। " सही बात है। अगर स्वर्ग में भी पत्नी के साथ ही रहना हो तो भैया हमें नरक में ही भेज देना।" बगल में खड़े मौसा जी एक आँख दबा कर कहा। 

अब हम सब पत्नी समाज के सदस्य एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। लेकिन हम हार तो हरगिज़ नहीं मान सकते थे। 

मैंने कहा," अच्छा सुना तो मैंने ये भी है कि स्वर्ग में पुरुष को अप्सराएं मिलतीं हैं। " 

" हाँ हाँ... मिलती ही होगी। क्यों नही मिलेगी? शादीशुदा पति ज़िन्दगी भर इतना सब्र रखे तो उसे कुछ तो पुरुस्कार मिलना ही चाहिए।" पति अब पूरे रंग में आ चुके थे। 


" अच्छा...अब सारी बात मेरी समझ में आ गयी! " मैंने शरारत से कहा। 

"क्या समझ आ गया? " पति ने पूछा। उन्हें क्या पता था मेरे दिमाग में एक लॉजिक पक चुका था। 

" यही कि पति पत्नी स्वर्ग में ही साथ रहते है। और पतियों को अप्सरायें मिलतीं हैं वहां।" 

" चलो मान तो लिया तुमने। वरना आजकल की पत्नियाँ कहाँ आसानी से कोई बात मानती हैं।" पति बड़ी कुटिलता से मुस्कुरा रहे थे और कल्पना के गोते लगाने लगे थे....कि वो अप्सरा के संग है और पत्नी सामने खड़ी कुढ़ रही है। 

" अरे मानना ही था। पति पत्नी स्वर्ग में साथ रहते है, और वो जो अप्सराएं होतीं है न , वो अपनी नहीं दरअसल दूसरों की पत्नियां होती हैं.... एक्सचेंज ऑफर यू नो...। और जानते हो वहाँ पर बैकग्राउंड में गीत कौन सा चलता है?" शास्त्रार्थ जीतने की मुस्कान मेरे चेहरे पर फैलने लगी थी।

"कौन सा? " उनका मुँह उतरने लगा था। 

" तू प्यार है किसी और का तुझे चाहता कोई और है।" मैंने एक आँख दबा दी। अबकी बार ठहाके बारी किसकी थी आप समझ ही सकते हैं। 

टि्वंकल तोमर सिंह,
लखनऊ। 


द्वार

1. नौ द्वारों के मध्य  प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...