Sunday 24 February 2019

बड़ी चौधरानी

"क्यों रे मुक्कु, तेरे घर में आज फिर चूल्हा नहीं जला न। चल बैठ मैं परोसती हूँ तुझे।" रसोई से बड़ी चौधरानी ने चूल्हे पर चढ़ी हांडी में कलछुली चलाते हुये कहा। " ये रज्जो तो और है, कितनी बार कहा है राशन ख़त्म हो जाया करे तो आकर एक दो किलो आटा ले जाया करे। पर संकोच में मांगती नहीं है।" साथ में हल्के स्वर में बड़बड़ाने भी लगीं।

जिज्जी,आप कैसे इस मैलेकुचैले गूँगे की बात समझ जाती हैं। जैसे ही ये आँगन में हरसिंगार के पेड़ के नीचे आकर खड़ा हो जाता है, आप इसके मन की बात जान जाती है, जबकि ये कुछ भी नही कहता, न आपसे कुछ मांगता है।-  छोटी देवरानी ने जो आटा माँड़ रही थी, पानी के छीटें डालते हुये आश्चर्य से  पूछा।

गांव में ठाकुर का इकलौता पक्का घर है। बड़ा सा आंगन है। इसी घर में रज्जो झाड़ू बुहारी करने के लिये आती है। रज्जो का गूंगा लड़का, मुक्कु, जो थोड़ा मंद बुद्धि भी है, उसके साथ हो लेता है। रोज ही आंगन में लगे हरसिंगार के पेड़ के नीचे कंकड़ पत्थर से बैठकर खेलता रहता है,पर जिस दिन भूखा होता है उस दिन पत्ते का दोना बना कर उसमें कंकड़ पत्थर भरने लगता है। मांगता कुछ नहीं बस बीच बीच में आंगन से सटी रसोई के दरवाजे की ओर मूक दृष्टि से ताक लेता है। रसोई के दरवाजे से सीधे सामने हरसिंगार का पेड़ दिखाई देता था। बड़ी चौधरानी रसोई बनाने में कितनी ही व्यस्त क्यों न हों, एक नज़र हरसिंगार के पेड़ के नीचे जरूर फेंक लेतीं थीं।

बड़ी चौधरानी ने पत्तल बिछाया , उसमें  एक तरफ दोना रखा, फिर पनीर की सब्जी उसमें परोसते हुये कहा- "पहले मैं भी इसे महरी का लड़का समझ के भगा देती थी, पर जबसे मेरा बेटा माघ के मेले में खोया है, मुझे दुनिया के हर बच्चे के मन की भाषा समझ आ जाती है।" दूसरी तरफ मुंह फेर कर चोरी से उन्होंने आँचल से अपनी छलक आयी आँखों को पोछ लिया।

क्या पता उनका बेटा जो मात्र पांच- छह साल का था, कुम्भ में उनसे बिछड़ने के बाद किस किस के घर के सामने ऐसे ही मुंह बांध के खड़ा हो , भोजन की आस में।  अब बड़ी चौधरानी को किसी भी भूखे को भोजन करा के ऐसी तृप्ति मिलती है जैसे उन्होंने अपने ही लाल को भरपेट भोजन करा दिया हो। प्यासी ममता हर बच्चे में अपने बालक के दर्शन कर लेती है।

©® Twinkle Tomar Singh

Thursday 7 February 2019

बेना

धरती तपती है,तो झुलाती होगी अपना बेना
झूमते क्यों भला यूँ ही, लहलहाते हुये ये पेड़

(बेना- हाथ का पंखा)

Twinkle Tomar Singh

Wednesday 6 February 2019

गुलाब जामुन डे

"अरे ये क्या...इतने सारे गुलाब?" पत्नी दरवाजे पर ही भौंचक खड़ी रह गयी।

शाम को काम से वापस आये पति ने बड़े प्यार से पत्नी के हाथ में लाल गुलाब के फूलों का एक सुंदर सा गुच्छा थमा दिया था।

"हां...आज कुछ रोज़ डे है। सब गुलाब के फूल खरीद रहे थे। तो मैंने भी ले लिये।" साइकिल दीवार से लगाते हुये उसने कुछ सकुचाते हुये और कुछ शरमाते हुये कहा।

आज पता नही क्या ख़ास बात थी। सब गुलाब के फूल खरीद रहे थे। फूल वाले भैया से उसने पूछा तो पता चला आज कोई विशेष नये चलन का त्योहार है - रोज़ डे, जो बड़े लोग मनाते हैं। दूसरों को देखकर उसे भी शौक जागा था इसलिये उसने अपनी पत्नी के लिये भी गुलाब के फूल ले लिये थे। वैसे भी उसके लिये कभी कहाँ कुछ खरीद पाता है। शादी के बाद से ही उसके लिये एक जोड़ी पायल खरीदने का मन बना रहा है, पर मजदूरी में इतनी बरकत ही नही हो पाती है। काम मिला तो मिला,नही मिला तो नही मिला।

पत्नी के अंदर बसी प्रेमिका की आत्मा ने  लाल गुलाबों में बसी प्यार की लाली को महसूस कर लिया था। खींच कर भरपूर खुशबु भर ली उसने अपनी सांसों में । उसके मन के हर कोने पर बौर आ गयी। अचानक से उसे महसूस हुआ जैसे कि वो किसी फ़िल्म की हीरोइन है, और उसका पति हीरो अक्षय कुमार के माफ़िक......पर दूसरे ही पल वो अपनी वास्तविकता की दुनिया में वापस आ गयी। तुरंत ही उसके अंदर की गृहस्थन कमर में पल्लू खोंस कर खड़ी हो गयी।

एक गहरी ठंडी सांस उसने भरी। उसे परिवार के और चार लोगों की खुशियों का भी तो ध्यान रखना था। एक आह के साथ उसने गुलदस्ता चारपाई के नीचे एक किनारे सावधानी से छुपाते हुये कहा- "अरे गुलाब तो कल तक सूख जायेंगे ही। इनका क्या फ़ायदा। तुम गुलाब जामुन ले आते तो ज़्यादा ठीक था। रोज़ डे - फोज डे से तो अच्छा होता हम अम्मा- बाबूजी और बच्चों के साथ "गुलाब जामुन डे" मना लेते।

Twinkle Tomar Singh

Monday 4 February 2019

दोस्ती का रंग

अमरूद होता था एक
फाँकें कटती थीं चार
तबियत हरी हो जाती थी

चिट बनती थी एक
गुजरती थी हाथों से चार
पीठ स्केल से नीली हो जाती थी

छुट्टी होती थी एक
दिन भर खेलते रहते थे चार
मम्मी लाल पीली हो जाती थीं

बाइक होती थी एक
सवार हो जाते थे चार
ट्रैफिक पुलिस लाल हो जाती थी

लड़की होती थी एक
प्रपोज कर आते थे चार
चेहरे की रंगत गुलाबी हो जाती थी

चौराहा होता था एक
मिलती थी राहें आके चार
शामें सुनहरी हो जाती थीं

अजी दोस्ती का रंग हमसे पूछिये !

Twinkle Tomar Singh

घायल अहम

बदलते मौसम के साथ युग पर युग बीत जाते हैं
घायल अहम वाले एक तारीख़ पर अटके रह जाते है

Twinkle Tomar Singh

ग्लूकोमा

#100शब्दोंकीकहानी

अपनी पिचानबे साल की अंधी दादी को लेकर मैं अमेरिका कैसे आता ? छोड़ आया था मैं उन्हें कुम्भ के मेले में प्रयागराज। अच्छा ही सोचा था उनके लिये मैंने। गंगा किनारे मरेंगी तो मोक्ष ही मिलेगा। माता पिता तो पहले ही मर चुके थे।

आज अमेरिका की सड़कों को छड़ी लेकर टटोल रहा हूँ। सूट बूट, रोलेक्स घड़ी, ऐडीडॉस के जूते पहन के घूम रहा हूँ...अकेले।

डॉक्टर्स ने कहा है दस साल से बिगड़ चुके ग्लूकोमा का अब कोई इलाज़ नही।

Twinkle Tomar Singh

Sunday 3 February 2019

हाशिया

बड़ी उम्मीद से तुम्हारे दस्तख़त के इंतज़ार में
जिन्दगी के पन्ने पर एक हाशिया छोड़ रखा है

Twinkle Tomar Singh

दोस्ती का रंग

अमरूद होता था एक
फाँकें होती थी चार
तबियत हरी हो जाती थी

चिट बनती थी एक
गुजरती थी हाथों से चार
पीठ स्केल से नीली हो जाती थी

अजी दोस्ती का रंग हमसे पूछिये !

Twinkle Tomar Singh

Saturday 2 February 2019

भूलभुलैया

सड़कें जो गांव से शहर तलक सीधी जाती है
कभी सोचा न था मैंने,भूलभुलैया बन जाती हैं

Twinkle Tomar Singh

Friday 1 February 2019

सुबह का मंजर

धूप की चाय पी जब उड़ती है गौरैया,
अपने भी पर उगने लगते हैं,
आलस्य के तहखानों में बंद रहने वालों,
सुबह का ये मंजर तो देखो.

बूढ़ा दरवाजा

गांव में घर के बूढ़े दरवाजे पर लटका ताला
शहर चली गयी अपनी चाभी को तरसता है

Twinkle Tomar Singh

द्वार

1. नौ द्वारों के मध्य  प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...