Tuesday 31 December 2019

प्रतिप्रश्न

समय को रोक लेना
अपने वश में होता
क्या रोक लेते ? 

उल्लास के पल
वेदना की घड़ियां
क्या पड़ाव सरीखे नहीं? 

अच्छा वर्ष छूट गया
विषाद क्यों
बुरा वर्ष बीत गया
हर्ष क्यों? 

जीवन यात्रा के
किस स्टेशन तक पहुँचे
क्या पता? 

कितनी दूरी 
अभी और शेष है
किसे अनुमान? 

उमंग मशक में 
शेष है अभी बहुत
क्या पर्याप्त नहीं?


#प्रतिप्रश्न

~ टि्वंकल तोमर सिंह,
    लखनऊ। 
    31/12/19

Sunday 29 December 2019

प्याज़ का जेंडर मेल





पति पत्नी में अगर थोड़ी बहुत नोंक झोंक न हो तो गृहस्थी का मज़ा ही नहीं है। हम पति पत्नी में वैसे तो रोज़ ही किसी न किसी बात पर झिकझिक होती रहती है। पर अक्सर भाषा को लेकर वाद विवाद ज़्यादा होता रहता है। जैसे अगर किसी बात पर मैं नाराज़ हो जाऊँ तो मैं कहती हूँ- 'मुझे बहुत तेज़ गुस्सा आ रही है।' पति तुरन्त मुझे करेक्ट करते हुये कहते है- मैडम, गुस्सा आती नहीं है,  गुस्सा आता है। मैं कहती हूँ मेरे इलाहाबाद में तो ऐसे ही कहा जाता है। वहाँ सबको गुस्सा आती है। 

ऐसे ही एक बार का किस्सा है जब प्याज़ महंगाई के चरम पर थी। पति बाज़ार जाते थे सब्जी खरीदने मगर प्याज़ लिये बग़ैर आ जाते थे वापस। एक दिन मैंने ज़ोर देते हुये कहा," अरे सुनते हो, प्याज़ बिल्कुल ख़त्म हो गयी है घर में, बाज़ार जाना तो ले आना।" 

पति बोले," बेग़म प्याज़ ख़त्म हो गयी है नही कहते हैं, प्याज़ ख़त्म हो गया है कहते हैं।" 

मैंने कहा," अच्छा तो अब सब्जियों का भी जेंडर होने लगा।" 

पति बोले," बिल्कुल होता है मोहतरमा। अब देख लो मिर्च का स्वाद कड़वा होता है। जानती हो क्यों? " 

"क्यों होता है ?" मैंने पूछा। 

" क्योंकि मिर्ची तीखी होती है। और इतनी तीखी इतनी कड़वी क्यों होती है? 'होती है'  मतलब स्त्रीलिंग।" शरारत से एक आँख दबा कर पति ने कहा। 

" अच्छा जी....समझ गयी मैं। अब  तो कोई कंफ्यूज़न ही नहीं रहा कि क्यों प्याज़ का जेंडर मेल (पुरुष) होता है।" मैंने भी शरारत से मुस्कुरा कर ज़वाब दिया। 

" क्यों होता है भला?" पति ने उत्सुकता से पूछा। 

" वो क्या है कि प्याज़ रुलाता बहुत है न, इसलिए।" मैंने बड़ी अदा से ज़वाब दिया। फिर क्या था पति को कोई ज़वाब सूझा ही नहीं। 

टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

Wednesday 25 December 2019

हैप्पी क्रिसमस

"हरिया, ये क्रिसमस क्या होता है?  सोनल दीदी कह रही थी रात को सांता आता है और उनके लिये गिफ़्ट छोड़ जाता है।" छुटकी अपनी मड़ैया के बाहर एक टूटी फूटी गुड़िया से खेल रही थी। उसका बड़ा भाई बगल में बैठा गुड़ रोटी खा रहा था।

"शायद बड़े लोगों का कोई त्योहार होता है। तभी तो आज जब अम्मा के साथ हम गये थे तो देखा था कि बड़ी मालकिन केक मंगा रही थी।" हरिया ने उत्तर दिया।"

" हाँ हमने भी देखा है सोनल दीदी अपने लिये लाल और सफेद रंग की टोपी ले कर आई थीं।" छुटकी ने देखा था सोनल दीदी लाल-सफेद टोपी लगाकर शीशे के सामने ख़ुद को निहार रहीं थीं।

" और जानती हो एक क्रिसमस का पेड़ भी होता है। उसको भी सजाया जाता है। हमने देखा था पिछले साल भी सोनल दीदी के कमरे में।" हरिया ने कहा। 

"हमारे घर सांता नहीं आएगा? " छुटकी ने मायूस होते हुये पूछा। 

"पगली, सांता उन बच्चों के पास आता है जो मम्मी पापा से अलग अकेले सोते हैं। उनकी तकिया के नीचे सांता गिफ़्ट रख जाता है। देखा नही है कि सोनल दीदी बेचारी अलग कमरे में सोती हैं न साल भर। बस उसी का इनाम देने आता है सांता।" हरिया ने अपनी बुद्धि लगाई और ये निष्कर्ष निकाला।

" अच्छा.....तब तो ठीक है। हमको तो अम्मा से चिपक कर सोना ही अच्छा लगता है। हमको नहीं चाहिये कोई सांता वांता का गिफ़्ट।" छुटकी ने संतुष्ट होते हुये कहा और फिर से अपनी गुड़िया के साथ खेल में लग गयी। 

©® टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 


Tuesday 24 December 2019

खौलता रहेगा तुम्हारा प्रेम


तप्त लावा ठंडा हो जाएगा
धुआं सोख लेगा आसमान
गरम हवा चल देगी विदेश
सुप्त हो जाएंगे ज्वालामुखी
खौलता रहेगा तुम्हारा प्रेम ! 

Twinkle Tomar Singh 

Monday 23 December 2019

वैभव

सब दोष ढक जाते है कोठी वालों के
वैभव का पर्दा यूँ ही मोटा नहीं होता

Twinkle Tomar Singh~

Friday 20 December 2019

नदी के अश्रु




                              नदी के अश्रु

एक सुबह मैंने देखा था उसे, मुझमें अपनी छाया ढूँढते हुये। वो आँखों पर काला चश्मा लगाये, सफेद शर्ट, काली पैंट पहने हुये झुककर मुझमें अपनी झलक देखने का पूरा प्रयास कर रहा था। शायद मैंने उसे निराश कर दिया। उसकी ये छोटी सी इच्छा पूरी नहीं हुई थी तभी तो झुँझलाहट भरे स्वर में उसने कहा था, "होली शिट, हाऊ डार्क द वाटर इज़!"  फिर तुरन्त वह अपने साथ आये कुछ लोगों की ओर मुड़ा और उनसे बड़े आदेशात्मक लहज़े में कहा था," इसकी सफाई का प्रोजेक्ट जल्दी ही शुरू करना होगा। पानी बिल्कुल सड़ रहा है। ये नदी नही है ये तो नाला है नाला।"

सच कहूँ तो मुझे उससे पहली ही झलक में प्रेम हो गया था। कितने दिनों से मैं प्रतीक्षारत थी। कितने ही मानवों को आते जाते देखती थी। पर किसी ने मेरी सुध न ली थी। आज किसी ने तो मेरे बारे में सोचा। मैं सिकुड़ रही थी, मैं मर रही थी। वो आया था मुझे जीवनदान देने के लिये। मेरे तट पर जब वो खड़ा था तो उसकी आँखों में मैंने एक अजीब सी चमक देखी थी। किसी से प्रेम होने के लिये इससे अच्छी वज़ह और क्या होती?

धीरे धीरे उसके प्रयासों से मैं सँवरने लगी थी। उसे भी तो मुझसे प्रेम हो गया था। वो घंटों मुझे निहारता रहता था। वो आता था, अपने साथ मजदूरों की एक बड़ी फौज लेकर। कोई मेरे अंदर फैली बेकार सी लताओं के जाल को हटाता, कोई मेरे ऊपर लदी जलकुंभी की बेड़ियों को काट डालता, तो कोई मेरे जल के ऊपर तैर रही प्लास्टिक की थैलियों को हटाता। मैं अपने निखरते सौंदर्य पर स्वयँ ही मोहित होती जा रही थी।

एक दिन उसने कहा कि ऐसे काम नहीं चलेगा। इस सीवर के जल को यहाँ गिराना बन्द करना होगा। मैं मन ही मन प्रफुल्लित हो उठी थी। उस बदबूदार,बजबजाते, मुझे पल पल मलिन और बदसूरत बनाते नरक से बदतर नाले से मुक्ति मिल जाएगी। काश उसने उस पल मुझे ध्यान से देखा होता....मैं नदी थी ही नहीं...मैं तो प्यार का सागर बनती जा रही थी उसके लिये।

मैंने सोच लिया था एक दिन अपने प्रेम को उस पर अवश्य उजागर कर दूँगी। प्रेम प्रदर्शन से पहले उसका पसीना पोंछने को हवाओं से थोड़ी शीतलता माँग लाऊंगी। उसे जलती धूप से बचाने के लिये बादलों से गिड़गिड़ाकर छाया माँग लाऊँगी। फिर जब कार्य समाप्त होने के बाद वो मेरे जल में पैर डालकर बैठ होगा, उसकी काया की सारी थकन अपने शीतल जल से खींच लूँगी। मेरा थिरकता जल किसी नर्तकी की भाँति उसे मोहित कर लेगा। मुझमें नाव डालकर जब वो सैर करेगा तो मेरी हौले हौले छिटकती बूँदे उसका आलिंगन कर लेंगीं।

फिर एक दिन वो आया। सिगरेट सुलगाते हुये उसने मेरी ओर ध्यान से देखा। मेरा स्वच्छ जल उसे एक तृप्ति दे रहा था। पर उसके चेहरे पर बड़ी अजीब सी मुस्कान थी, उसकी आँखों में फिर से एक अलग सी चमक थी। ये मुस्कान ये चमक मृदुल तो बिल्कुल नहीं थी। उसे देखकर पहली बार मुझे कुछ भय सा लगा। सिगरेट का आख़िरी कश लेकर उसने बड़ी लापरवाही से सिगरेट का बचा हिस्सा मेरे जल में उछाल कर फेंक दिया। पता नहीं क्यों ऐसा लगा एक अंगारा सा चुभा हो। कोई अपनी प्रेयसी के साथ ऐसा करता है भला?

"तुमने मुझे बहुत कुछ दिया, डार्लिंग। नदी बचाओ योजना  के लिये मेरे एन जी ओ का प्रोजेक्ट एप्रूव्ड हो गया है। करोड़ों रुपये मिले हैं करोड़ों। तुम तो मेरे लिये स्वर्ण सरिता हो। आई लव यू।" दोनों हथेलियों से उसने मेरी ओर एक हवाई चुम्बन उछाल दिया, फिर मुड़ कर चल दिया। मैं उसे जाते हुये देखती रही। फिर वो लौटकर कभी वापस नहीं आया।

मैं फिर से दम घोंटने वाली लताओं से घिरी हुई हूँ, जलकुंभी नित्य मेरा उपहास करती है, सीवर दैत्य की तरह मुझ पर अत्याचार करता है, प्लास्टिक की थैलियां मेरी सिसिकियों को घोंट देती हैं।  कैसे बताऊँ मेरे हृदय में कितनी पीड़ा है....नदी के अश्रु दिखते नहीं न !

©® टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ।


Tuesday 10 December 2019

ठौर

अपने तआरुफ़ में तमाम ठौर का पता लिखते हो
पैरों में तिल है या फ़ितरत नहीं टिककर रहने की

©® Twinkle Tomar Singh 

Sunday 1 December 2019

हरियाली लग्ज़री है

"अभिमन्यु जल्दी से ये सारी गोलियाँ निगल लो।"  मम्मी ने नाश्ते की मेज पर अभिमन्यु को बुलाते हुये कहा। 

"मम्मी आपको अच्छी तरह पता है, मुझे खाने में ये विटामिन्स और मिनरल्स की गोलियाँ अच्छी नहीं लगती।" अभिमन्यु ने मुँह बनाते हुये कहा। 

"फिर पोषण कैसे मिलेगा बेटा? हम इतने अमीर नहीं है रोज़ रोज़ फल और सब्जियां खरीद सकें और हमारा कोई गाँव और खेत भी नहीं है जहाँ से अनाज और सब्जियाँ आ जाया करे। बेटा तुम्हें इनसे ही पेट भरना होगा।" मम्मी ने प्यार से समझाते हुये कहा। 

मन मारकर कटोरी भर गोलियाँ अभिमन्यु एक एक कर के चबाने लगा। "मम्मी, पता है ऋषभ के घर कल पुलिस आयी थी।" अभिमन्यु ने बड़े चाव से एक रहस्य का खुलासा करते हुये बताया। 

"क्यों? क्या हुआ था?" मम्मी ने पूछा

"उन्होंने अपने घर में आँगन में चोरी से स्विमिंग पूल बना रखा था। और जानती हो उनका स्विमिंग पूल लबालब पानी से भरा हुआ था।" अभिमन्यु को तो रोज़ नहाने के लिये भी पानी नहीं मिलता था। और ऋषभ रोज़ स्विमिंग पूल में डुबकी लगा कर आता था। इसी से अभिमन्यु को ऋषभ से थोड़ी थोड़ी जलन होती थी। उसका भी मन होता था पानी से भरे स्विमिंग पूल में वो तैर कर देखे। 

"हे राम। यही तो अंधकार है। यहाँ लोगों को पीने के लिये पानी नसीब नहीं है। और लोग पैसे के बल पर पानी खरीद कर स्विमिंग पूल बना कर बैठे हैं। अच्छा हुआ जो उनके घर पुलिस आयी तो। ऐसे लोगों को सबक मिलना ही चाहिये।" अभिमन्यु की मम्मी ने खीझते हुये कहा। पिछले हफ्ते से वो नहायी नहीं थी। जो एक छोटा टैंक पानी का खरीदा गया था उससे उसने अभिमन्यु को नहला दिया और बाकी बचे पानी से अभिमन्यु के पापा ने नहा लिया , शेष बाथरूम में इधर उधर के काम में खर्च हो गया था। 

"मम्मी, अबकी बार टैंक आयेगा तो आप नहा लेना। मैं एडजस्ट कर लूँगा।" अभिमन्यु शायद अपनी मम्मी के शब्दों से छलक रही व्यथा और उत्तेजना को पहचान गया था। 

माँ की छाती में अपने बेटे के लिये ममता का सागर उमड़ आया। " हाँ रे। चलो जल्दी से बैग संभालो अपना। स्कूल बस आ गयी है और सुनो आज तो स्पोर्ट्स डे है न, उसमें जीत कर आना । ऑल द बेस्ट।" मम्मी ने प्यार से चूमते हुये हुये अभिमन्यु को ऑक्सीजन मॉस्क पहना दिया। " और ये ऑक्सिजन मॉस्क उतारना बिल्कुल भी नहीं। खाँसी हो जाती है तुमको, समझे।" 

"ठीक है। पर मुझे उलझन होती है तभी उतारता हूँ।" फिर बॉय मम्मी' कहते हुये अभिमन्यु स्कूल बस की ओर भाग गया। 

आज अभिमन्यु के स्कूल में स्पोर्ट्स डे था। उसने दौड़ प्रतियोगिता में अपना नाम लिखाया था। स्कूल में दौड़ प्रतियोगिता शुरू हो चुकी थी। टीचर ने सभी बच्चों को ऑक्सिजन मॉस्क पहने रहने की हिदायत दी। दौड़ने से साँस तेज तेज चलने लगती थी। वायू इतनी प्रदूषित थी कि बिना मॉस्क के अगर बच्चे दौड़े तो फौरन बीमार पड़ सकते थे। इंस्ट्रक्टर ने काउंट डाउन शुरू किया- वन, टू, थ्री..गो..।


 दौड़ सिर्फ़ 100 मीटर की थी। पहले के जमाने में सुना था कि दौड़ 400 मीटर, 800 मीटर की भी हुआ करती थी। अब सौ मीटर में ही बच्चे हाँफने लगते थे। दौड़ में नाम लिखाने से पहले सबका कार्डिएक चेकअप होता था। साँस और फेफड़ों की ताकत चेक की जाती थी। तब कहीं जाकर उनको दौड़ में भाग लेने दिया जाता था। पूरे स्कूल में मात्र दस बच्चे चुने गए थे। बाकी सभी प्रतियोगिताएं या तो मानसिक होती थीं जैसे तरह तरह के डिजिटल गेम या फिर इंडोर गेम्स जैसे कैरम,शतरंज आदि। 

अभिमन्यु के लिये ये गर्व की बात थी उसे दौड़ में चुन लिया गया था। सभी बच्चे काउंट डाउन समाप्त होते ही दौड़ने लगे। सभी अपनी जी जान लगाए हुये थे। तभी अचानक दौड़ते दौड़ते अभिमन्यु का ऑक्सिजन मॉस्क गिर गया.....और दूर छिटक गया....

जितनी देर में वो समझ पाता उतनी देर में विषैली हवा उसकी तेज चलती सासों से फेफड़ों में घुस गई। अभिमन्यु की गति धीमी हो गयी। वो लड़खड़ाने लगा....

उसके ध्यान में प्रथम स्थान का पुरस्कार कौंध गया। कुछ भी हो वो हार नहीं सकता। उसे कबसे इसकी चाह थी...नही वो दौड़ेगा पूरी ताकत से दौड़ेगा. उसने दुगुनी शक्ति जुटाई...उसे वो प्रथम पुरस्कार अपनी मम्मी के लिये जीतना ही है......


एक पागलपन का दौरा सा उसके ऊपर सवार हो गया था। वो   हाँफता गया... दौड़ता गया....दौड़ता गया...आख़िरकार  विजय पट्टी ने उसकी छाती का आलिंगन कर ही लिया.....पर इसके बाद ही उसकी चेतना लुप्त हो गयी और वो बेहोश होकर गिर पड़ा। 

सभी अध्यापक, बच्चे, स्टॉफ वाले, डॉक्टर उसकी ओर दौड़े। उसकी नाक पर फौरन ऑक्सीजन मॉस्क लगाया गया, उसके मुँह पर पानी के छींटे डाले गए। दस मिनट बाद उसकी चेतना लौटी। जैसे ही उसने आँखें खोली, सभी में हर्ष की लहर दौड़ गयी। बच्चों ने उसे कंधे पर उठा लिया। 'विनर विनर' के उदघोष से पूरा मैदान और दर्शक दीर्घा गूँजने लगी। 

फिर वो घड़ी आयी जब प्रथम , द्वितीय, व तृतीय स्थान पर रहे विजेता क्रमवार ऊँचाई पर खड़े किये गये। तृतीय स्थान पर जो विजेता था उसे चॉकलेट का एक डिब्बा और मेडल दिया गया। द्वितीय स्थान पर रहे विजेता को चॉकलेट, मेडल के साथ एक बड़ा सा नकली पुष्प गुच्छ भी दिया गया। पुष्प गुच्छ को उसने हाथ में उठाकर हवा में लहराकर सबका अभिनन्दन स्वीकार किया। 

अपने पीले पड़े चेहरे पर सन्तोष और हर्ष के भाव सजाए अभिमन्यु प्रथम स्थान पर खड़ा था। जिस पल की उसे प्रतीक्षा थी वो आ गया था। उसे गले में स्वर्ण मेडल पहनाया गया, चॉकलेट का डिब्बा हाथ में थमाया गया। बगल में एक व्यक्ति ट्रे में प्रथम पुरस्कार की सबसे महँगी और विशिष्ट थाती लेकर खड़ा था। प्रिंसिपल ने ट्रे से संभाल कर एक फूल खिला हुआ पौधा एक छोटे गमले समेत उठाया और अभिमन्यु के हाथ में सौंप दिया। सभी बच्चे आनंद से तालियां बजाने लगे। 

अभिमन्यु की आँखे आँसुओं से छलछला उठी। आज वो ये पौधा मम्मी को देगा। इसका एक फूल तोड़कर मम्मी के बालों में लगा देगा। कितनी सुन्दर लगेंगीं न मम्मी! आज से वो भी उन अमीर लोगों में से एक हो जाएगा जिनके घरों में पौधे लगे होते है। 

( भविष्य का एक चित्र जब हरियाली लग्ज़री हो जाएगी।)

©® टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 


द्वार

1. नौ द्वारों के मध्य  प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...