Sunday 21 February 2021

शोक की टीका

विषाद के 
किसी एकाकी पल में
निकला एक शब्द
पूरी व्यथा को समेटे 
एक उपन्यास होता है..
'आह'...के करोङों संस्करण हैं
शोक... टीका एक भी नहीं !!

~ टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

Sunday 7 February 2021

रोज़ डे

अपनी माँ को बचपन से कहते सुना था ,"मुझे गुलाब के फूल बहुत पसंद हैं।" 

उन्हें वो फूल इतने पसंद थे उन्होंने क्यारी में गुलाब की कई कलमों को रोप दिया था। घर के कामकाज से मुक्ति पाकर क्यारियों की गुड़ाई करना, उनमें खाद डालना, निराई करना उनका प्रिय कार्य था। 

छोटी आयू में गुलाब की काँटों भरी कलम से नन्ही नन्ही कोपलों को निकलते देखना बहुत ही विस्मय से भर देता था। हमारे लिये वो उंगलियों में चुभ जाने वाली कलम ठूँठ या डंडी से बढ़कर कुछ नहीं होती थी। और जिस दिन उसमें कली आ गयी, हम बच्चों के हर्ष की सीमा नहीं रही। हम दिन प्रतिदिन फूल के खिलने की प्रतीक्षा करते थे। 

फिर एक सुबह गुलाब का फूल पूरा खिला मिला। माँ सुबह-सुबह रसोई के कार्यों में इतनी व्यस्त होतीं थीं कि उन्हें रसोई के बाहर झाँकने का एक पल भी नहीं मिलता था। 

हम दौड़ते हुये माँ के पास आये , बड़े उत्साह से माँ को फूल के खिलने की सूचना दी, उनकी बाँह को पकड़ कर खींचने लगे ," चलो माँ देखो.. गुलाब खिल गया..."

पर बदले में माँ ने झिड़क दिया..."अभी बहुत काम है...तुम लोग जल्दी से स्कूल के लिए तैयार हो .."

बहुत बुरा लगा था...जिस फूल की माँ भी इतने दिनों से प्रतीक्षा कर रही थीं...आज खिला तो देखने भी नहीं गयीं। 

जब स्कूल से लौट कर हम आये तो देखा माँ क्यारी के पास ही खड़ी थीं....गुलाब के फूल को अपने हाथ से कोमलता से थामे हुये मुस्कुरा कर देख रहीं थीं...अचानक उनका दूसरा हाथ अपने जूड़े पर गया...

जाने उनके मन में क्या आया..शायद उन्होंने फूल को तोड़ने का सोचा था....फिर रहने दिया...

मैंने उन पलों में माँ को बहुत ध्यान से देखा...उस समय लगा जैसे वो किसी जादूगरनी में बदल गयीं हैं..जिसे ठूँठ से फूल उगाने का हुनर आता है...अपने लिये..हम सबके लिये...

~टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

#roseday







Saturday 6 February 2021

अकर्मण्य

कुछ हाथ 
अकर्मण्य भटकते रहते है
लकीरों की बंद वीथिकाओं में

कुछ अवसरों के 
भाग्य में लिखा होता है
द्वार खटखटा कर प्रतीक्षा करते रहना

~टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

द्वार

1. नौ द्वारों के मध्य  प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...