Wednesday 27 November 2019

पटाखा सास

"शालू इधर आना। जल्दी से।" जिठानी ने अपनी देवरानी को आवाज़ दी और अपने कमरे में चली गयीं। शालू दौड़ते हुये आयी उसे अपनी जिठानी के आवाज़ देने के अंदाज़ से लग गया था जरूर कोई ख़ास और चटपटी बात है। शालू जब जिठानी के कमरे में पहुँची तो देखा वो एक बड़ा सा एल्बम लेकर बैठी थीं। पास जाकर देखा तो वो एक पुराने जमाने का एल्बम था जिसमें सब ब्लैक एंड व्हाइट फोटोज लगीं हुई थीं। 

"ये क्या है भाभी? कहाँ से मिला आपको?" शालू ने बेड पर बैठते हुये पूछा। 

"श श श श....." जिठानी ने उंगली अपने होंठों पर रखकर उसे चुप रहने का इशारा किया। " मम्मी जी के कमरे से लाई हूँ चुरा कर। मम्मी जी पड़ोस में गयीं है बत्तो बुआ से बतलाने।" 

"अरे भाभी इस एल्बम में ऐसा क्या ख़ास है?" शालू ने पूछा। 

"ख़ास ये है इसमें की इसमें मम्मी की यंग ऐज की फोटोज़ है। ये देखो मम्मीजी इसमें एकदम पुराने जमाने की हीरोइन लग रही है न?" जिठानी ने आँखे चमकाते हुये कहा। 

" अरे लाओ तब तो ज़रा ध्यान से देखूँ मैं। हाय दैय्या... ये तो एकदम पूरब और पश्चिम वाली सायरा बानो लग रहीं हैं। स्लीवलेस स्टाइलिश मैक्सी। कसी हुई ड्रेस। " शालू की तो आँखे ही बाहर आ गईं थीं। 

"अरे पेज़ पलट, आगे चल। देख और भी है।" 

" उई माँ... इत्ती छोटी स्कर्ट? लगता है किसी स्कूल के टूर पर गयीं थीं।" 

" हाँ वही मुझे भी लग रहा है।".

" भाभी...फिर हम दोनों पर इतने बंधन क्यों? साड़ी पहनो साड़ी पहनो। " शालू में मुँह बिचकाते हुये कहा। 

" मैंने तो सोच लिया है अब जो मन में आएगा वो पहनूँगी। अपने जमाने में तो पटाखा बन कर रहती थीं और हमे सीली हुई फुलझड़ी बना कर रखना चाहती हैं। आज से साड़ी वाड़ी बन्द।" जेठानी ने तमतमाते हुये कहा। 

"ठीक है दीदी। मैं भी यही करूँगी।" 

दूसरे दिन सुबह से दोनों देवरानी जेठानी तैयार होकर अपने कमरे से बाहर निकलीं। जेठानी ने एक कसा कसा सा गाउन पहन रखा था। और देवरानी ने बहुत टाइट पैंट और छोटा सा स्लीवलेस टॉप पहन रखा था। सास ने देखा तो त्योरियां चढ़ा ली। " क्यों रे बहूओं ये क्या अधर्म मचा रखा है। लाज मर गयी है क्या तुम दोनों की आंखों में? ससुर है घर में ,जेठ हैं और तुम लोग ये क्या छम्मकछल्लो बन कर निकली हो?" 

" मम्मी जी अब हम लोग यही पहनेगीं। साड़ी वाड़ी ओल्ड फैशन हो गया है।" दोनों इतराते हुये बोली। 

"अरे कंजड़ियों ...जाओ फौरन कपड़े बदल कर आओ। वरना अभी यहीं इन कपड़ों में आग लगा दूँगी।" 

"मम्मी जी रहने दीजिये। हमको आपकी सारी पोल पट्टी पता चल गई है। आपने जमाने में तो आप सायरा बानू बन कर रहती थी। और हमारे जमाने में भी आप हमको नूतन बना कर रखना चाहती हैं? हमने आपका एल्बम देख लिया है। इसलिए अब आपको अपनी इज्जत प्यारी है तो आगे कुछ मत कहिएगा।" शालू थोड़ा तेज थी सो उसने कहा। 

" अरी...करमजलियों.मर जाओ तुम दोनों..मेरे पीछे मेरी चीज़ें खंगालती हो....। और जो फ़ोटो तुम लोगों ने देखी, वो मेरी नहीं है मेरी जुड़वाँ बहन की थी। उसे एक मिशनरी की नन ने गोद ले लिया था। पिता जी की आर्थिक स्थिति अच्छी न थी। तो उन्होंने सोचा अच्छा रहेगा ऐसे उसकी पढ़ाई लिखाई हो जाएगी। एक दिन वो स्कूल टूर पर किसी नदी की सैर को गयी थी।  छोटी सी स्कर्ट और ऊँची हील पहन कर। वहीं पैर फिसला और बह गई। उसकी लाश तक न मिली किसी को। " 

जुड़वाँ बहन वाली कहानी सुनकर दोनों बहुओं का मुँह उतर गया। दोनों हारे हुये से कदम रखते अपने कमरे में वापस कपड़े बदलने चली गईं।

इधर सास भी अपने कमरे में पहुँची। ससुर ने पूछा ," क्या हुया भागवान सुबह सुबह इतनी तेज आवाज कौन सी सत्यनारायण की कथा बाँच रही थी?" 

" अरे कुछ नहीं...ये दोनों बहुऐं न...हाथ से निकली जा रहीं थीं। मेरी शादी से पहले की कुछ फ़ोटो इनके हाथ लग गयी थी। अब कहाँ मेरा मायका बड़ा शहर में था तो सब चल जाता था। कहाँ ये छोटा सा पहाड़ का कस्बा। चली थीं मेरी बराबरी करने। नाक कटा कर रख देतीं रिश्तेदारी में दोनों। बस कुछ नहीं इनके पर कतर के आ रहीं हूँ।" सास ने मुँह दबा कर हँसते हुये कहा। 

( सिर्फ़ हास्य के लिये लिखी गयी एक कहानी। ) 

©® टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

Monday 25 November 2019

एंटीबॉयटिक

जंग और दीमक 
दिमाग़ में भी लगते हैं

छूटा हुआ साथ
छूटी हुई बात
अधरों पर अब भी थमा हुया है जो
कोई अनकहा सा उपालम्भ
ग्रसने लगते हैं आत्मा को

रचना होता है
एक काव्य का संसार
इस मरण से बचने के लिये
दुःख को सृजन का 
आवरण देने के लिये

कविता.....
दुःखद अनुभूतियों से खोखले हुये,
रुग्ण हुये हृदय का एंटीबॉयटिक है !


©® टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

Thursday 14 November 2019

सीधे रास्तों की टेढ़ी चाल

पहाड़ से सीधे लम्बवत गिरती नदी
बनाने वाले बच्चे नही जानते
नाला बनकर सूख जाएगी 
नदी ये एक दिन

छोटी इ,बड़ी ई पढ़ने वाले
बच्चे बिल्कुल नहीं समझते
छोटा-बड़ा बस दो भागों में
बँट जायेगा संसार

डेका, हेक्टा, किलो सीखते 
बच्चे कभी नहीं जान पाते
टन भर बोझ काबिज़ हो जाएगा
उन पर एक दिन


गोल दुनिया की भूलभुलैया में
सीधे रास्तों पे टेढ़ी चाल चलाकर
कोई बचपन पका कर प्रौढ़ 
बना जाता है एक दिन
जैसे खरगोश को पहुँचा देते हैं
बच्चे गाजर तक ! 

टि्वंकल तोमर सिंह


Tuesday 12 November 2019

आदि अंत

जानती हो
सफल जीवन
सुनियोजित होता है
जीवन में सदैव
एक प्लान 'ब'
रखना चाहिये 
विकल्प में
उसके एक हाथ में
कोई प्रतियोगी पुस्तक थी
दूसरे हाथ में 
मेरे हाथ की
नर्माहट थी


मैंने अपना 
दूसरा हाथ भी
उसके हाथ पर 
रखते हुये कहा
प्रेम सुनामी की तरह है
सारे विकल्प 
धरे रह जाते है
मेरे लिये 
प्रेम में प्लान 'अ' ही
आदि है 
और अंत भी ! 

~टि्वंकल तोमर सिंह, लखनऊ।

Friday 8 November 2019

लिहाज़ का रिश्ता

एक चॉक फँसी थी
उसकी उंगलियों के बीच

एक सिगरेट फँसी थी
उसकी उंगलियों के बीच

चॉक फँसी उँगलियों ने
सिगरेट फँसी उंगलियों की ओर
एक इशारा किया

सिगरेट फँसी उँगलियों ने
तत्परता से
नीचे गिरा दी सिगरेट
उसने पैरों से मसल दी

चॉक फँसी उंगलियों को
सुकून था
वो मुक़ाम हासिल कर लेने का
कि कम से कम
एक सिगरेट का जहर
घटा सके
किसी के जीवन से

आंखों से आंखों तक
तय होता है
लिहाज़ का रिश्ता
कोमल सा !

~ Twinkle Tomar Singh



Sunday 3 November 2019

तुम बेवज़ह लड़ते हो

"मैंने एक वास्तु की क़िताब में पढ़ा है। पति पत्नी के बीच में झगड़े क्यों होते है?" ड्रेसिंग टेबल पर बैठी अनामिका ने कहा जो कि आईने में ख़ुद को देखकर अपने बाल सवाँर रही थी। 

"क्या पढा है, क्यों होते हैं झगड़े ?" अनामिका के पति ने बिस्तर पर लेटे लेते कहा जो कि इंडिया टुडे पढ़ने में व्यस्त थे, पर बीवी ने जो कहा उस पर प्रतिक्रिया देना बहुत ज़रूरी था, अन्यथा अभी यहीं, इसी वक़्त, इसी बात पर झगड़ा शुरू हो जाता कि तुम मेरी बात ध्यान से नहीं सुनते हो, फिर वास्तु चाहे जितना ठीक होता या बिगड़ा होता उससे कोई मतलब नहीं। 

अनामिका ने फौरन कंघी रख दी, पति की तरफ मुँह मोड़ लिया, फिर बोली, "हमारे बीच में झगड़ों का कारण है हमारा बिस्तर।" 

"बिस्तर ?? वो कैसे भला।" पति ने इच्छा न होते हुये भी जानने की इच्छा का पूरा पूरा नाटक किया। पति को पता था अनामिका ऐसे ही फ़िज़ूल के प्रैक्टिकल करती रहती है। 

" अरे हमारा डबल बेड दो सिंगल मैट्रेस से मिलकर बना है न। बस यही हमारे बीच में दरार डाल रहा है। और वो जो हम अलग अलग कम्बल या चादर ले कर सोते हैं न ...वो भी एक कारण है। पति पत्नी को एक ही मैट्रेस पर सोना चाहिए और एक ही रजाई या कम्बल या चादर ओढ़नी चाहिए। ऐसा लिखा है श्री श्री पद्मनाभ जी वास्तु विशेषज्ञ जी ने अपनी किताब में। " अनामिका ने पति को समझाते हुये कहा। 

"हूँ....समझ गया।" पति ने हामी भर दी। 

"समझ क्या गये ...चलो कल ही नया मैट्रेस लेकर आते है, जो पूरे पलंग पर बिछ सके।" अनामिका ने जोर देते हुये कहा। 

"ठीक है बाबा।" पति ने पीछा छुड़ाते हुये कहा। 

दूसरे दिन अनामिका और उसका पति बाज़ार से लाकर एक सिंगल मैट्रेस डाल देते हैं और एक डबल बेड के साइज का एक कम्बल भी ले आते हैं।

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अब जन्म लेती है लड़ाई की एक नयी वज़ह...

"तुम अपने आधे हिस्से तक सीमित क्यों नहीं रहते हो? आधे से ज़्यादा बिस्तर पर तुम्हारा ही कब्ज़ा रहता है। " दो दिन बाद ही अनामिका ने अपने पति से शिकायत की। 

"अरे पहले दो आधे आधे मैट्रेस थे तो एक सीमा रेखा रहती थी। अब पता ही नहीं चलता कहाँ मेरा हिस्सा ख़त्म हुया, तो मैं क्या करूँ? वैसे ये आधा कहाँ ख़त्म होता है बताओगी ज़रा?" पति ने पलट कर पूछा। 

"इतने भी भोले नहीं हो तुम। और कम्बल भी तुम पूरा खींच लेते हो मैं खुले में ही सोती रहती हूँ। और तो और दबा लेते हो कस कर। खींचने से भी नहीं देते। पूरी रात मुझे जाड़ा लगता रहता है।" अनामिका ने मुँह बनाते हुये कहा। 

"अरे वाह यही बात तो मैं भी कह सकता हूँ। मुबारक हो मोहतरमा। हमारे विचार आपस में कितना मिलते हैं। मुझे भी ऐसा ही लगता है कि मुझे बस ज़रा सा कम्बल मिलता है और आधे से ज़्यादा बेड पर तुम्हारा कब्ज़ा रहता है।" पति ने गुस्से से मुँह दूसरी तरफ फेर लिया और टीवी ऑन कर लिया। 

"तुम्हारा मतलब है मैं झूठ बोल रही हूँ? " अनामिका ने अपनी उपेक्षा होते हुये देखा तो रूआंसी हो आयी। 

"नही.. पर मैं भी झूठ नहीं बोल रहा.." पति फिर भी अपनी बात पर अड़े रहे।

"फिर ऐसे कैसे चल पायेगा बोलो? तुम बेवज़ह लड़ते हो। बात समझना ही नहीं चाहते।" अनामिका की आंखों में मोटे मोटे आँसू उभर आये थे ।   

"अब ये तो तुम बताओ, कैसे चलेगा?..तुम्हें ही वास्तु की पड़ी थी..." अनामिका के आँसुओं को इग्नोर करते हुये पति ने कहा। 

"तुम्हें तो कुछ परवाह ही नहीं, तुम्हें मेरी हर बात बुरी लगती है, " अनामिका के आँसू बह निकले। 

दूसरे कमरे में बैठी अनामिका की सास ने एक बार फिर से माथा पटक लिया.."फिर शुरू हो गए दोनों.."ऐसा कहकर उन्होंने अपने कमरे के टीवी का वॉल्यूम बढ़ा लिया। 

और ये नोंक झोंक चलती रही।....

इस कहानी से बस इतनी सी शिक्षा मिलती है कि पति पत्नी के बीच होने वाले ये छोटे मोटे झगड़े मिट जायें, दुनिया में ऐसा कोई भी वास्तु टिप्स नहीं। 

©® टि्वंकल तोमर सिंह, लखनऊ।

द्वार

1. नौ द्वारों के मध्य  प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...