Friday 29 January 2021

आस के पंछी

आस के कुछ पंछी
जीवन भर निराश 
करते रहते हैं..
पिंजरे में पंख 
फड़फड़ाते रहने से
आकाश नहीं 
नापा जा सकता !

टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

Saturday 16 January 2021

फसल

भीड़ में सबको पीछे छोड़ते हुये मुझे सबसे आगे जगह मिली है। मुझे कोई नहीं जानता। न मेरा नाम न मेरी शक्ल। फिर भी सबसे आगे वी आई पी के सोफे पर मुझे बिठाया गया है। 

मैंने अपनी साड़ी को ठीक किया, शॉल को व्यवस्थित किया। थोड़ा संभल कर बैठ गयी। मैं जानती थी भले ही मुझे कोई नहीं जानता पर अभी कुछ ही क्षणों में मेरा नाम सब जान जायेंगें। पूरा हॉल खचाखच भरा हुआ है। मेरी धड़कनें भी तेज हो गयीं हैं....

"और आइये स्वागत है करते हैं आज की हमारी चीफ़ गेस्ट मिसेज़ वैशाली ठाकुर का। इन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से हिन्दी भाषा में पोस्ट ग्रेजुएट किया, और तब से वहीं अध्ययन अध्यापन के कार्य में संलग्न रहीं। इससे भी बढ़कर बात से है कि ये हम सबकी लोकगीत गायिका मौनी रॉय की गार्डियन हैं, जिनका गीत सुनने आप सब लोग आये हैं... मिसेज़ वैशाली ठाकुर...." उद् घोषक ने मंच से घोषणा की। 

मैं कांपते पैरों से मंच की ओर बढ़ी। मौनी भी मुस्कुराती हुई सजी- धजी पारंपरिक वेशभूषा में मंच पर आ गयी थी। उसने मुझे फूलों की माला पहनाई, फिर मेरी आरती उतारी और पैर छूकर आशीर्वाद लिया- "आशीर्वाद दीजिये माँ!" मैंने उसको ढेरों आशीर्वाद दिये और वापस आकर अपने सोफे पर बैठ गयी। 

मौनी बंगाली लड़की थी..बांग्लादेश से आयी थी कि बंगाल से उसे खुद पता नहीं था। पर उसकी माँ ने उसे मेरे यहाँ काम पर रखवा दिया था। मौनी का जैसा नाम था वैसा ही स्वभाव था...बिल्कुल मौन रहना उसकी आदत थी। कई कई बार पूछने पर ही संक्षिप्त सा कोई उत्तर उसके मुँह से निकलता था। चुपचाप झाड़ पोंछ करते रहना उसकी आदत थी। 

मेरा एकलौता बेटा था आदित्य। बचपन से बहुत उद्दण्ड, शरारती, गुस्सैल और हठी। पता नहीं मेरी ही परवरिश में कोई कमी थी या ठाकुरों के वंश बेल का एक बीज होने के कारण ये अवगुण उसके अंदर आ गये थे। उसकी उदण्डता देखकर, उसको हाथ से निकलता देखकर मुझे एक विचार आया। क्यों न इसकी ऊर्जा को किसी सकारात्मक दिशा में मोड़ दिया जाये?

मेरे घर में मेरे ससुर का एक पियानो था, जो उन्हें किसी अंग्रेज ऑफिसर ने उपहार में दिया था। मैंने एक संगीत अध्यापक को बुला कर आदित्य को संगीत की क्लास दिलवाना शुरू कर दी। आदित्य मेरे दबाव में आकर संगीत सीखने लगा। उसका रुझान संगीत में बिल्कुल भी न था। संगीत मास्टर की कड़ी मेहनत के बाद भी वो एक धुन, एक गीत सीखने में कई हफ्ते लगा देता था। 

मैंने अक्सर देखा था कि जब आदित्य की संगीत कक्षा चलती थी तो मौनी वहीं आकर झाड़ पोंछ करने लगती थी, और ध्यान से सारे लेसन सुनती रहती थी। अब वो काम करते करते गुनगुनाने भी लगी थी। एक दिन अकेले में वो एक कठिन धुन एकदम सही और मधुर स्वर में गुनगुना रही थी। उसे सुनकर मेरा रोम रोम जलने लगा। मेरा बेटा इतने पैसे खर्च करके भी संगीत सीख नहीं पा रहा और ये नौकरानी...मुफ्त में सीख ले रही है। मुझे मौनी के गुनगुनाने तक से वितृष्णा हो गयी। जबकि मैं जानती थी बीज को पल्लवित होने के एक उपजाऊ भूमि ही चाहिये। इसमें न बीज का कसूर है, न भूमि का। आदित्य ऊसर था....

आदित्य मौनी की ओर कुछ ज़्यादा ध्यान देने लगा था। मौनी की बढ़ती उम्र उसे एक आकर्षक किशोरी में परिवर्तित कर रही थी। आदित्य धीरे धीरे उसकी तरफ न केवल आकर्षित हो गया वरन मेरी अनुपस्थिति में उसके साथ शरारत करने लगा। अकेले में उसे मोलेस्ट करना उसकी आदत बन गयी। ये बात मुझे बहुत बाद में पता चली। यदि उसी वक़्त पता चल जाती तो मैं आदित्य और मौनी को बहुत पहले ही अलग कर देती। पता नहीं मैंने कैसे ध्यान नहीं दिया कि अब मौनी पहले की तरह गुनगुनाती नहीं हैं। 

एक दिन मैं बाज़ार गयी थी। मुझे आने में थोड़ा देर हो गयी। लौट कर आने पर मैंने जो दृश्य देखा...एक पल को मुझे चक्कर ही आ गया। मौनी आदित्य के बिस्तर पर लहू लुहान, बेहोश पड़ी थी...आदित्य ने उसके साथ वो कर डाला था जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। फिर उसे ऐसी हालत में देखकर डरकर घर छोड़कर भाग गया था....

मैंने मौनी के मुँह पर पानी के छींटे मारे...उसे डॉक्टर के पास ले गयी। मेरी रुलाई रुक नहीं रही थी। कहीं न कहीं उसकी इस हालत की जिम्मेदार मैं भी थी। 

आदित्य पकड़ा गया...बड़ी मुश्किल से मामला रफा-दफा कराया गया। फिर उसे मैंने दूर बोर्डिंग में डाल दिया। 

उस दिन के बाद मौनी ऐसा मौन हुई कि बोलना ही भूल गयी। उसे ऐसी हालत में देखकर मुझे अपनी जलन याद आ जाती। यही जलन थी जिसने मुझे बेटे के प्रेम में अंधा कर रखा था और मैं समय रहते कुछ देख न सकी। 

मैंने मौनी को अपनी बेटी बना लिया। उसकी पूरी देखभाल की। उसने फिर से बोलना सीखा। संगीत मास्टर फिर से घर आने लगे...पर इस बार मौनी को संगीत सिखाने के लिये।

आज मौनी , प्रसिद्ध लोकगीत गायिका मौनी रॉय हो गयी है। उसे मंच पर गाते हुये देखकर मेरी आँखें सजल हुई जा रहीं हैं। आँसू रुक ही नहीं रहे हैं...मौनी भी मेरी ओर देखकर रोती जा रही है....गाती जा रही है....

सूखे के बाद बारिश से हरी हुई लहलहाती फसल को मैं वैसे ही देख रही हूँ जैसे एक किसान देखता है। इस फसल को मैंने पश्चाताप के आँसुओं से सींचा है। 

~ टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

Friday 15 January 2021

प्रवासी

"सी,दीज़ आर द साईबेरियन बर्ड्स आई वाज़ टॉकिंग अबाउट। ( देखिये ,यही वो साइबेरियन पक्षी हैं, जिनके बारे में मैं बता रहा था।) " सिद्धार्थ ने अपने अमेरिकन बॉस को गंगा की लहरों पर कल्लोल करते हुये श्वेत प्रवासी पक्षियों की ओर संकेत करते हुये बताया। 

"वाओ, दिस इज़ रियली ऑसम! हाऊ ब्यूटीफुल!( वाह, ये अद्भुत है। बहुत सुंदर।)" अमेरिकन बॉस ने अपने अमेरिकन एक्सेंट में कहा। 

(पाठकों की सुविधा के लिये आगे इनकी बातचीत को हिन्दी में लिखा जा रहा है।) 

"जी..." सिद्धार्थ ने अंग्रेज़ी में थोड़ा और अमेरिकन एक्सेंट घोलते हुये कहा.. "हर साल संगम में आने वाले इन विदेशी मेहमानों की यहाँ के लोग बहुत प्रतीक्षा करते हैं।" 

"हाँ, हम देख सकते हैं, हर नाव पर इन पक्षियों को दाना दिया जा रहा है। बच्चे तो पागल ही हो जा रहे हैं।" बॉस की पत्नी ने सफेद दस्ताने पहने हुये हाथों से बेसन के मीठे सेव उछाले। प्रवसी पक्षी लपलपाते हुये आये, उन सेव के टुकड़ों को चोंच में दबा कर उड़ गये। कुछ वैसे ही जैसे विदेशी कंपनियों के चमकते-दमकते सैलरी पैकेज को देख कर ललचाते भारतीय युवा ग्रेजुएट्स। उन लोगों ने संगम किनारे से पचीस रुपये के इन मीठे सेव के पैकेट्स को खरीदा था। 

"जी मैम, भारत में सर्दियों का प्रारम्भ होते ही हर साल साइबेरियन पक्षी यूरोप से हज़ारों मील...कैन यू इमेजिन...हज़ारों किलोमीटर की दूरी तय कर संगम तट पर पहुंच जाते हैं।" सिद्धार्थ बहुत उत्साहित होकर बता रहा था। वो जताना चाहता था कि वो अपने बॉस और उनके परिवार को संसार के एक बहुत ही अद्भुत शहर में ले कर आया था। प्रयागराज की महिमा, यहाँ का माघ-मेला, कल्पवास, गंगा-जमुना के सफेद और हरे जल का संगम, प्रवासी पक्षियों का अल्पवास, सब दिखा कर उन्हें विस्मित कर लेना चाहता था। आख़िर उनके प्रसन्न होने से उसकी तरक्की के कई अनखुले द्वारों की खुल जाने की संभावना थी।

अमेरिकी मेहमान निश्चित ही नाव की सवारी का अद्भुत आनंद उठा रहे थे। ठीक संगम वाले स्थान पर लकड़ी की तख्तियाँ बल्लियों के सहारे लगाई गयीं थीं। वहाँ नाव रोककर लोग संगम के जल में डुबकी लगाते थे। आचमन करते थे, अंजुलि में जल भरकर सूर्य देवता की ओर मुख करके कुछ बुदबुदाते थे। फिर अपनी उंगलियों से नाक बंद कर जल में कई डुबकी लगाते थे। हर तरफ बहुत चहल पहल थी। 

अमेरिकी बॉस ने भारतीय जनता के ये सभी अद्भुत करतब अपने आई-फ़ोन के कैमरे में कैद कर लेने चाहे। उनकी मैडम गले में लटके डी एस एल आर में चारों दिशाओं के अनगिनत चित्र उदरस्थ करती जा रहीं थीं। 

वहाँ एक और आई-फ़ोन था, जो फ़ोटो नहीं खींच रहा था, पर जिसमें बार बार एक कॉल आ रही थी...जिसमें कॉलर का नाम "मम्मी" लिख कर कर आ रहा था। कई बार फ़ोन काटने के बाद जब सिद्धार्थ ने देखा कि उसके मेहमान छायाचित्र बटोरने में व्यस्त में हो गये हैं, तब उसने फ़ोन रिसीव किया- "हाँ...मम्मी...बोलो...क्या बात है...." 

"बेटा... तुमने बताया नहीं...घर कितने बजे आ रहा है..." उधर से माँ की हर्ष-विषाद-उत्साह-दर्द-भय मिश्रित स्वर था। 

"मम्मी...मैंने कहा था मैं ख़ुद फ़ोन करूँगा...बताया तो था कि अपने बॉस के साथ फाइव स्टार होटल में रुका हूँ। समय मिलते ही आऊँगा। अभी डिस्टर्ब न करो, उन्हें ही घुमा रहा हूँ।" एक कोने में मुँह करके उसने लगभग क्रोधित होते कड़े शब्दों में कहा। 

"पर बेटा... तू तो परसों सुबह से आया...." माँ की बात बीच में ही काट दी गयी। 

"ये देखिये मिस्टर फैंक...इधर तो आपने देखा ही नहीं...ये छोटी छोटी टोकरी में फूलों के बीच में दीपक रख कर गंगा में प्रवाहित करते हैं, इसकी पूजा करने के लिये।" सिद्धार्थ ने फ़ोन काटते ही झट से अपने मेहमानों को संकेत करके दिखाया।

मैम तुरंत अपना कैमरा ले कर उधर भी फ़ोटो खींचने लगीं। "वाओ...आई कैंट मिस इट! ...गेंगा माँ ...इजंट इट? " 

"यस मैम... गंगा यहाँ लोगों की माँ है। हम माँ का बहुत सम्मान करते हैं... यू नो।" 

उधर माँ ने सिद्धार्थ को गाजर के हलवे की फ़ोटो व्हाट्सएप पर भेज दी। क्या पता उनका बेटा हलवे की सुगंध के लालच में बंधा जल्दी से घर आ जाये।

सिद्धार्थ ने फ़ोटो देखी और बैक बटन मारकर फ़ोन से बाहर निकल आया और पुनः अपने अपने मेहमानों के साथ व्यस्त हो गया। 

"क्या हो गया सिद्धार्थ की माँ... अब बैठ भी जाओ...कितनी देर ऐसे फ़ोन लिये बैठी रहोगी?" सिद्धार्थ के पिता ने  समाचारपत्र एक किनारे रखा और आँखों पर से चश्मा उतार कर अपनी अशांत और अधीर पत्नी को देखा..."लाओ , मैं तुम्हारा फ़ोन चार्जिंग पर लगा दूँ।" 

"नहीं ...नहीं..रहने दो...अभी सिद्धार्थ का फ़ोन आता ही होगा।" माँ ने बड़े विश्वास से कहा फिर गोद में मोबाइल फ़ोन रखकर मटर की फालियाँ छीलने लगी, जैसे वो मोबाइल फ़ोन ही उसका छुटका सा सिद्धार्थ हो, जो उसे छोड़ कर कहीं नहीं जाता था...." अच्छा ये बताओ.. तुम्हें तो मटर का निमोना पसंद नहीं है...सिद्धार्थ के लिये बना रही हूँ...उसे पसंद है न...फिर तुम क्या खाओगे शाम को?" 

पिता ने ठंडी साँस भरते हुये अपनी अबोध पत्नी की ओर देखा...फिर पुनः चश्मा आँखों पर चढ़ाते हुये समाचार पत्र की दुनिया में खोते हुये कहा-" मैं भी वही खा लूँगा.….अब मुझे कुछ भी बुरा नहीं लगता।" 

तभी माँ की गोद में रखा मोबाइल बज उठा-"हैलो...सिद्धार्थ...हाँ बोलो..." माँ के स्वर में उत्साह की मात्रा दोगुनी हो गयी थी। 

" हेलो..माँ ...मैं घर नहीं आ पाऊँगा... ऐसा करो तुम दोनों टैक्सी करके यहाँ कान्हा श्याम होटल के कमरे नंबर 303 में आ जाओ..ठीक है..."

"बेटा...हम लोग...?...तुम एक बार यहाँ आ जाते...सब तुम्हारा कितना इंतज़ार कर रहे हैं। वो पड़ोस वाला तुम्हारा दोस्त नंदू...."

"फ़...नंदू..मम्मी समझो, मेरे पास बिल्कुल समय नहीं है। अभी बॉस को बड़े हनुमान जी का मंदिर, शिव मंडपम, नाग वासुकि मंदिर...सब दिखाना है। एक जगह वो लोग दो दो घण्टे लगा देते हैं। सब गरीब बच्चे उन्हें घेर लेते है...मैं उन्हें छोड़ कर नहीं आ सकता...अच्छा ऐसा करो तुम लोग सीधे बमरौली पहुँच जाना.. फ्लाइट से पहले एक घण्टे का समय रहेगा...वहीं मिल लेंगे..."

"पर बेटा... वो गाजर का हलवा...निमोना..." 

"मम्मी, वो सब पैक करके ले आना..मैं यहीं खा लूँगा..." और फ़ोन कट गया। 

माँ फ़ोन हाथ में पकड़े ही रह गयीं। 

"क्या हुआ...क्या कहा सिद्धार्थ ने ?" पिता उत्सुकता से पूरी बात सुन रहे थे। 

"...या तो अभी चलो...कान्हा श्याम...या...शाम को एयरपोर्ट..." माँ का गला रुंध गया। उन्होंने मोबाइल फ़ोन चार्जिंग पर लगा दिया। 

"तो फिर शाम को चलते है...अभी थक गया होगा..थोड़ा आराम कर लेने दो उसे..." पिता ने कहा और समाचार पत्र की आड़ में अपनी नम आँखों को छुपा लिया। सामने संगम पर आये प्रवासी पक्षियों की ख़बर छपी थी ...एक बहुत ही आकर्षक व मनमोहक चित्र के साथ।

~टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

Thursday 14 January 2021

बंदिनी



मैं चरखी बन 
घूर्णन करती रही
कि तुम पतंग बन 
उत्तुंग मेह-शिखर से
ऊँची उड़ान भर सको,
मृत्यु से अधिक 
भय है मुझे
डोर के कट जाने का !

~टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

द्वार

1. नौ द्वारों के मध्य  प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...