Friday 17 May 2019

ठग है परमपिता

अरे तुम तो बड़े हो
जिद नही करते
खेल खिलौने से तो
छोटे बच्चे खेलते हैं
पिता ने बहलाया है
ऐसे कई बार

अरे तुम्हारा जन्म तो
बड़े लक्ष्य के लिये है
कुछ लोगों को
छोटे छोटे सुखों से
वंचित कर देते है
परमपिता भी बहला कर

ठग विद्या में पिता से
बहुत आगे है परमपिता

Twinkle Tomar Singh

Sunday 12 May 2019

माँ और महँगी साड़ी

"अरे ये क्या ? इतनी मँहगी साड़ी मेरे लिये ? अरे कितनी साड़ियां तो है मेरे पास क्या करूँगी इसका?? " माँ ने आश्चर्य से कहा। मैंने साड़ी खोल कर उनके ऊपर फैला कर डाल दी। उनके सूखे शरीर और झूलती त्वचा पर महँगी साड़ी सज कर जैसे ख़ुद ही शरमा रही थी। जिन्दगी पर तप से तपे शरीर पर विलास फबता नही जैसे। कभी माँ को नही देखा अपने लिये कुछ भी अच्छा खरीदते हुये। पिता जी की सीमित आय में चार भाई बहनों की परवरिश करना आसान काम तो नही था न। हमारी पढ़ाई शादी के लिये ही सारी जिन्दगी पैसे जोड़तीं रह गईं बस।

"माँ...तुम भी न... बेटी की गिफ़्ट की हुई साड़ी तो नही है न तुम्हारे पास। मुझे पढ़ाया लिखाया, एम बी ए कराया अब आज अच्छी नौकरी में हूँ तो अपनी माँ को क्या एक साड़ी भी गिफ़्ट नही कर सकती?" थोड़ा रूठने का नाटक करना पड़ा मुझे। वरना माँ कहाँ मानने वाली थीं। साड़ी उठा कर वापस पैकेट में ऐसे संभाल कर पैक करने लगीं जैसे कि दुकान से गलती से मँहगी साड़ी खरीद ली हो और अब उसे वापस लौटाने जाना है।

"अच्छा ठीक है। चल अपना मन न छोटा कर। ये बता चाय के साथ क्या खायेगी पकौड़े या नमक अजवाइन का पराठा ?" माँ ने प्यार से चपत गाल पर लगाते हुये कहा। और बिना जवाब सुने ही रसोई की ओर बढ़ गयीं। उन्हें पता है शाम को चाय के साथ अगर मुझे पकौड़े मिल जाये तो इससे बढ़िया मेरे लिये कुछ नही।

चार दिन की छुट्टी में घर आई थी मैं। छुट्टी ख़त्म होते ही वापस माँ को छोड़ कर नौकरी देने वाले शहर में जाना था। फिर वही भागदौड़ वही नाइन टू फाइव घड़ी के काटों में फंसी हुई जिन्दगी।

दो महीने बाद चाचा की बेटी की दिल्ली में शादी थी। मैं तो लोकल थी पहुंच गई फट से। दीदी भी आयीं थीं अपने पति और बच्ची के साथ। शादी में माँ पिता जी भी आ रहे थे। मैं खुश थी माँ जब वो कीमती साड़ी पहन कर आयेंगी और जब चाची जलकर रह जाएंगी तो कितना मजा आयेगा। कसम से सारे पैसे वसूल हो जायेंगे। अगर चाची ने मारे जलन के ये भी कह दिया कि हाँ भई अब तुम्हारी सुमेधा कमाने वाली हो गयी है तब तो कसम से और मजा आ जायेगा। चाचा जी की हैसियत हमसे थोड़ा अच्छी थी तो चाची को इस बात का थोड़ा घमंड था।

शाम को सब तैयार हो रहे थे। मैंने भी बढ़िया शरारा सूट निकाल कर पहना था। तैयार होकर मैं दीदी को देखने गयीं कि वो तैयार हुई कि नहीं। तभी देखा सामने से दीदी आ रहीं थीं वही साड़ी पहने जो मैंने माँ को गिफ़्ट की थी।....." दीदी.... ये साड़ी.... म म म....बहुत अच्छी लग रही है..." मैंने अवाक होते हुये, फिर सयंत होते हुये, फिर कुछ अपने को रोकते हुये कहा।

" अच्छी है न सुमि?" दीदी इतरा रहीं थीं। सुंदर तो वैसे ही थीं वो और महँगी साड़ी में सच में परी लग रहीं थीं। " हां दीदी बहुत सुंदर है।" मैंने पूरी एक्टिंग करने की कोशिश की कि मुझे जरा भी बुरा नही लगा उनको इस साड़ी में देखकर।

" देख न सुमि। माँ ने जबरदस्ती ये साड़ी मुझे पकड़ा दी। मेरे पास कोई नई साड़ी नही थी। माँ को लगा मेरे ससुराल वालों की नाक नीची न रह जाये। जानती हो न तेरे जीजा जी का बिज़नेस थोड़ा डावाँडोल...." दीदी थोड़ी सी सकुचाते हुये बोली। " माँ कह रहीं थीं कि ये साड़ी बहुत भारी है उनसे पहनी ही नही जाती है। पिता जी ने लाकर दी थी। कह रहीं थी उनको कुछ पसंद करना ही नही आता।"

माँ को पता था अगर दीदी को ये पता चला कि सुमि ने अपनी पहली कमाई से माँ के लिये साड़ी खरीद कर गिफ़्ट की है तो दीदी कभी न लेतीं। इसीलिये माँ ने झूठ बोला। तभी गलियारे से माँ और चाची की हँसी ठहाके बातचीत की आवाज आती सुनाई दी। दोनों इधर ही आ रहीं थीं। माँ, मैं और दीदी आमने सामने थे। माँ एकदम से चुप हो गईं। मैंने अपनी आंखों से माँ की आँखों को टटोला, आंखों ने आँखों से मूक प्रश्न किया-"क्यों?... दीदी के पास नई साड़ी नही थीं। पर पुरानी कई मँहगी साड़ी तो थी न ? ये रिश्तेदारी वाली शादियाँ भी तो रोज रोज नही पड़ती न?"

माँ ने मुझसे नज़र फेर कर दीदी की ओर मुंह कर लिया, उनकी बलैयां ली और चाची से बोलीं "देख न छोटी कितनी सुन्दर लग रही है न मेरी लाडो।" यही उनका जवाब था मेरे प्रश्न का। न मालूम क्यों मुझे लग रहा था कि साधारण सी गुलाबी रंग की साड़ी में मेरी माँ आज दुनिया की सबसे अमीर औरत हैं।

Twinkle Tomar Singh

Saturday 4 May 2019

तुमसे पीछे रह जाना मुझे अच्छा लगता है

ठंडी रात में कॉलेज की पार्टी से लौटते हुये तुमने अपना कोट उतार कर मेरे कंधे पर डाल दिया था। दाँत दोनों के ही किटकिटा रहे थे। ठंड तो तुम्हें भी लग रही होगी पर तुमने मेरे लिये सह ली। सच कहूँ मुझे बहुत अच्छा लगा था उस वक़्त तुमसे कमजोर रह जाना।

हनीमून पर सरसराती हवाओं के बीच पहाड़ियों पर हम चढ़ते जा रहे थे। तुमने शूज़ पहन रखी थी और मुझ बेवकूफ़ ने सैंडिल। तुमने मेरे हाथ अपने हाथों में मजबूती से थाम रखा था। तुम आगे आगे चल रहे थे मैं तुम्हारे पीछे पीछे। सच कहूँ मुझे बहुत अच्छा लग रहा था तुमसे पीछे रह जाना।

किसी स्टेशन पर भारी भरकम सामान का बोझा जब तुम ख़ुद उठा लेते हो। मुझे बस हल्की फुल्की पानी की बोतल और मेरे हैंड बैग तक सीमित कर देते हो। या कभी मैं कोशिश भी करूँ वजन उठाने की तो झिड़की देकर मेरे हाथ से वजनी बैग ले लेते हो कहते हो- " रहने दो तुम्हारे बस का नही." जानती हूँ तुम भी थक जाते हो आख़िर पर फिर भी मुझे अच्छा लगता है तुमसे अशक्त रह जाना।

किसी मॉल में या किसी दुकान में कोई चीज़ खरीदते समय तुम फटाफट हिसाब लगा लेते हो,डिस्काउंट काउंट कर लेते हो। किस प्रोडक्ट पर फ़ायदा है किस पर नही। सेल्समैन कितना बेवकूफ़ बना रहा है। घर के बजट को अच्छे से मैनेज कर कर लेते हो। मुझे चिंता भी नही होती कि जिस महीने पैसे कम है उस महीने घर का खर्च कैसे चलेगा। जानती हूँ तुम बहुत टेंशन में रहते हो पर मुझे अच्छा लगता है गणितीय बुद्धि में तुमसे पीछे रह जाना।

कहीं जब हम घूमने गये हो। चारों ओर भीड़ ही भीड़ हो अच्छे लोगों की भी और बुरे लोगों की भी। तब किसी बुरी नज़र को मेरी तरफ़ ताकते हुये देखकर तुम अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रखकर मुझे अपने समीप कस लेते हो। जैसे उस लोलुप आदमी को बताना चाहते हो- "दूर रहो। मैं इसके साथ हूँ इसका रक्षक।" सच कहूँ मुझे बहुत अच्छा लगता है उस वक़्त शारीरिक रूप से तुमसे कमजोर होना।

शादी के चार फेरे में तुम आगे थे वो पल मेरी ज़िंदगी के सबसे ख़ूबसूरत थे। उसी वक़्त शायद मैंने आत्मसमर्पण कर दिया था स्वयं को तुम्हारे सामने। शादी के आख़िरी तीन फेरों में मैं आगे थी। सच कहूँ मुझे बिल्कुल भी अच्छा नही लगा था तुमसे आगे चलना।

जब मैं एक्टिवा चलाती हूँ और तुम पीछे बैठ कर मेरी कमर थाम लेते हो। अपना सर प्यार से मेरे दायें कांधे पर रखकर चोरी से मुझे चूम लेते हो। हाँ बस उस एक पल मुझे अच्छा लगता है तुमसे आगे रहना।

Twinkle Tomar Singh

Friday 3 May 2019

हैरान है तू

मुझे हराने की कोशिश में/खामखां हैरान है तू
जो मैं कह भर दूं /मैं हारी/दिल हार जायेगा तू

Twinkle  Tomar Singh

नीला दरवाजा

रोज़ कॉलेज आते जाते इस बन्द दरवाजे को देखती थी।बड़ा आकर्षक लगता था सफेद दीवार नीला दरवाजा। हम माध्यम वर्ग वाले लोगों के घरों में एक ही रंग के दरवाजे होते हैं-भूरे।

एक दिन एक बूढ़े अंकल उस घर के बाहर दिखाई दिये। उनको हेलो बोला और उनके नीले दरवाजे की तारीफ कर दी-"वेरी स्टाइलिश।"

अंकल हँसने लगे- "बेटा,मैं देहात से जुड़ा हुआ जमीनी आदमी हूँ।आज भी देहातों में मान्यता है नीले रंग का दरवाजा ऊपरी बाधा को दूर रखता है।मुझे नही पता था मेरा गँवारपना बड़े शहर में स्टाइलिश माना जायेगा।"

Twinkle Tomar Singh

द्वार

1. नौ द्वारों के मध्य  प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...