Sunday 1 December 2019

हरियाली लग्ज़री है

"अभिमन्यु जल्दी से ये सारी गोलियाँ निगल लो।"  मम्मी ने नाश्ते की मेज पर अभिमन्यु को बुलाते हुये कहा। 

"मम्मी आपको अच्छी तरह पता है, मुझे खाने में ये विटामिन्स और मिनरल्स की गोलियाँ अच्छी नहीं लगती।" अभिमन्यु ने मुँह बनाते हुये कहा। 

"फिर पोषण कैसे मिलेगा बेटा? हम इतने अमीर नहीं है रोज़ रोज़ फल और सब्जियां खरीद सकें और हमारा कोई गाँव और खेत भी नहीं है जहाँ से अनाज और सब्जियाँ आ जाया करे। बेटा तुम्हें इनसे ही पेट भरना होगा।" मम्मी ने प्यार से समझाते हुये कहा। 

मन मारकर कटोरी भर गोलियाँ अभिमन्यु एक एक कर के चबाने लगा। "मम्मी, पता है ऋषभ के घर कल पुलिस आयी थी।" अभिमन्यु ने बड़े चाव से एक रहस्य का खुलासा करते हुये बताया। 

"क्यों? क्या हुआ था?" मम्मी ने पूछा

"उन्होंने अपने घर में आँगन में चोरी से स्विमिंग पूल बना रखा था। और जानती हो उनका स्विमिंग पूल लबालब पानी से भरा हुआ था।" अभिमन्यु को तो रोज़ नहाने के लिये भी पानी नहीं मिलता था। और ऋषभ रोज़ स्विमिंग पूल में डुबकी लगा कर आता था। इसी से अभिमन्यु को ऋषभ से थोड़ी थोड़ी जलन होती थी। उसका भी मन होता था पानी से भरे स्विमिंग पूल में वो तैर कर देखे। 

"हे राम। यही तो अंधकार है। यहाँ लोगों को पीने के लिये पानी नसीब नहीं है। और लोग पैसे के बल पर पानी खरीद कर स्विमिंग पूल बना कर बैठे हैं। अच्छा हुआ जो उनके घर पुलिस आयी तो। ऐसे लोगों को सबक मिलना ही चाहिये।" अभिमन्यु की मम्मी ने खीझते हुये कहा। पिछले हफ्ते से वो नहायी नहीं थी। जो एक छोटा टैंक पानी का खरीदा गया था उससे उसने अभिमन्यु को नहला दिया और बाकी बचे पानी से अभिमन्यु के पापा ने नहा लिया , शेष बाथरूम में इधर उधर के काम में खर्च हो गया था। 

"मम्मी, अबकी बार टैंक आयेगा तो आप नहा लेना। मैं एडजस्ट कर लूँगा।" अभिमन्यु शायद अपनी मम्मी के शब्दों से छलक रही व्यथा और उत्तेजना को पहचान गया था। 

माँ की छाती में अपने बेटे के लिये ममता का सागर उमड़ आया। " हाँ रे। चलो जल्दी से बैग संभालो अपना। स्कूल बस आ गयी है और सुनो आज तो स्पोर्ट्स डे है न, उसमें जीत कर आना । ऑल द बेस्ट।" मम्मी ने प्यार से चूमते हुये हुये अभिमन्यु को ऑक्सीजन मॉस्क पहना दिया। " और ये ऑक्सिजन मॉस्क उतारना बिल्कुल भी नहीं। खाँसी हो जाती है तुमको, समझे।" 

"ठीक है। पर मुझे उलझन होती है तभी उतारता हूँ।" फिर बॉय मम्मी' कहते हुये अभिमन्यु स्कूल बस की ओर भाग गया। 

आज अभिमन्यु के स्कूल में स्पोर्ट्स डे था। उसने दौड़ प्रतियोगिता में अपना नाम लिखाया था। स्कूल में दौड़ प्रतियोगिता शुरू हो चुकी थी। टीचर ने सभी बच्चों को ऑक्सिजन मॉस्क पहने रहने की हिदायत दी। दौड़ने से साँस तेज तेज चलने लगती थी। वायू इतनी प्रदूषित थी कि बिना मॉस्क के अगर बच्चे दौड़े तो फौरन बीमार पड़ सकते थे। इंस्ट्रक्टर ने काउंट डाउन शुरू किया- वन, टू, थ्री..गो..।


 दौड़ सिर्फ़ 100 मीटर की थी। पहले के जमाने में सुना था कि दौड़ 400 मीटर, 800 मीटर की भी हुआ करती थी। अब सौ मीटर में ही बच्चे हाँफने लगते थे। दौड़ में नाम लिखाने से पहले सबका कार्डिएक चेकअप होता था। साँस और फेफड़ों की ताकत चेक की जाती थी। तब कहीं जाकर उनको दौड़ में भाग लेने दिया जाता था। पूरे स्कूल में मात्र दस बच्चे चुने गए थे। बाकी सभी प्रतियोगिताएं या तो मानसिक होती थीं जैसे तरह तरह के डिजिटल गेम या फिर इंडोर गेम्स जैसे कैरम,शतरंज आदि। 

अभिमन्यु के लिये ये गर्व की बात थी उसे दौड़ में चुन लिया गया था। सभी बच्चे काउंट डाउन समाप्त होते ही दौड़ने लगे। सभी अपनी जी जान लगाए हुये थे। तभी अचानक दौड़ते दौड़ते अभिमन्यु का ऑक्सिजन मॉस्क गिर गया.....और दूर छिटक गया....

जितनी देर में वो समझ पाता उतनी देर में विषैली हवा उसकी तेज चलती सासों से फेफड़ों में घुस गई। अभिमन्यु की गति धीमी हो गयी। वो लड़खड़ाने लगा....

उसके ध्यान में प्रथम स्थान का पुरस्कार कौंध गया। कुछ भी हो वो हार नहीं सकता। उसे कबसे इसकी चाह थी...नही वो दौड़ेगा पूरी ताकत से दौड़ेगा. उसने दुगुनी शक्ति जुटाई...उसे वो प्रथम पुरस्कार अपनी मम्मी के लिये जीतना ही है......


एक पागलपन का दौरा सा उसके ऊपर सवार हो गया था। वो   हाँफता गया... दौड़ता गया....दौड़ता गया...आख़िरकार  विजय पट्टी ने उसकी छाती का आलिंगन कर ही लिया.....पर इसके बाद ही उसकी चेतना लुप्त हो गयी और वो बेहोश होकर गिर पड़ा। 

सभी अध्यापक, बच्चे, स्टॉफ वाले, डॉक्टर उसकी ओर दौड़े। उसकी नाक पर फौरन ऑक्सीजन मॉस्क लगाया गया, उसके मुँह पर पानी के छींटे डाले गए। दस मिनट बाद उसकी चेतना लौटी। जैसे ही उसने आँखें खोली, सभी में हर्ष की लहर दौड़ गयी। बच्चों ने उसे कंधे पर उठा लिया। 'विनर विनर' के उदघोष से पूरा मैदान और दर्शक दीर्घा गूँजने लगी। 

फिर वो घड़ी आयी जब प्रथम , द्वितीय, व तृतीय स्थान पर रहे विजेता क्रमवार ऊँचाई पर खड़े किये गये। तृतीय स्थान पर जो विजेता था उसे चॉकलेट का एक डिब्बा और मेडल दिया गया। द्वितीय स्थान पर रहे विजेता को चॉकलेट, मेडल के साथ एक बड़ा सा नकली पुष्प गुच्छ भी दिया गया। पुष्प गुच्छ को उसने हाथ में उठाकर हवा में लहराकर सबका अभिनन्दन स्वीकार किया। 

अपने पीले पड़े चेहरे पर सन्तोष और हर्ष के भाव सजाए अभिमन्यु प्रथम स्थान पर खड़ा था। जिस पल की उसे प्रतीक्षा थी वो आ गया था। उसे गले में स्वर्ण मेडल पहनाया गया, चॉकलेट का डिब्बा हाथ में थमाया गया। बगल में एक व्यक्ति ट्रे में प्रथम पुरस्कार की सबसे महँगी और विशिष्ट थाती लेकर खड़ा था। प्रिंसिपल ने ट्रे से संभाल कर एक फूल खिला हुआ पौधा एक छोटे गमले समेत उठाया और अभिमन्यु के हाथ में सौंप दिया। सभी बच्चे आनंद से तालियां बजाने लगे। 

अभिमन्यु की आँखे आँसुओं से छलछला उठी। आज वो ये पौधा मम्मी को देगा। इसका एक फूल तोड़कर मम्मी के बालों में लगा देगा। कितनी सुन्दर लगेंगीं न मम्मी! आज से वो भी उन अमीर लोगों में से एक हो जाएगा जिनके घरों में पौधे लगे होते है। 

( भविष्य का एक चित्र जब हरियाली लग्ज़री हो जाएगी।)

©® टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 


No comments:

Post a Comment

द्वार

1. नौ द्वारों के मध्य  प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...