मैं चरखी बन
घूर्णन करती रही
कि तुम पतंग बन
उत्तुंग मेह-शिखर से
ऊँची उड़ान भर सको,
मृत्यु से अधिक
भय है मुझे
डोर के कट जाने का !
~टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ।
1. नौ द्वारों के मध्य प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...
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