Wednesday 10 March 2021

बस एक नींद

तुम स्त्री हो
तुमने रात्रि को 
रात्रि न रहने दिया
तुमने दिन को ऐसे जिया 
जैसे इस दिन के बाद 
कोई दूसरा दिन उगेगा ही नहीं
वो पेट काट कर 
बच्चों के पेट भरता रहा
तुमने सच में पेट काट कर 
बच्चे को जन्म दिया
तुम्हारी घड़ी की टिक टिक 
मूसल की धम-धम बन चलती रही
इस श्रम का कोई पारितोषिक नहीं
तिस पर जाओ एक वरदान ले लो...
धन...प्रतिष्ठा....पद.... प्रसिद्धि....???
स्त्री की सिकुड़ी आँखें, कुछ खुलीं..और माँगा
बस एक भरपूर नींद....!!

~टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 


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