Friday 14 May 2021

कपूर की पोटली

एक किस्सा कहीं मैंने पढ़ा था। कुछ इस प्रकार था कि किसी को किसी रोग के लिये एक होमियोपैथी चिकित्सक ने कोई दवाई लेने की सलाह दी। कई दिन तक दवाई लेने के उपरांत भी उसे कोई लाभ न हुआ। वो पुनः चिकित्सक के पास पहुँचा और उसने चिकित्सक से शिकायत की ," आप की दवाई से मुझे कोई भी लाभ नहीं हो रहा है। पता नहीं आप कौन सी दवा मुझे दे रहे हैं।"

चिकित्सक ने कहा,"मैंने आपको किसी भी प्रकार की बादी चीज़ से परहेज़ रखने को कहा था। क्या आप उसका पूर्णतः पालन कर रहे हैं?"

रोगी ने कहा," हाँ, बिल्कुल, बहुत ही कड़ाई से पालन कर रहा हूँ। किसी भी प्रकार की कोई बादी चीज़ का सेवन कदापि नहीं करता ।" 

चिकित्सक ने पुनः दवाई दोहरा दी और कहा मुझे अपनी दवा पर पूरा भरोसा है। आप खान पान पर विशेष ध्यान दीजिए कि कहाँ चूक हो रही है।

चिकित्सक अपनी चिकित्सा के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। अतः रोगी ने अपने खान पान पर विशेष ध्यान दिया। ये पता लगाने  का पूरा प्रयास किया कि कहीं से भी कोई बादी चीज़ उनके भोजन में न आ सके। यहाँ तक कि उनके घर में भी सबके लिये उन्हीं के अनुसार भोजन बनने लगा। अन्य परिवारजन भी बादी चीजों से दूर रहने लगे। फिर भी आराम न होने पर रोगी ने अपनी खोज और बढ़ा दी। 

एक दिन वो दूध लेने ग्वाले के पास पहुँचे तो पाया कि जिस गाय के दूध का वो सेवन करते थे, उसे वो ग्वाला उड़द की भीगी दाल खिला रहा था। 

उन्हें अपनी समस्या की जड़ पकड़ में आ गयी। उन्होंने ग्वाले से पूछा कि इसे उड़द दाल क्यों खिला रहे हो? तब उसने बताया कि क्या करूँ घर में उड़द दाल कहीं से टनों आ गयी है। अब परिवार में तो इतनी खपत संभव नहीं है। 

उन महाशय ने ग्वाले को तो कुछ न कहा पर फौरन उस गाय का दूध लेना बंद कर दिया। फिर उसके बाद कहने की आवश्यकता नहीं कि उनको उस दवा से लाभ पहुँचने लगा। 

बचपन में मुझे याद है जब हम भाई बहन छोटे-छोटे थे, तो जैसे कि किसी को पेटदर्द या गैस की समस्या होती थी, फौरन माँ हमें थोड़ी सी हींग पानी से फाँकने को दे देती थीं, और हमें थोड़ी ही देर में आराम हो जाता था। अब मैं कितनी भी हींग फाँक लूँ, ज़रा भी आराम नहीं मिलता। 

तो क्या पहले जो आयुर्वेदिक / होमियोपैथी चिकित्सा कारगर थी अब नहीं है? 

जो लोग ऐसा समझते हैं, उन्हें ये बात ध्यान देनी होगी कि आज हम कोई भी चीज़ शुद्ध नहीं खा रहे है। क्या हींग, क्या लौंग, क्या इलायची, क्या जीरा, क्या बादाम। अधिकांश चीजों से उनका तेल पहले ही निकाल लिया जाता है।

सब्जी छौंकते समय अक्सर मुझे ये लगता है कि अच्छी खासी एक काढ़े जितनी सामग्री तो सब्जी में ही पड़ जाती है। भारतीय भोजन में मसालों को स्थान ही इसलिए दिया गया था कि शरीर के अंदर बहुत सारी व्याधियों से मुक्ति यूँ ही मिलती रहे। उन नियमों का हम आज भी पालन करते आ रहे हैं। पर आज वो उतने लाभदायक सिद्ध नहीं होते। हल्दी उतनी पीली कदापि नहीं होती जितनी आज दिखती है, अगर वो शुद्ध है तो।  खाने के बाद अगर आप पान खा रहे हैं तो क्या कत्था शुद्ध है? 

अगर आप घर में हवन कर रहे हैं तो क्या हवन में उपयोग की जाने वाली सारी सामग्री शुद्ध है? आप कपूर या अजवाइन की पोटली सूँघ रहे हैं तो पहले ये समझिए कि क्या वो कपूर शुद्ध है? कपूर और चंदन बहुत कठिनाई से शुद्ध मिलता है, मिलता भी है तो बहुत महंगा होता है। सबके बस की बात नहीं होती उसे अफ़ोर्ड कर पाना। अब हींग शुद्ध आती ही नहीं। डिब्बी पर लिखा होता है 70% स्टार्च। 

आयुर्वेद में कितनी दवाइयां मात्र गाय के दूध के साथ ही लेने को बतायी जाती हैं। पहले तो गाय का दूध बहुत मुश्किल से उपलब्ध होता है, दूसरी बात गाय माता की इस समाज में इतनी बेकदरी है कि आपने देखा ही होगा कहाँ कहाँ उन्हें अपने भोजन के लिये मुँह डालना पड़ता है। 

तो कुल मिलाकर बात ये है कि चिकित्सा प्रणाली को हम दोष नहीं दे सकते। गंगाजल में बहुत सारे रोगों को हरने की शक्ति है, पर जब गंगा ही दूषित हो जाये तो क्या किया जा सकता है? 

~टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

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