Friday 31 December 2021

अलविदा 2021





घड़ी को हाथ में बाँध लेने से समय भी मुट्ठी में कैद हो जाता तो कैसा होता? एक कमरे में सारी खिड़कियाँ और दरवाज़े बंद हों , हवा रुंध जाए, कुछ वैसा होता। उम्रदराज़ होना क्या इतना बुरा होता है कि समय को रोक कर रख लेने की हसरत पाली जाये? शरीर बूढ़ा होता जाता है, पर क्या आत्मा हर दिन नया अनुभव, नया ज्ञान पाकर और जवान नहीं होती जाती है? 

पीछे मुड़कर देखने पर हम पाते हैं कि बीते वर्षों में हम कितने ख़ुश थे। हमारे पास उम्मीदों का सागर था। हम कम उम्र थे, कम फिक्रमंद थे। पर क्या आत्मा का ये निखार था? दुःखों को सहने की शक्ति थी? अपने अंदर मजबूती थी? कोई भी संकट आये हम डटकर मुकाबला कर लेंगे ये विश्वास था? 


कहते हैं यदि आप अपने आज के आनंद को टेस्ट करना चाहते हैं तो ज़रा सोचिये कि आप दस वर्ष पूर्व किस अवस्था में थे। यदि आपको मौका मिले तो क्या आप उसी अवस्था में जाना चाहेंगे? आप अपनी दस वर्ष पूर्व की फ़ोटो तक पसंद नहीं करते हैं, उसी में लाख कमियाँ दिखती हैं। तो सोचिए जीवन में कितनी कमी दिखेगी? 

दो हज़ार इक्कीस का हासिल बस इतना रहा कि उसने हमसे बहुत कुछ छीन तो लिया, पर हमें कहीं न कहीं बहुत बहुत मज़बूत बना गया। हमें ये अनुभव करा गया कि हम सब एक चलती ट्रेन के मुसाफ़िर हैं, कब किसका स्टेशन आ जाये नहीं पता! 

दुःखों से शरीर भले ही पीला हो रहा हो...पर आत्मा हरी होती जाती है!

जाते हुये इस साल को ज़फ़र इक़बाल जी के इस शेर के साथ अलविदा कहना चाहती हूँ- 

सफ़र पीछे की जानिब है क़दम आगे है मेरा 
मैं बूढ़ा होता जाता हूँ जवाँ होने की ख़ातिर 


~ टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 


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