Wednesday 23 May 2018

मेरी टॉयलेट एक प्रेम कथा

मेरी-टॉयलेट एक प्रेम कथा

किस्सा उस वक़्त का है जब मेरी चुनाव में ड्यूटी लगी थी।मेरी टीम में पांच लोग थे ,जिनमेें  मैं इकलौती महिला थी।अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मैं अपने साथ अपने भतीजे को लेकर गयी थी। ट्रक में गाय भैसों की तरह भरकर हमें हमारे डेस्टिनेशन 'तुलसीपुर बंजर' नामक गाँव मे उतार दिया गया। उस गाँव के प्राथमिक विद्यालय में हमे मतदान केंद्र बनाना था।

शाम हो चली थी।दूर दूर तक फैले खेतों के बीच मे गहराते अंधेरे में तुलसीपुर बंजर प्राथमिक विद्यालय वाकई बंजर लग रहा था।बिजली नामक चिड़िया वहां से न मालूम कब से फुर्र थी।

विद्यालय में प्रवेश करते ही पहली चिंता जो मेरे मन मे जागी वो ये थी कि टॉयलेट किधर है ?
रात में उबड़ खाबड़ जमीन पर अंधेरे में टूटा फूटा शौचालय बड़ा ही भयावह लग रहा था।फिर भी अंधेरे में टटोलते टटोलते पता चल गया कि शौचालय सिर्फ नाम का है।और उसे शायद मिट्टी के भंडार गृह के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।

गाँव वाले बहुत अच्छे थे।हमारे चाय पानी खाने पीने सबका इंतेज़ाम कर दिया। पर मेरे ग्रामोफोन की सुई एक ही प्रश्न पर अटक गई थी। टॉयलेट किधर है? टॉयलेट का इंतजाम हो जाएगा?गांव की महिलाओं ने आश्वस्त किया चिंता न करो टॉयलेट है।

रात हमने उसी विद्यालय में लालटेन की रोशनी में मतदान की पर्चियां भरते हुए बिताई। मच्छरों ने हमे जरा भी अकेलेपन का अहसास नही होने दिया।ज्यादा थकान होने पर मैं सो गई।

सुबह उठकर मेरा रिकार्ड चालू हो गया। टॉयलेट किधर है? एक महिला मुझे पास के किसी घर मे ले गयी जहां सीढ़ीयों के नीचे हैंडपम्प लगा था और एक फटा सा पर्दा पड़ा था, जिसे हवा उड़ा उड़ा कर अपनी जगह व्यवस्थित करने की भरपूर कोशिश कर रहा थी।

अब मेरी समझ में आया ये इनका फाइव स्टार वाला टॉयलेट है। मैंने फिर समझाया शौचालय किधर है ?
तब उस महिला ने मेरे हाथ मे लोटा पकड़ा दिया और बोली चलो। उस लोटे के पानी मे मुझे अपने सारे पापों के चलचित्र चलते नज़र आने लगे।

फिलहाल पांच महिलायों के केंद्र में खुद को बौरे गांव का ऊंट सी महसूस करती मैं चल दी। मुझे अन्य महिलाओं के साथ लोटा हाथ मे पकड़े के जाते हुए देख के मेरा भतीजा हंस हंस के खटिया से गिर पड़ा। और इस किस्से से पूरे खानदान में मेरा उसने बहुत यशोगान किया।

दस मिनट की डांडी मार्च यात्रा के बाद हम अपने भव्य शौचालय पहुंचे। दूर दूर तक फैले सूने खेत फसल भी कट चुकी थी। मेरी सांस ऐसी अटकी कि उसने ऊपर आने से साफ मना कर दिया। एक जगह झाड़ झंगाड़ देख कर सब महिलाएं  बैठने लगी। मैं असमंजस में थी।मैंने कहा आगे से आड़ है तो क्या पीछे से पूरा खुला है। मेरी हालत देख के पहले ही वो हंस रही थी और हंसी उड़ाते हुए बोली काहे डेरात हौ ? कोई नही आएगा।
फिर मैंने पूछा-इसमें कोई सांप बिच्छु तो नही है।उन्होंने कहा- काहे नही है। सब है।

अब मेरी सांस के साथ सब कुछ जो जहां था, वहीं अटक गया। शिक्षित होने के नाते ये पता था किसी भी वेग पर ब्रेक लगाना सेहत के लिए अच्छा नही है। तो चारों पांचों गियर लगा कर मैंने बहुत कोशिश की मेरी कार दौड़ जाए पर मुझसे शर्म और लज्जा नामक दो स्पीड ब्रेकर के कारण हो न सका। सुबह पांच बजे से लेकर रात 8 बजे तक मैंने इसी स्थिति में गुजारा किया। दिन भर जितना हेक्टिक रहा उसकी तो बात ही जाने दीजिए। थकान और पेटदर्द के मारे बुरा हाल हो गया था।

शाम को जब मेरे पतिदेव मुझे कार से लेने आये तो मुझे उन्हें देखकर इतनी खुशी हुई ,जितनी उन्हें शादी में दूल्हे के रूप में आया देख के भी नही हुई थी। मैं उनसे सबके सामने ही चिपट कर फूट फूट कर रोने लगी। वहां से कार भगा कर आजतक का जो सबसे बेहतरीन तोहफा उन्होंने मुझे दिया - वो था एक पेट्रोल पंप पर कार रोकना जहां एक कामचलाऊ टॉयलेट था।

शौचालय को राहु का निवास माना जाता है,इसीलिए घरों में शौचालय नही बनवाये जाते थे। पर जरा सोचिए अपने घर की लक्ष्मी को बाहर शौच के लिए भेज कर आप कौन सा ग्रह मजबूत कर रहे है? ग्रह मजबूत हो भी जाये तो भी लड़की अगर जरा भी जागरूक है तो गृह जरूर कमजोर हो जाएगा।

Twinkle Tomar


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