Monday, 1 October 2018

मातृ ऋण

"तेरा कंठ बहुत मीठा है,पर बेटी एक तो तू अंधी और ऊपर से गरीब। तेरी शादी तो गूलर का फूल समझ। " , माँ कहती थी।

जिसकी शादी ही गूलर का फूल हो वो पूर्ण मां बनेगी, कौन सोच सकता था ?

सबने कहा- क्यों एक अनाथ और मंद बुद्धि बालक  को अपना रही हो?..

गुस्सैल और विध्वंसक,दानव सरीखा बालक संगीत के प्रशिक्षण से ऐसे सरल हो जायेगा, कौन जानता था।

उसके मुंह से निकला 'माँ' शब्द ही मेरी सरगम थी।

शायद तू मातृ ऋण चुकाना चाहता था, इसलिये अपनी आंखें दान दे गया...बेटा...जुदा होके भी तू मुझमें कहीं बाकी है।

Twinkle Tomar

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