Friday 26 October 2018

नाना जी का करवा चौथ

नानी बहुत सुंदर थी । कोई भी देख के कह सकता था कि खंडहर बताते हैं इमारत बहुत बुलंद थी। सूती कलफ लगी महीन बेल बूटों वाली थीसाड़ी पहनती थी। मैं उनकी साड़ी को अपनी उंगलियों से छूती और पूछती थी- " नानी आप पेपर की साड़ी क्यों पहनती हो? "
"इसलिए कि जब भी तुझे कागज की नाव बनानी हो, तो मैं पेपर दे सकूं।" नानी मेरे गाल थपथपाते हुए कहतीं । अपने पेटीकोट में लेस लगाने का उन्हें बहुत शौक था। कभी क्रोशिया से बुनकर, कभी बाज़ार से मोल लेकर।

नाना उन्हें बुढ्ढी , बुढ़िया कह कर चिढ़ाते थे। नानी बहुत चिढ़ जाती थी। कहती थी - "मैं बुड्ढी हूँ तो क्या तुम हमेशा जवान रहोगे ?"

नाना नहले पर दहला मारते और कहते - "पुरुष और घोड़ा हमेशा जवान रहते हैं, समझी बुढ़िया।"

नानी और चिढ़ जाती और कहती- "इतना ही जवानी के शौक बाकी है तो दूसरी शादी क्यों नही कर लेते हो ?"

नाना और चिढ़ाते हुये कहते - "कर लूंगा बुढ़िया, बस इधर तू मरी और उधर मैं घोड़ी चढ़ा। "

नानी मुंह फुला कर बैठ जातीं और पूरे दिन नाना से बात न करतीं। दोपहर ढले जब शन्नो की अम्मा बर्तन मांजने आती तो उससे अपना दुखड़ा रोती थी।

" देख ले शन्नो की अम्मा, बुड्ढ़ा कितना दुख देता है मुझे। सत्तर साल की उम्र में भी इसके लिए निर्जल करवा चौथ का व्रत रखती हूं। और ये रोज़ रोज़ मेरे मरने का रास्ता देखता है। "

शन्नो की अम्मा पल्लू से मुंह छुपा के हंसती और कहती - अरे नही आंटी, तुमको बहुत ही पियार करते है। तुम जिस दिन निर्जल व्रत रखती जो, पूरे दिन पगलाये घूमते हैं। मटरू की पान की दुकान पर कहते हैं। आज फिर बुढ़िया निर्जला ब्रत है। आज तो ऊपर खिसक ही जाएगी। ज़रा भी परवाह नही है इसको कौन मुझे दो रोटी खिलायेगा फ़िर। "

नानी आंख में आंसू भरते हुये कहती- "रहने दे शन्नो की अम्मा। उनकी ज्यादा तरफ़दारी न कर। अपने बुड्ढे को अच्छे से जानती हूँ मैं। बीड़ी नही पीने न देती मैं इसलिये मनाता है कि मैं मर जाऊं। और ये चैन से अपने बचे हुये सालों में बीड़ी, सिगरेट, चुरट पी सके। "

शन्नो हंसती जाती, बर्तन घिसती जाती और नानी की दुख भरी कहानी सुनती रहती।

उस साल फिर करवा चौथ था। नानी ने शन्नो की अम्मा से करवा चौथ व्रत का सारा सामान एक दिन पहले ही मंगा रखा था। बक्से से अपना लाल रंग का लहंगा चुन्नी सब निकाल के रख लिया था। अपनी बड़ी सी नथुनी और मांग टीका अपनी अलमारी से निकाल कर सहेज कर रख लिया था। अपनी नानी को एक ही बार मैंने इस अवतार में देखा था। एकदम लाल परी लगती थी। गोरी इतनी थी कि लाल रंग का जोड़ा भी खुश हो जाता था वो इतना फब रहा है।

आने वाले पल की हम तैयारी कर सकते है, पर आने वाला पल क्या लेकर आयेगा कोई नही जानता।

नानी की रात से ही तबियत बहुत ख़राब हो गयी। उल्टी दस्त शुरू हो गये। बुख़ार हो गया। दूसरे दिन हालत इतनी ख़राब हो गयी कि नानी बिस्तर से उठ नही पा रही थी। नाना आवाज़ देते रहे - "बुढ़िया उठ जा सूरज निकल आया है। मरना हो तो रात में मरना , चांद देखकर पूजा करने के बाद। और मेरी लंबी जिंदगी की दुआ मांग लेना। "

नानी हल्का सा कांखी पर उन्होंने कोई चिलचिलाता हुआ उत्तर नही दिया। तब नाना छड़ी टेकते हुए लंबे लंबे डग भरते हुये नानी के बिस्तर तक पहुंचे। रात से अंदाजा तो उन्हें हो गया था कि नानी की तबियत कुछ नासाज़ है। पर इतनी बिगड़ चुकी है उन्हें अंदाजा नही था। नानी के सर पर नाना ने हाथ फेरा , उनकी हथेलियों को सहलाया। फिर अपने नौकर शंभु से चाय और बिस्कुट मंगवाई। पर जब नानी को खिलाने की कोशिश की तो नानी ने कस के दांत भींच लिये , बोली- "सोचना भी मत, अन्न मेरे मुंह में डालने को, मेरा व्रत है।"

नाना भिनभिनाये- "काहे का व्रत? सबसे पहले अपना शरीर देखो। "

नानी रुंधे हुए स्वर में बोली- "अब इतने साल से व्रत रखती आयी हूँ मना न करो। सास ने कहा था बहु ये व्रत ही पति को जिलाये रखता है। कुछ भी हो इसका नियम न तोड़ना। "

नाना चिढ़ते हुये बोले- "अरे मर खप गयी तेरी सास। तूने कुछ न खाया तो तू भी आज ही
उनके पास चली जायेगी। सोच ले फिर कल मैं बल्लू की अम्मा से ब्याह कर लूंगा।"

नानी आह भरते हुये बोली- "कल क्यों आज ही कर लो। ले आओ मेरी सौतन। "

खैर नानी की तबियत बिगड़ती चली गयी। और उनसे व्रत निभाना मुश्किल हो गया। और उन्होंने नाना की जिद के आगे घुटने टेक दिये और चाय पी ली, बिस्किट खा लिया। दोपहर बाद उन्हें  मूंग की पतली खिचड़ी खिलाई गयी। डॉक्टर को घर बुला के दिखाया गया। डॉक्टर ने दवा लिख दी। ग्लूकोज़ जूस वगैरह देते रहने को कहा। कुछ दिन बाद नानी स्वस्थ हो गयी। पर उन्हें ये बात कचोटने लगी कि उनका करवा चौथ के व्रत का नियम टूट गया।

जोड़े में आये जरूर है, सात जन्मों का साथ भी तय कर लिया, पर इस जन्म में कितने साल साथ रहेंगे कोई नही जानता।

उसी साल दिसंबर में नाना जी की मृत्यु हो गयी। अपनी स्वाभविक मौत ही मरे थे वो। कोई कष्ट नही , किसी से सेवा नही ली। एक रात सोने के लिये गए फिर सुबह सो कर ही नही उठे।

नानी पर तो वज्रपात हो गया। शन्नो की अम्मा की छाती में सिर घुसा कर घंटों रोती रहती। कहती - "हाय रे मेरे फूटे करम ! सास ने कहा था व्रत न छोड़ना। व्रत वाले दिन ही मुझे भगवान उठा लेते। विधवा तो न होना पड़ता।"

नानी को गहरा सदमा पहुंचा था। हर वक़्त नानी चुप रहती। घड़ी घड़ी रो देती थी। सब बच्चों ने अपने घर ले जाना चाहा पर उन्होंने अपने घर की दहलीज न छोड़ी। कहती थी- "इस घर में पालकी में बैठ दुल्हन बन कर आई थी और अब अर्थी में ही यहां से जाऊंगी। "

एक दिन शंभु का फोन आया कि नानी नही रही। हम सब जितनी जल्दी हो सकता था कार से नानी के घर पहुंचे। बिस्तर पर नानी लेटी हुई थी, झक सफेद रंग की सादी सूती कलफ लगी साड़ी पहने। पास में मेज पर उनका वही लाल रंग का लंहगा रखा था।

शम्भू और शन्नो की अम्मा से बात हुयी। पूछा गया नानी ने कल क्या क्या किया ? उन्होंने बताया कि कुछ नही दिन भर ठीक ठाक थी। समय से उठी पूजा पाठ किया। खाना खाया दोपहर में कन्हैया के भजन सुने। हाँ शाम को मटरू की पान की दुकान पर गयीं थी।

मटरू भी घर पर आया हुआ था। हमने उससे पूछा कि कल क्या बात हुयी थी?? मटरू ने बताया - "कुछ खास नही बस यूँ ही इधर उधर की और नाना जी बारे में बात होती रही। फिर जब मैंने उन्हें बताया कि वो कितनी भाग्यों वाली है। पचहत्तर साल की उम्र में नाना जी ने उनकी सलामती के लिये करवा चौथ वाले दिन निर्जला व्रत रखा था, तो वो बहुत उदास हो गयी थी। फिर जल भरी आंखें लिये वहां से चली गयीं।"

अब मुझे समझ आया नानी की पास वाली मेज पर लाल रंग वाला लहंगा क्यों रखा था। शायद वो रात भर उसी से चिपट कर रोती रहीं थीं।

Twinkle Tomar

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