वो आसमान में जड़ा रहता था
जब मैं रेल की खिड़की से झांकती थी
मेरे संग संग दौड़ लगाने लगता था
शायद प्यासा था कई जन्मों से
एक परात भर पानी के लालच में
वो जल- जाल में उतर आया करता था
कभी सांय सांय करते कैथे के पेड़ पर
कभी दूर मस्जिद में बने मेहताब के ऊपर
यहाँ वहाँ कहाँ कहाँ नही टंगा रहता था
दूर शहर से प्रिय तम में उस पर
इबारतें लिख दिया करते थे आंखों से
वो डाकिया इन आँखों को चिट्ठियां भेजता था
#ये_चाँद_बीते_ज़मानों_का_आईना_होगा
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