Monday 15 July 2019

हमने देखी है उन आंखों की महकती ख़ुशबू

"मम्मी आपको पता भी है आप क्या कह रही है।" बेटा शेखर जो कि एक मल्टीनेशनल कंपनी में ऊँचे पर है, सबको दिन भर आर्डर देता रहता है, घर में पत्नी बच्चों को भी ऑर्डर देता रहता है, आज अपनी माँ के इस फरमान को पचा नही पा रहा था।

"माँ आप समझती क्यों नही? मेरी समाज में कितनी इज्जत है। सब मिट्टी में मिल जायेगी। कितना नाम खराब होगा मेरा कुछ सोचा इस बारे में। शिखा तुम ही समझाओ मम्मी को।" शेखर दोनों हाथों से सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गया। बहू शिखा ने शेखर की ओर देखा हालांकि वो शेखर के विचारों से कहीं न कहीं सहमत नही थी फिर भी उसने मन्द स्वर में मम्मी को समझाते हुए कहा-" मम्मी जी आपको किस चीज़ की कमी रखी है हमने? जहाँ चाहे आप घूमने जाती है एक कार एक ड्राइवर छोड़ रखा है आपके लिये। पैसे की कोई कमी नही रखी। आपकी सारी इच्छाएं हम पूरी करते हैं। फिर ऐसा क्या हो गया?"

" माँ भैया भाभी सही कह रहे हैं। आपको किसी चीज़ की कमी नही। आपके मनोरंजन के सभी साधन है। आपका दिल ऊबता हो ऐसा तो कोई कह ही नही सकता। फिर अचानक ये क्या हो गया है आपको।" बेटी नेहा जिसे विशेष रूप से इस मामले को सुलझाने के लिए बुलाया गया था अपनी माँ के पास बैठी उनका हाथ अपने हाथ में लिये समझा रही थी। कौशल्या देवी सिर झुकाये बच्चों की बातें सुन रहीं थीं। उन्होंने अपने फैसले को एक फरमान की तरह सुना दिया था और वो उस पर कायम थीं।

शादी के पाँच साल बाद से ही वो विधवा होने का दंश झेलती आ रहीं थीं। कितनी मुश्किल से बच्चों को पाला पोसा।उनकी क़िस्मत में भगवान ने सिर्फ़ संघर्ष ही लिख दिया था। सारी इच्छायें सारी कामनायें उन्होंने दबा कर रख लीं किसके लिये इन बच्चों के कारण ही न। छोटी उम्र में विधवा हो जाने के कारण इतना संयम इतनी समझ नही थी कि फ़िल्म में रोमांस वाले सीन देख कर पुलकित नही होना है, रोमांटिक गीत नही गुनगुनाने हैं, काम इच्छा को जगने नही देना है। फिर भी जैसे जैसे परिपक्व हुईं अपने जीवन से प्रेम, आकर्षण, रस, माधुर्य सबको निकाल फेंका, बस एक तपस्विनी के जीवन को अपना लिया।

जीवन की संध्या हो चली थी। पर कहीं से बारिश वाले बादल भी उनके जीवन के आकाश में छाने लगे थे। कुछ बौछारें कुछ छीटें पड़े तो उनका तप पिघलने लगा, उन्हें भी अपनी ज़िंदगी अपने ढंग से जीने का चाव हो आया। समीर सिंह उनके जीवन में किसी ठंडे हवा के झोंके के समान आये थे। जैसे वो अग्नि परीक्षा देने के लिये इतने सालों से लगातार जलते हुये कोयलों पर चलती जा रहीं हों और अचानक से किसी ने उनका हाथ पकड़ कर खींच लिया हो...अचानक किसी ने बारिश की ठंडी फुहारों के नीचे खड़ा कर दिया हो....

" मम्मी बोलती क्यों नही हो कुछ?"शेखर की आँखें और जुबान दोनों आग उगल रहीं थीं। जलते हुये कोयले फिर से अपनी चमक दिखा रहे थे। " आपने ये भी नही सोचा कि वो आपसे आठ साल छोटे हैं। क्या कहेगा ये समाज?आप समझ नही रहीं हैं उसकी नज़र हमारे पैसों पर है। हमारे फ्री के पिता बनकर जीवन भर हमसे सेवा कराना चाहता है वो। ख़ुद तो जीवन भर शादी की नही। ट्रैवलर है एडवेंचरर हैं....माय फुट.. जिंदगी भर कुछ कमाया नही अब सोच रहे हैं कहीं से रईस बच्चे मिल जायें और उनका बुढ़ापा अच्छे से कट जायें।" शेखर लॉजिक की सारी बातें रख रहा था। उसका दिमाग ये मानने को तैयार ही नही था उसकी माँ को इस उम्र में प्रेम हो सकता है। या उनसे आठ साल छोटा मनमौजी आदमी उनसे प्रेम कर सकता है।

"बस....." जब समीर पर लालची होने का इल्ज़ाम लगाया गया तो कौशल्या से सहन नही हुआ। कैसे समझाये बच्चों को उन्होंने देखी है उन आंखों की महकती खुशबू....

"बस शेखर बहुत हुआ.... सच कहूँ तो जीवन में संघर्षों ने इतना मुझे रगड़ा है कि तुम्हारे पिता की कोई याद तक मेरे ज़ेहन में नही रह गयी और फिर कब तक रोती उनके लिये ? समीर ट्रैवलरर हैं,एडवेंचरर हैं, हो सकता है उनके लिये इस उम्र में अपने से आठ साल बड़ी एक औरत से प्रेम करना भी एक एडवेंचर ही हो.... मगर उनके इस खिलंदड़ नेचर ने मुझे एक नई ताज़गी से भर दिया है। मैं शायद इतना पूरी ज़िंदगी नही हँसी हूँ जितना उनके साथ पार्क में बिताये एक घंटे में हँस लेती हूँ। और तुम इसकी फ़िक्र मत करो कि बुढ़ापे में तुम्हें उनकी एक फ्री के पिता की तरह सेवा करनी होगी। उन्होंने अपना इंतज़ाम एक वृद्धाश्रम में कर रखा है।"

"शेखर, शिखा, नेहा....सारी ज़िन्दगी दिमाग ने मेरे दिल के ऊपर शासन किया है। अब समय आ गया है कि मैं सिर्फ़ अपने दिल की सुनूँ, ये दिल अब जो चाहता है वो चाहता है। बचपना सही, जिद सही....मैं कुछ पल अपनी ज़िंदगी से अपने लिये चुराना चाहती हूँ। इतना तो हक़ है ही मुझे अपनी जिंदगी पर।" कौशल्या देवी ने एक साँस में सब कह डाला। अब वो बहुत हल्का महसूस कर रहीं थीं।

बहू शिखा ने एक दृष्टि अपने पति की ओर डाली, उसका तनाव से भरा झुका हुआ चेहरा उसे दुःखी कर रहा था...फिर भी वो मम्मी जी के पास जा बैठी और उसने हल्की मुस्कान के साथ पूछा- "अच्छा मम्मी ये बताओ लड़के की और कोई स्पेशल डिमांड तो नही हैं?" नेहा और शेखर सुन कर चौंक उठे। नेहा ने अपने आँसू पोछे और कहा- "हाँ मम्मी उनसे कह देना हम बारातियों का स्वागत सिर्फ़ पान पराग से करेंगे।" जल्दी ही बहू और बेटी दोनों मिलकर मम्मी को दुल्हन की तरह सजा कर विदा करने की तैयारी कर रहीं थीं।

©® टि्वंकल तोमर सिंह


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