Friday 27 September 2019

मंगलसूत्र

घर बिका, जेवर बिका, बैंक एकाउंट सीज़ हुये, फिर भी बैंक से जो लोन लिया था चुक नही सका। बिज़नेस में इतना बड़ा घाटा हुआ था कि किसी भी तरह पूरा नही हो पा रहा था। वो जोड़ा घर छोड़ने से पहले गेट पर खड़े होकर बस अपने पुश्तैनी मकान को एकटक ताके जा रहा था। सबसे ज़्यादा दुःख इस घर के जाने का ही हो रहा था।

रोहन यहाँ खेला, पला, बढ़ा अनेकों यादें इस घर के साथ जुड़ीं हैं। उनसे कैसे विलग होगा? रश्मि इसी घर में डोली चढ़ कर आई थी। इसी घर की ड्योढ़ी पर उसने अक्षत भरा कलश अपने पैर से लुढ़काया था।एक अंतिम अश्रुपूरित दृष्टि अपने घर पर डाल कर वो जोड़ा सर झुकाये टैक्सी में बैठ कर दूसरे मोहल्ले को रवाना हो गया।

रोहन खोया खोया था। उसके लिये ये सदमा बहुत गहरा था। सबसे बड़ी समस्या थी चारों ओर अँधेरा, कहाँ जायेगा क्या करेगा, बिज़नेस में घाटा नही हुआ था, उसकी तो जीने की सारी उम्मीद ख़त्म हो गयी थी। सारी सारी रात जागकर न मालूम क्या सोचा करता था। रश्मि जब भी जागती उसे चहलकदमी करते हुये ही पाती।

"सो जाइये कब तक जागते रहेंगे?" रश्मि ने उसके पास आकर कहा। " जो चला गया उसके पीछे अपना वर्तमान क्यों ख़राब करना। नयी शुरुआत करने का सोचिये।" रश्मि ने पति को सम्बल देते हुये कहा।

"क्या करूँ? कहाँ से पैसे लाऊँ? सब कुछ ख़त्म हो गया,रश्मि।" इतना कहकर रोहन फूट फूट कर रोने लगा। रश्मि को लगा अन्धकार सिर्फ कमरे में ही नहीं है रोहन के जीवन जीने की इच्छा पर भी छाता जा रहा है।

रात के अँधेरे में दूर से बल्ब की हल्की सी रोशनी आ रही थी। क्षण भर के लिये रश्मि के गले का मंगलसूत्र दीप्त हुया। रश्मि को लगा गहरे काले बादल में एक रोशनी की चमक अभी भी बाक़ी है।

उसने अपनी उँगलियाँ मंगलसूत्र पर फिरायीं। फेरों पर जब पति ने ये मंगलसूत्र पहनाया था, सास ने कहा- "बहू, मंगलसूत्र कभी न उतारना, सुहाग की निशानी है ये। पति का मंगल जुड़ा है इससे। जान से ज़्यादा संभाल कर रखना इसे।" सास की कही बात उसने निभाई थी। सारे जेवर दे दिये थे, इसे रोक लिया था।

रश्मि ने दोनों हाथों को पीछे ले जाकर मंगलसूत्र का लॉक खोला फिर मंगलसूत्र पति के हाथ में देते हुये कहा,"मोहवश रोक लिया था इसे। एक तो सुहाग का प्रतीक, दूसरा नारी सुलभ लालच। पर आप हैं तो सब कुछ है। अब इसे बेचकर नया काम शुरू करिये।"

©® टि्वंकल तोमर सिंह

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