Friday 18 October 2019

चुभन

" ये क्या बहू ? बिछिया कहाँ गयी तेरी?" सावित्री देवी ने कड़क आवाज़ में पूछा।

" वो मम्मीजी...वो..चुभ रही थी तो उतार दी।" बहू ने पैरों को साड़ी के अंदर पीछे करते हुये कहा। 


" कितनी बार समझाया है मत उतारा करो। सुहाग की निशानी है। समझ ही नहीं आता ये आज कल की लड़कियों को। न बिछिया पहनेगीं, न हाथ में भर भर चूड़ियाँ पहनेगीं , न पैरों में पायल। हम तीन तीन बिछिया पहन कर दिन भर काम करते थे। और एक ये हैं नाज़ुक महारानी। नौटंकी है बस।" सावित्री देवी का बड़बड़ाना शुरू हो गया था। 


रिमझिम ने सास का बड़बड़ाना सुना तो चुपचाप कमरे में जाकर अपने ज्वैलरी बॉक्स से बिछुवे निकाले और अपनी सूजी हुई पैर की उंगलियों पर बेदर्दी के साथ चढ़ा दिये। सास की बातों से उसका मन आहत हो गया था। मन को मिली पीड़ा के आगे शरीर को मिली पीड़ा कोई अहमियत नहीं रखती। 

उसी शाम रिमझिम की ननद का अपने मायके आना हुया। तीन दिन रुकने का प्रोग्राम था उसका। आधुनिक परिधान में सजी धजी, अपने स्ट्रेट बालों को लहराते हुये वो कार से उतरी। उसे देखकर सावित्री देवी के सीने से तो जैसे ममता का सागर संभाला ही नहीं जा रहा था। ड्राइंगरूम में आकर रिमझिम की ननद ने अपने जूते खोले और उतार कर एक तरफ़ रख दिये। उसके पैरों में बिछिया नहीं थी। 

सावित्री देवी की पैनी नज़र बिन बिछिया के पैरों पर जम गयी। " अरे सोना, तूने बिछिया नहीं पहनी?" टोके बग़ैर उनसे नहीं रहा गया। 

"अरे मम्मा, आज कल दिल्ली में कोई नहीं पहनता। और फिर जूते पहनो तो गड़ती है बिछिया।" सावित्री की सोना बेटी ने लापरवाही से उत्तर दिया। 

" हाँ ठीक है बेटी। तुझे तो रोज़ ही जूते पहन कर काम पर जाना है। कहाँ रोज़ रोज़ उतारोगी और पहनोगी।" सावित्री ने सोना की बात का समर्थन करते हुये कहा। कहते है ममता अंधी होती है। पर उसे अपनी संतान का दर्द कुछ ज़्यादा ही अच्छे से दिखायी देता है। 


रिमझिम जो पानी लेकर आयी थी, अपनी सास की बात सुनकर आश्चर्य से उनका मुँह ही देखती रह गयी। सावित्री उससे नज़रें नहीं मिला पा रही थी। 


©® टि्वंकल तोमर सिंह
        लखनऊ।


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