"पापा क्या खरगोश इसी ट्री के नीचे आराम करने के लिये रुका था?" नन्हे से बच्चे ने अपने पापा से पूछा।
" हाँ बेटा यहीं रुका था।" पिता ने उत्तर दिया।
" मैंने स्टोरी बुक में सेम इसी ट्री की फ़ोटो देखी थी न, इसलिये पहचान गया।" ये कहते हुये बच्चा ख़ुशी से फूल गया।
"हाँ बेटा, यू आर वेरी इंटेलीजेंट। और वो चिड़िया भी इसी पेड़ पर रहती थी जो अपने बच्चों को खाना खिलाने के बाद आग में कूद गई थी।" पिता ने बच्चे से संवाद बनाये रखने के लिये एक और कहानी उसे याद दिलायी।
"यस पापा, मुझे याद है वो स्टोरी भी। और वो वुडकटर भी इसी पेड़ की डाल पर बैठा था न, जो डाल को काट रहा था।" बच्चे ने फिर उत्साह के साथ कहा।
"हाँ बेटा।" पिता ने एक ठंडी साँस लेकर छोड़ते हुये उत्तर दिया। पिता की आँखों में एक गहरी पीड़ा उभर आयी। पिता ने आस पास नज़र दौड़ायी, मैदान का इकलौता पेड़ था वो। किताबों में पढ़ी हुयी कहानियों में जिस पेड़ का बार बार ज़िक्र आता है वो पेड़ अब उनके घर के आस पास बचे ही नहीं थे। पिता ने अपना समय याद किया जब पेड़ उनके लिये कोई अजूबी वस्तु नहीं होते थे। आज पाँच किलोमीटर दूर कार चला कर ये वृहद वृक्ष दिखाने के लिये पिता को पुत्र को लेकर यहाँ आना पड़ा था।
पिता को लगा अगर ध्यान से सुनो तो कहानियाँ अलग ही दास्तान सुनाती हैं। खरगोश की तरह मानव भी आराम करता था पेड़ के नीचे कभी। हर संभव सहूलियत ली उसने उनसे।
जैसे उस पक्षी ने अपने बच्चों के लिये स्वयँ को मिटा दिया, वैसे ही प्रकृति ने मानव को अपना बच्चा समझकर अपना सब कुछ उसे सौंप दिया, मिटा दिया स्वयँ को उसकी आवश्यकताओं के लिये।
पर आख़िर में मनुष्य वही मूर्ख लकड़हारा साबित हुआ जिसने उसी डाल को काट डाला जिस पर वो बैठा हुआ था।
©® टि्वंकल तोमर सिंह, लखनऊ।
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