मुझे मेरे कमरे तक
छोड़ने जाती हैं
इक्कीस सीढ़ियाँ
कभी बयालीस हो जाती हैं
तो कभी घट कर चार-पाँच
राजमिस्त्री ने
रच दिया था कोई इंद्रप्रस्थ
या मायालोक की किसी दुष्ट छाया ने
बैठा दी है मायाविनी मन के अंदर
©® टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ।
दीवाली पर कुछ घरों में दिखते हैं छोटे छोटे प्यारे प्यारे मिट्टी के घर माँ से पूछते हम क्यों नहीं बनाते ऐसे घर? माँ कहतीं हमें विरासत में नह...
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