मुझे मेरे कमरे तक
छोड़ने जाती हैं
इक्कीस सीढ़ियाँ
कभी बयालीस हो जाती हैं
तो कभी घट कर चार-पाँच
राजमिस्त्री ने
रच दिया था कोई इंद्रप्रस्थ
या मायालोक की किसी दुष्ट छाया ने
बैठा दी है मायाविनी मन के अंदर
©® टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ।
1. नौ द्वारों के मध्य प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...
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