Sunday 16 February 2020

छलना

मुझे मेरे कमरे तक 
छोड़ने जाती हैं
इक्कीस सीढ़ियाँ
कभी बयालीस हो जाती हैं
तो कभी घट कर चार-पाँच

राजमिस्त्री ने 
रच दिया था कोई इंद्रप्रस्थ 
या मायालोक की किसी दुष्ट छाया ने
बैठा दी है मायाविनी मन के अंदर

©® टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 


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