प्रतिज्ञायें
दर्पण की तरह है
अंततः टूटना ही
उनकी नियति है
अपनी खंडित छवि को
कितनी देर निहार सकोगे
या फिर
टूटी हुई किरचों को
चुभे बिना बटोर सकोगे?
©® Twinkle Tomar Singh
1. नौ द्वारों के मध्य प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...
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