Wednesday, 18 March 2020

पत्थर

अलग होकर भी
पत्थर पहाड़ से
अकड़ में रहता है
सजूँगा मंदिर में
चढूँगा चाक पर

लुढ़कने से लेकर 
छेनी के आघात तक
क्या क्या सहना होगा
अलग होते समय
सोचता नही है

माता पिता से 
बिछड़कर मैंने भी
कब सोचा था ?

टि्वंकल तोमर सिंह 


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