अलग होकर भी
पत्थर पहाड़ से
अकड़ में रहता है
सजूँगा मंदिर में
चढूँगा चाक पर
लुढ़कने से लेकर
छेनी के आघात तक
क्या क्या सहना होगा
अलग होते समय
सोचता नही है
माता पिता से
बिछड़कर मैंने भी
कब सोचा था ?
टि्वंकल तोमर सिंह
1. नौ द्वारों के मध्य प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...
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