"रेणुका तुम कितनी मादक हो...तुमको 'किस' करता हूँ तो लगता है मय के घूँट पी लिये हो।" वरुण अपनी नई नवेली पत्नी के प्रेम में डूबकर कहता।
इधर रेणुका दूसरी तरफ मुँह फेरकर हल्की डकार लेती और मन में कहती..." क्यों नही लगेगा आखिर...मैंने जो..."
रेणुका हैदराबाद की रहने वाली एक सीधी साधी लड़की थी। उसकी शादी हो गयी शिमला में रहने वाले एक परिवार के लड़के वरुण के साथ। शादी गर्मियों में हुई थी तो कुछ दिन हँसते खेलते निकल गए। लेकिन जैसे ही अक्टूबर शुरू हुआ, वहाँ सर्दी पड़नी शुरू हो गयी। हल्की हल्की ठंड, या हैदराबाद के मुकाबले थोड़ी ज़्यादा ठंड थी बस। मगर समय बीतने के साथ ठंड ने प्रचंड रूप ले लिया।
अब तो रेणुका की हालत ख़राब चार चार स्वेटर पहने, दो दो रजाई ओढे पर ठंड थी कि हड्डियों में घुसी जाती थी। रेणुका की नाक लाल, गाल लाल देख कर वरुण बहुत चिढ़ाता था।
"एकदम जोकर लग रही हो......लाल बन्दरिया लग रही हो।"
रेणुका दाँत किटकिटाने के सिवाय कुछ ज़वाब नहीं दे पाती। करती भी क्या बेचारी। सर्दी ने उसके मुँह में सारे शब्द जमा दिए थे।
उसके लिये लकड़ी जलाकर आग तापने का इंतजाम किया गया। उसे काढ़ा बना कर दिया गया। रात में गर्म पानी की बोतल साथ लेकर सोती थी। कमरे में हीटर का इंतजाम भी कर दिया गया। पर लाइट जाते ही वो बेकार हो जाता था। फिर हर वक़्त हीटर भी नहीं चलाया जा सकता था। न ही रेणुका हर वक़्त कमरे में आग तापती हुई बैठी रह सकती थी। रसोई के कामों में सास का हाथ तो बँटाना ही था।
रेणुका से सर्दी झेली नहीं जा रही थी। कहाँ हैदराबाद में पूरे सीजन बस एक कम्बल से ही काम चल जाता था। और कहाँ यहां दस रजाई ओढ़ने से भी गर्मी नहीं मिलती।
एक दिन वरुण के एक दोस्त ने सुझाया " भाभी जी, डॉ ब्रांडी के दो चार घूँट मार लिया करिये सब ठीक हो जायेगा।"
वरुण और रेणुका एक दूसरे का मुँह देखने लगे। पहाड़ी परिवार की बहू और मदिरापान....न न ....नरक में कढ़ाही में डाल कर खौला दिया जाएगा उसको।
पर जब तक खून जवान होता है, ज्यादा आगे पीछे नहीं सोचता। एक दिन चुपचाप जाकर रेणुका डॉ ब्रांडी खरीद लायी। पहली रात जब उसने एक चम्मच पी। तो उसे उल्टी हो गई। सास बाथरूम में उसकी उल्टियों की आवाज़ सुनकर बहुत खुश हो गईं। ...." आहा मेरे वरुण ने तो बहुत जल्दी खुशखबरी सुनाने का इंतजाम कर दिया।"
इधर एक दो दिन प्रैक्टिस करने के बाद रेणुका ने ब्रांडी पीने की आदत डाल ली। उसको वास्तव में काफ़ी आराम मिला। झुरझुरी , कंपकपी लगना बन्द हो गया था।
एक दिन जब रेणुका चुपके से डॉ ब्रांडी का सिप ले रही थी, तभी उसकी जेठानी कमरे में आ गयीं और उसे मदिरा के घूँट भरते हुये देख लिया। बस तभी उनके मुँह से एक चीख निकली और बेहोश होकर गिर पड़ी। जेठानी सिर पर पल्लू रखने वाली, शुद्ध , संस्कारी बहू थी घर की। शायद ऐसी अनैतिकता सहन न कर पाई होगीं।
रेणुका के तो हाथ पांव फूल गये। झटपट उसने बोतल छुपाई फिर वरुण को आवाज़ दी। परिवार के और लोग भी चीख सुनकर आ गए। सबने जेठानी को होश में लाने की पूरी कोशिश की। उनके मुँह पर पानी के छींटे मारे गए। थोड़ी देर बार उनको होश आ गया। अब रेणुका का दिल धुकधुक करने लगा। अब पड़ी डाँट और अब खुली पोल। पर घोर आश्चर्य सास ने इस बारे में कुछ भी नहीं कहा। सबको यही बताया कि उनको कमजोरी के कारण चक्कर आ गया था।
एक दिन अकेले पा कर रेणुका से उसकी जेठानी ने पूछा, " क्यों रेणुका तेरी शीशी ख़त्म हो गयी या चल रही है?"
रेणुका की पलक झपक न पाई।
" क्या हुआ?" जेठानी मुस्कुराते हुये रोटियां बेलती जा रहीं थीं।
" भाभी..वो गलती से...आ आ..."
"अरे रहने दे। मुझे न पढ़ा। औरत और मदिरापान.... नरक में पकौड़े तले जायेगे तुम्हारे।" जेठानी ने कहा।
रेणुका सन्न रह गयी। यही बात तो उसने भी मन में सोची थी। क्या जेठानी मन भी पढ़ लेती हैं ? रेणुका चुपचाप नज़र नीचे किये खड़ी रही। क्या बोलती वो बेचारी।
"अरे बता न...शीशी ख़त्म हो गयी हो तो बताना, मैं मंगा दूँगी।" जेठानी ने कहा।
रेणुका आश्चर्य के समुंदर में ऐसा गोता लगाने निकली कि बहुत देर तक वापस न आ सकी।
"नहीं चाहिये तो कोई बात नहीं। मैं अपनी शीशी मँगाने जा रही थी तो सोचा तुमसे भी पूछ लूँ। "
"जी......????" रेणुका की आँखें खुली की खुली रह गयी।
" हाँ और क्या....ये आदमी लोग तो थोड़ा बहुत पी लेते हैं।पर हम लोग क्या करें? इतनी ठंड में जिंदा रहना है कि नहीं। तू अगर हैदराबाद से है तो मैं भी गुजरात से आई हूँ। मुझे भी इसी ब्रांडी पर गुजारा करना पड़ता है। अब तो फिर भी आदी हो गयी हूँ ठंड की। मैं उस दिन तुमको देखकर नहीं गिरी थी। मुझे वास्तव में चक्कर आ गया था। मुझे लगा तू तो आज के जमाने की लड़की है। तुम्हें क्या बताना इस बारे में। "
रेणुका के दिल से सारा भय जाता रहा। उस दिन से जेठानी- देवरानी में एक प्यारा सा रिश्ता कायम हो गया।
टि्वंकल तोमर सिंह,
लखनऊ।
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