Friday, 1 May 2020

श्रम स्वेद


तृषा जब जब 
विकल करती है
ईश्वर के भी कंठ को

शुष्क मृदा अणु बन 
बिछ जाता है श्रमिकों के
सख्त सांवले पंजों तले

श्रम स्वेद से अधिक पवित्र,
सुस्वादु....तृप्तिदायक
कोई ओस नहीं होती !

टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ।

चित्र : साभार गूगल 


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