तृषा जब जब
विकल करती है
ईश्वर के भी कंठ को
शुष्क मृदा अणु बन
बिछ जाता है श्रमिकों के
सख्त सांवले पंजों तले
श्रम स्वेद से अधिक पवित्र,
सुस्वादु....तृप्तिदायक
कोई ओस नहीं होती !
टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ।
चित्र : साभार गूगल
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