एक पोटली के
सिरों को कस दो
एक छोटा सा मुख
शेष रहता है
वो शब्द है
विदा...!
अनगिनत शब्द
संवेदनायें अपरिमेय
अथाह भाव-आवेश
मानस-पोटली में
धरे रह जाते है
अधर बुदबुदा देते हैं
विदा...!
टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ।
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