Sunday 23 August 2020

अकेले तो पौधा भी उदास रहता है

"अरे माली, ये देखो इस पौधे की जड़ के पास दूसरा पौधा निकल रहा है। इसे ज़रा संभाल कर निकाल लेना और दूसरे गमले में रोप दो।" जूही आँगन में खड़ी अपनी छोटी सी बगिया का मुआयना कर रही थी और माली से बागवानी का काम करा रही थी। 

"जी मेमसाब।" माली ने कहा और एक खाली गमला लेकर आ गया। उसको नया पौधा रोपते हुये देखकर जूही की आँखें सजल हो आयीं। क्या उसके पास भी एक अलग पौधा नहीं है जिसे किसी के ख़ाली गमले में रोपा जा सकता है? 


"अरे वाह , बधाई हो आप न केवल माँ बनने वालीं है, बल्कि एक साथ दो बच्चों की माँ बनने वाली हैं। " अल्ट्रा साउंड के लिये स्क्रीन पर नज़रें गड़ाये हुये डॉक्टर ने प्रसन्नता से जूही को ये सूचना दी थी। जूही की सपनीली आँखों से दो अश्रु मोती फिसल गये थे।

कितने वर्षों की प्रतीक्षा के बाद उसके परिवार में ये खुशी का दिन आया था।

जूही जब से इस घर में ब्याह कर आई थी, उसने अनुभव किया था एक अजीब सी ख़ामोशी पसरी रहती थी। उसकी जिठानी दस वर्षों में तीन बार माँ बनते बनते रह गईं। कभी एक महीने में, कभी तीन महीने में और एक बार तो बच्चा पैदा तो हुआ, पर उसने किलकारी तक न सुनाई, और चला गया। 


सास के व्रत उपवास बढ़ते चले जाते थे। बहुओं से भी बेटे के लिये कराए जाने वाले व्रत-उपवास का कठोरता से पालन कराया जाता था। कोई पीर-फकीर, मंदिर - गुरुद्वारा न बचा , जहाँ पूरा परिवार मत्था न टेक आया हो। 

ऐसे में जूही का डर डर कर अपनी गर्भावस्था के दिन काटना स्वाभाविक था। जिठानी बंगलौर से उसका विशेष ख़्याल रखने के लिये अपने पति को नौकरों के भरोसे छोड़ कर आ गईं थीं। जूही का पति छह महीने के लिये विदेश चला गया था। सास-ससुर अपने बुढ़ापे के बोझ को ही उठाने में थक जाते थे। ऐसे में जूही की जिठानी ने आगे बढ़कर स्वयँ ही जिम्मेदारी ले ली थी। 

" जूही, बस तेरी स्वस्थ संतान का मुँह देख लूँगी, तभी जाऊँगी वापस अपने पति के पास।" जिठानी प्यार से जूही के गर्भ को चूमती फिर कहती। 

दिन रात जिठानी ने जूही की सेवा की। उसकी दवाइयाँ, उसे नियम से डॉक्टर के पास ले जाना, जूस निकाल कर देना, जिस समय जूही का जो खाने का मन करता तुरंत बना कर देती थी। 

जूही के मन में जिठानी के लिए कभी प्रेम उमड़ता तो कभी संदेह। " कहीं भाभी मेरे जुड़वाँ बच्चों में से एक को गोद तो न माँग लेंगीं? इतनी सेवा, इतना निश्छल प्रेम तो मेरी बहन भी नहीं करती है।" 

माली ने गमले में पौधे को रोप दिया था। " भाभी अभी इसे तीन दिन छाँव में रहने देना। तब धूप में रखवा देना।" 

ख़ाली , बेजान पड़े गमले में कितनी रौनक आ गयी थी। जूही ने अपनी सजल आँखों को आँचल से पोछ लिया। उसने मन ही मन निर्णय किया, भाभी को एक बच्चा दे दूँगी। क्यों उनकी कोख भी सूनी रहे? 

आख़िर वो घड़ी आ ही गयी जब नन्हे मुन्ने दो बच्चे एक बालक, एक बालिका किलकारी मारते  हुये दुनिया में आ गए। पूरे परिवार की खुशियों का ठिकाना न रहा। सास ने पूरे मोहल्ले में लड्डू बटवायें। 

 जूही सिजेरियन के बाद बिस्तर पर बेहाल पड़ी थी। बगल में दोनों बच्चे लेटे थे। उसकी जिठानी ही उन दोनों का ख़्याल रख रही थीं। जिठानी की तो आँखों में जैसे आँसुओं का बाँध ही नहीं रुक रहा था। ममता का लावा जैसे फूट फूट कर निकला पड़ रहा था। जूही चुपचाप अपनी जेठानी को सब काम करते देख रही थी। 


जूही के मन ने कहा- " निश्चित तौर पर भाभी के मन में ये बात है कि एक बच्चा मैं इन्हें दे दूँ। पर शायद कह नहीं पा रहीं हैं। इसके पहले ये कहें , मैं ही कह देती हूँ, और बड़ी बन जाती हूँ।" 

आख़िर अकेला पा कर उसने अपने मन की बात जिठानी से कह दी। 

" भाभी, ये मत समझना कि मैं तुम पर तरस खा रहीं हूँ या कोई एहसान कर रही हूँ। पर मैं चाहती हूँ इनमें से एक आपको 'बड़ी माँ' नहीं सिर्फ़ 'माँ' कहे।" जूही ने अपनी स्नेहिल स्पर्श भरी हथेली से जिठानी की हथेली को थाम लिया। 

जिठानी ने सिर झुका लिया। " जूही, माँ कहलाना किसे नहीं भाता? एक अभिभावक की तरह मैं इस छुटकी को गोद ले।लूँगी। पर इसे तुमसे, इसके भाई से अलग नहीं करूँगी। अकेले बच्चे में अनेकों मानसिक विकृतियां पनप जातीं हैं। बच्चा बहुत अकेला महसूस करता है। देखो जूही मेरी उम्र पैंतालीस वर्ष हो चली है। मैं दो साल के बच्चे के पीछे पीछे दौड़ नहीं सकती। ये दोनों आपस में पलेंगे बढ़ेंगे तो ही अच्छी तरह विकसित होंगे। अरे, अकेले तो पौधा भी उदास रहता है रे, फिर ये तो मनुष्य के बच्चे हैं।"

जूही की आँखों पर पड़ा संदेह का पर्दा जैसे ही हटा , उसे जिठानी की ममतामयी आत्मा का प्रेम स्पष्ट दिखने लगा। 

देखते देखते बच्चे दो महीने के हो गए, जूही का पति विदेश से वापस आ गया। जिठानी के बंगलौर वापस जाने का वक़्त आ गया। दरवाजे पर खड़ी जिठानी को विदा करने से पहले जूही दौड़ कर आँगन में गयी और गमला उठा लायी जिसमें नया पौधा रोपा गया था। अब उसमें फूल भी खिल आये थे। 

गमले को जूही ने जिठानी के हाथों में थमा दिया। " भाभी आपको इसके फूल बहुत पसंद हैं न। " 

"हाँ, बहुत, इसे मैं अपनी बालकनी में तुलसी के पास रख दूँगी।" जिठानी ने जूही को गले लगाया और गमला संभाल कर कार में रखवा लिया। 


टि्वंकल तोमर सिंह,
लखनऊ। 

No comments:

Post a Comment

द्वार

1. नौ द्वारों के मध्य  प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...