Tuesday 13 October 2020

पर्दे

मैं बाज़ार में शॉपिंग करने के लिये गयी थी। तभी एक महिला की आवाज़ पीछे से कान में आई।
"भैया...क्या आपके पास नीले रंग में बंधेज का दुप्पटा होगा?"

आवाज़ बहुत ही चिर परिचित थी। संध्या...मेरी सहेली की आवाज़ जैसी जिससे मैं पिछले पाँच सालों से मिली नहीं थी। 
 
उत्सुकता में पीछे मुड़कर देखा तो लगा शायद संध्या ही थी। पर पहचान में ही नहीं आ रही थी। इतनी पतली, स्लिम ट्रिम फिट...! आंखों पर स्टाइलिश गॉगल्स लगाये हुए।  मैंने हिचकते हुये पूछा.." संध्या..??" 

"अरे स्नेहा तू...?" संध्या ही थी। मुझे पहचानते ही बेहद खुश हो गयी।

 हम दोनों एक रेस्टोरेंट के कार्नर में बैठ कर बातें करने लगे। 
उसने बताया कि उसके पति का अभी ही ट्रांसफर हुआ है। अभी पिछले हफ्ते ही वो लखनऊ शिफ्ट हुई है। 

सबसे ज़्यादा जिस चीज़ ने मुझे आश्चर्य में डाल रखा था, वो था उसका वजन। कहाँ पाँच साल पहले वाली , सत्तर किलो वजन वाली, गप्पू सी संध्या। और कहाँ से एकदम पतली संध्या। पचास से एक किलो वजन भी ज़्यादा न होगा। 

मैं अपने बढ़े हुये वजन और बेडौल शरीर पर झेंपने लगी थी। पूरा दुप्पटा ओढ़ने पर भी मेरा निकला हुआ पेट मेरे वजन की खिल्ली उड़ा रहा था। मुझे कहीं न कहीं उससे जलन भी हुई। हुँह ,अच्छे घर में शादी हो गयी है। बस मैडम को करना ही क्या होता होगा अपनी फिटनेस पर ध्यान देने के सिवा। यहाँ गृहस्थी का ऐसा बोझ लदा हुआ है कि अपने ऊपर ध्यान देने की फुर्सत ही नहीं। 

संध्या अपनी बातें बताने में लगी हुई थी। और मैं कुछ और ही सोच रही थी। 
" मैडम के जलवे तो देखो। रेस्टोरेंट के अंदर भी गॉगल्स पहन कर बैठीं हैं। उफ़्फ़ ये फैशनपरस्त अमीरजादियाँ.." 

इधर उधर की बातों के बाद आखिरकार मेरी उत्सुकता ने मुझे पूछने पर मजबूर कर ही दिया है। " ये सब छोड़ ये बता तूने इतना वजन कम कैसे कर लिया? योगा, जिम ? बहुत फिट है तू यार। " 

संध्या अचानक से शांत हो गयी। उसका मुँह जैसे और छोटा सा हो गया। 

" हाँ जॉइन किया है न वजन कम करने के लिये। सारा योगा सारा जिम मेरा एक ही है- टेंशन। पति वैसे तो ठीक हैं,पैसों की भी कोई कमी नहीं है,  पर उनकी शाम से शराब पीने की आदत बहुत बुरी है। कंट्रोल ही नहीं है।  बच्चों को भी कभी कभी पीट देते हैं। मुझ पर भी हाथ...." संध्या की आँखें भर आयीं थीं। उन्हें पोछने के लिये उसने अपने गॉगल्स को उतारा। गॉगल्स हटाते ही उसकी आँखों के नीचे के काले गड्ढे स्पष्ट दिखाई दे गये ।

मुझे याद आया एक बार मैंने बाहर से उसके ससुराल की कोठी देखी थी। उसके ससुराल का वैभव मेरे सीने में गड़ गया था। उसके घर की खिड़कियों पर आलीशान भारी भारी पर्दे लगे थे। अंदर कुछ नहीं देखा जा सकता था। 

आज वही गलती फिर मैंने कर दी थी। किसी को भी बाहर से देखकर उसके बारे में राय नहीं बनानी चाहिए। 

मेरे मन में उमड़ी ग्लानि ने सारी जलन को धो दिया । 

टि्वंकल तोमर सिंह,
लखनऊ। 

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