विषाद के
किसी एकाकी पल में
निकला एक शब्द
पूरी व्यथा को समेटे
एक उपन्यास होता है..
'आह'...के करोङों संस्करण हैं
शोक... टीका एक भी नहीं !!
~ टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ।
1. नौ द्वारों के मध्य प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...
No comments:
Post a Comment