Friday 10 September 2021

सिगरेट वाले बाबा





भारत एक अनोखा देश हैं। और बड़ी ही अजूबी है यहाँ लोगों की आस्था। कब , कहाँ, किस पर हो जाये कहा नहीं जा सकता। और तो और इस आस्था के चलते उनके बिगड़े काम भी बन जाते हैं। पर इसी आस्था ने कई लोगों को जीवित भी रखा है।

अमूमन माना जाता है कि ईश्वर या किसी सिद्ध संत के द्वार पर जाना है तो किसी भी लत, भोग, विलास सब चप्पल के साथ ही बाहर उतार कर जाना चाहिए। सिगरेट पीना, शराब पीना इत्यादि मंदिरों और मस्जिद से दूर ही रखे जाते हैं।। लेकिन क्या आप एक ऐसी मज़ार के बारे में जाते हैं जहाँ पर सिगरेट चढ़ाई जाती है। जी हाँ, चौंकिये मत सही बात है ये। 

हमारे ही शहर लखनऊ के मूसा बाग में एक बहुत ही चर्चित मज़ार है जिसे ‘सिगरेट बाबा’ के नाम से जाना जाता है। यहाँ पर आने वाला भक्त सिगरेट चढ़ा कर जाता है, और ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से मन की मुराद पूरी होती है।

इस मज़ार के बारे में कहा गया है कि यह मज़ार एक अंग्रेज सैनिक कैप्टन वेल्स के नाम पर बनी है जिसे हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही मानते हैं। कहा जाता है कि कप्तान को सिगरेट पीने का काफी शौक़ था इसलिए यहाँ पर आने वाले लोग सिगरेट की भेंट इस मज़ार को चढ़ाते हैं। कप्तान को लोगों ने एक संत का दर्ज़ा दिया है।

'कप्तान बाबा' के नाम से विख्यात हिंदू और मुसलमानों की आस्था से जुड़ी यह मज़ार एक ईसाई अंग्रेज सैनिक की कब्रगाह है। दो अलग-अलग धर्मों का एक तीसरे मज़हब के व्यक्ति को संत मानकर पूजना अपने आप में एक अनोखी घटना है, नहीं ? 

यहाँ पहुँचने के लिये आपको हरदोई रोड पर जाना होगा। हरदोई रोड से कुछ दूरी पर मूसाबाग के खंडहर नजर आएंगे और इनके पीछे स्थित है हज़रत सैयद इमाम अली शाह की दरगाह। यहाँ से आप थोड़ा आगे चलते हैं तो खेतों के बीच सफ़ेद रंग में चमकती हुई आपको मिलेगी सिगरेट वाले बाबा की दरगाह। 

'मूसाबाग' का निर्माण अवध के नवाब आसिफुद्दौला ने 1775 में अपनी आरामगाह के रूप मे करवाया था। किवदंती है कि नवाब साहब ने यहाँ पर एक चूहे को मारा था,बस तभी से उनके शौर्य के गुणगान के लिये इसका नाम 'मूसबाग' पड़ गया। 

लेकिन सन् 1857 की लड़ाई में मूसबाग की इमारतें अंग्रेज सैनिकों और भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के बीच हुई गोलाबारी में तहस-नहस हो गई। यही वजह है कि आज यहाँ केवल इनके खंडहर ही शेष रह गए हैं।

कप्तान बाबा की मजार पर लगे पत्थर से पता चलता है कि यह कब्र 21 मार्च 1858 की लड़ाई में मारे गए कैप्टेन एफ० वेल्स की है। हालांकि अब उस पत्थर की सफेद रंग से पुताई कर दी गयी है और उसे मुश्किल से ही पढ़ा जा सकता है। इस पर ये भी लिखा है कैप्टेन एफ० वेल्स इस युद्ध में एक सच्चे ईसाई सैनिक की तरह वीर गति को प्राप्त हुये। इस बारे में कोई भी नहीं जानता कि इन अँग्रेज़ कैप्टेन वेल्स की कब्र पर पूजा कब और कैसे शुरु हो गई।

यहाँ हर गुरुवार को मज़मा लगता है। मतलब संत अँग्रेज़ हो तो भी उसकी ओ० पी० डी० रविवार को नहीं भारतीय आस्था के हिसाब से गुरुवार को ही चलेगी। 

यहाँ ज़्यादातर प्रेमी जोड़े आते है, जो बाबा से आने विवाह की दुआ मांगते हैं। ऐसी मान्यता है कि मज़ार पर सिगरेट चढ़ाने से प्रेमी या प्रेमिका को उसका प्यार मिल जाता है।( कट्टर प्रेमी-प्रेमिका कृपया ध्यान दें।) 


~ टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

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